आकृति माप का सत्यदर्शन कर सकना भी बोधिसत्व प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है

जब कोरोना संक्रमण से उत्तर प्रदेश, बिहार , दिल्ली में अपार मृत्यु हो रही थी, तब भक्तगणों ने मामले को दबाने के लिए sm पर शोर उठाया था कि, "कितने सारे लोग ठीक भी तो हो कर लौट रहे हैं, मीडिया उनकी बात क्यों नही करता? ये तो negativity फैलाने की साज़िश करि जा रही है।"

चिंतन का ये तरीका दिमाग को अफ़ीम खिलाने वाला है। कैसे?

संसार में प्रत्येक विषय के दो या अधिक पहलू होते हैं। बोधिसत्व प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सत्य परिस्थिति से दोनों पक्षों को तो देखना ज़रूरी होता है, मगर इसका अर्थ ये नही है कि सदैव सभी पक्षों को समान आकृति माप में करके देखना होता है। 

कहने का अर्थ हैं की यदि कोई एक पक्ष अन्य से अधिक विराट हो रहा हो, तब सत्य दर्शन के अनुसार उसकी विराटता को देख और पकड़ सकना सही बोधिसत्व होगा। 

अगर कोई व्यक्ति सही आकृति माप के दर्शन नही कर रहा हो, या ऐसा नही करने को प्ररित करता हो, तब वो जरूर कोई छलावा कर रहा है।

सोचिये, पेट्रोल और गैस के दाम बढ़ने से जनता को हुए कष्टों पर यदि ये कहने लग जाएं कि, 

"भाई, दाम के बढ़ने से, महंगाई के आने से ये भी तो देखिये कि उस लोगों को फायदा पहुँचेगा जो ये माल बेचते हैं। वो दुकानदार लोग , क्योंकि अब उनकी आय बढ़ेगी। तो फिर कोई ये कैसे केह सकता है कि दाम के बढ़ने से सभी नागरिकों को कष्ट होता है। कई सारे लोग हैं जिनको फ़ायदा भी तो पहुँचता है।"

तो अब सोचिये, negativity वाले तर्क में से निकाला ये ऊपर वाला उदघोष कैसे सुनाई पड़ता है?


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