Why is there Narcissism in Hindu faith

 

मेरा ख्याल है कि भारत की आबादी मे आत्ममुग्धता इसलिए अधिक है क्योंकि लोगों का यह मानना है कि "घमंड" का सही उपचार होता है विनम्रता ।

 "विनम्रता" 
 इसके अभिप्राय में औसत भारतीय क्या समझता है? 
ये एक शोध करने वाला प्रश्न है। 

मेरा नज़रिया है कि "विनम्रता" का अर्थ एक आम भारतीय मात्र यहां तक ही समझता है कि दूसरों से अच्छे से बातचीत करना, शायद "आप-आप" करके। लोगों से हँस कर बोलना, जमीन पर बेहिचक बैठ जाना, वो भी तब जब आपके पास बहोत अधिक पैसा हो, तब। खाना खा लेना, गरीब आदमी के जैसे। और उसको स्पर्श कर लेना, कर लेने देना, ख़ास तौर पर गले मिल कर , गले लगा लेना। 

भारत के मौजूदा संस्कृति और फ़िल्मी नसीहतों के मद्देनजर यह सब आचरण पयार्प्त होते हैं खुद को "विनम्र" साबित करने के लिए। 

औसत भारत वासी मे आत्म-मुग्धता के प्रति चेतना नही है। वो आलोचना सुनना और करना दोनो ही नापसन्द करता है। उसे कतई "आईना देखना " या कि "आईना दिखाना ", दोनों, ही घोर "नीच" अथवा "घमंडी" काम लगते हैं।

 औसत भारतीय सदैव ही "प्रशंसा" तथा "स्तुति" करने को ही "विनम्रता" के आचरण में गिनती करता है। 

हालांकि बौद्ध विचारो के अनुसार मनुष्य को अपने कष्टो से मुक्ति लेने के लिए तमाम किस्म के संयम रखने चाहिए, तथा आत्म-ज्ञान रखना चाहिए, मगर यह विचार अधिक प्रचलन में नहीं है। बौद्ध धर्म, जो कि भारत भूमि से ही निकला है, मगर अधिकांश भारत वासी रामायण और महाभारत से निकली "ब्राह्मणी नैतिकता" के मद्देनजर ही "घमण्ड" और उसके उपचार "विनम्रता" दोनो को बूझते हैं। रामायण में रावण एक "घमंडी" आदमी था। 

ब्राह्मणी नैतिकता में धूर्तता में कोई दोष नही होता है, बस बातचीत करते समय प्रस्तुतिकरण में तथकथित "विनम्रता" होनी चाहिए। वास्तव में ब्राह्मण "विनम्रता" पर इतना अधिक बल देते हैं कि "धूर्तता" के प्रति आत्म-चेतना को करीब करीब सदैव ही अनदेखा कर देते हैं। हालांकि वह दूसरे में धूर्तता का दोष देखते हैं, मगर आश्चर्य पूर्वक वह खुद में धूर्तता को कदापि नही स्वीकृत करते है। ब्राह्मणों के ऐसा दोहरा आचरण करने का कारण अक्सर करके स्वयं का "विनम्र" व्यवहार बताते हैं। उनके अनुसार बात को यदि "मधुर , और निम्म ऊर्जा ध्वनि" में प्रस्तुत करा गया है, तब यह पर्यपत होता है की "बहोत अच्छे से समझाया है"। और यदि फिर भी सामने वाला उनकी बात से सहमत नही है, तो यानी "वही घमंडी है, अकड़ू है" , वगैरह। 

 ब्राह्मण नैतिकता आत्म-निरक्षण पर बल नही देती है, "विनम्रता" के अभिप्रायों में । तमाम किस्म के जो self- XYZ होते हैं, (जिन्हें emotional intelligence के विषय मे अक्सर पढ़ाया जाता है, ), ब्राह्मण कदापि अपनी "विनम्रता" में उनको गिनती नहीं करता है। 

दुविधा यह है कि तमाम ब्राह्मण भारत के वेदों के अनुसार समाज का श्रेष्ठ जन, बुद्धि जन होता है। ज़ाहिर है, बाकी तमाम हिन्दू समाज के लोगो का आचरण उनके श्रेष्ठ जन से मिलता जुलता ही होगा। 
ब्राह्मण वर्ग में कुछ गुण दूसरों के बनस्पत अधिक श्रेष्ठ माने जाते हैं। जैसे समीक्षा , विशेलेष्ण, सत्य कटुवचन , समालोचनात्मक चिंतन से अधिक श्रेष्ठ होता है वाकपटुता, प्रियं ब्रूयात , मधुर वाचन, सौहार्द्य बनाना इत्यादि।

 इन तमाम ब्राह्मणी "गुणों" ने भारतीय संस्कृति को सदियों से आत्मकेंद्रित बनाया है और आत्ममुग्धता दे दी है।

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