ब्राह्मण बनाम बुद्ध — कब और कैसे आरंभ हुआ होगा भारतीय संस्कृति में

[9/6, X 14 PM] AHSHSHEHE: 👍👍

मेरा अपना ये मानना है कि वर्ण व्यवस्था, *जो की एक सकारात्मक पहल थी समाज को संचालित करने के लिए* , वो तो हालांकि मनुस्मृति से आरम्भ हुई है, 

 *मगर* छुआछूत और जातिवाद व्यवस्था (जैसे कि हम वर्तमान काल में देखते और समझते रहे हैं) ये आरम्भ हुई है शुंग काल के दौरान, जब *पुष्यमित्र शुंग* नाम के व्यक्ति ने मौर्य वंश के शासक बिम्बिसार की धोखे से हत्या करके शासन हड़प लिया था। 

शुंग वंशी स्वयं को 'भुमिहार " बुलाते थे और वो तत्कालीन पारंपरिक ब्राह्मण और ठाकुरों से मिश्रित वर्ग थे। अब क्योंकि मौर्य शासक बौद्ध अनुयायी बन चुके थे, तो वो लोग पारंपरिक ब्राह्मणों को तवज़्ज़ो नहीं देते थे। समाज भी बौद्ध विचारो से प्रभावित हो कर बौद्ध हो चुका था। सो पारंपरिक ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देना संभवतः बंद हो चुका था। आक्रोशित हुए ब्राह्मण वर्ग ने नये विचारो और प्रतिहिंसा (बदले की भावना) की ठानी और फिर नये नये "पौराणिक मिथक कथाओं" को जन्म दे कर स्वयं के लिए भूमि अर्जित करना न्यायोचित करना आरम्भ कर दिया। जबकि ब्राह्मणों को भूमि पति बनना तो "मनुस्मृति'" के अनुसार वर्जित था। 

तो ब्राह्मणों ने यहां कुछ षड्यंत्रकारी सोच से एक पौराणिक महाऋषि,― परशुराम― जिसे की वैसे समाज वासी एक क्रोधी और दुर्गुणी साधु मान कर उससे दूरी रखते थे, उन्हें अपने कुल का जन्म पिता बताया और शस्त्र तो धारण करना आरम्भ किया ही, संग में भूमि के स्वामित्व भी आरम्भ कर दिये। 

फिर शुंग वंश के आरोहण के बाद तो उन्होंने बौद्ध  और जैन अनुयायियों पर जो बर्बरता करि की वो शायद सुनने लायक नही है। जैन लोग बताते हैं की एक ही रात में करीबन आठ हज़ार जैन मुनियों की गर्दन काट कर मार डाला था शुंग भुमिहारों ने। 

मेरा एक अनुमान है कि यही वो काल है जब से *चाणक्य* नामक मिथक चरित्र की रचना करि , विष्णुगुप्त नामक एक नाटककार पेशे वाले ब्राह्मण ने । शायद मकसद था कि सम्राट अशोक  और मौर्य शासको  आर्थिक उन्नति के श्रय को  ब्राह्मणी देन प्रस्तुत करना समाज में। और इसी शुंग वंश के शासन के दौरान श्री कृष्ण के चरित्र के दोहरे चरित्र की भी रचना आरम्भ हुई, जिसमे कि कृष्ण की सोलह हज़ार पत्नियां वाला किस्सा गढ़ा गया। और संग में "राधा " नामक चरित्र का भी अविष्कार हुआ कृष्ण के साथ में। तथा वृन्दावन में रासलीला करने वाले कृष्ण चरित्र को पूजनीय बना दिया गया। ऐसा करने से  समाज में लोगों को बौद्ध धर्म के "सयम" और "आत्म नियंत्रण" वाले सबक से दूर बहका दिया गया। ये सब एक ब्राह्मणी साज़िश से हुआ मालूम देता है। यादवों के कृष्ण तो ब्राह्म हत्या को महाभारत के युद्ध के दौरान धर्म संगत बता चुके थे।  तो भूमिहार ब्राह्मणों को अब समाज को ब्राह्मण हत्या वाले धर्म से दूर ले जाना ज़रूरी था।  और संग में,  हवस से भरे भूमिहार ब्राह्मणों को अपने pleasure  से भरी hedonistic सोच और कृत्यों को समाज के समक्ष जायज़ भी प्रस्तुत करना था।  

[9/6, V 40 PM] AGSHSHHE:
 मेरी theory के अनुसार भूमिहारों ने ही प्रतिहिंसा की भावना से मनुस्मृति की रची हुई वर्ण व्यवस्था को "ठोस"  परिवर्तित किया और शुद्र जातियों के ऊपर घोर अमानवीय व्यवहारों को वेद पुराणों के अनुसार न्यायोचित बताते हुए क़हर बरपाना आरम्भ किया। यही से छुआछूत का प्रारम्भ हुआ । नयी "पौराणिक" साहित्यों की रचना करि गयी जिन्हें की "वेद" का दर्ज़ा दिया गया और जिनमे की तर्क दिये गये कि "ऐसे" व्यवहार क्यों जायज़ होते हैं अछूतों के संग। 

धीरे धीरे समाज बहकता हुआ सा,  बौद्ध शिक्षा वाले आत्म सयम के सबक से दूर खिसक गया और मौज़मस्ती  , यौन क्रीड़ा , कामसूत्र वाले तर्कों और धर्म का पालन करना शुरू कर दिया।

यह सब घटनाक्रम इस पहेली का जवाब है कि क्यों और कैसे बौद्ध धर्म, जो *भारत में से ही उपजा* और दुनिया भर के कई देशों में प्रचलित हुआ, *मगर भारत के संस्कृति में से ही वो नदारद है* ।

मेरे अनुसार ऐसा भूमिहार ब्राह्मणों के जुल्मोसितम के देन से हुआ है। और संभवतः भूमिहारों ने ही बौद्ध शासकों के बनाये विश्वविख्यात विश्वविद्यालय - नालंदा और तक्षशिला ― को लूटपाट करके अग्नि के हवाले करके नष्ट किया था। जबकि बाद के काल खंड में इसके आरोप मुग़लों और मुसलमानों पर गढ़ने की साज़िश कर डाली।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs