हिन्दू समाज में blasphemy जैसा विचार क्यों नहीं होता है

हिन्दू समाज में भगवानों और देवी-देवताओं का अपमान किया जाना कोई अपवाद नहीं होता है। भगवानों का तिरस्कार करना वर्जित नही है।

ऐसा क्यों?
हिन्दू देवी-देवता इंसान के स्वरूप में धरती पर अवतरित होते रहे हैं। वे मानस रूप में विचरण करते और जीवन जिये रहते है। और कभी भी ये नहीं कहते फिरते है कि वो भगवान है, या अवतार हैं। ऐसा सब आदिकालीन बहुईष्टि प्रथा का अनुसार हुआ है। 
 जबकि एकईष्ट प्रथा में भगवान धरती पर नही आते है, वो केवल पैग़म्बर भेजते है, या अपने मानस पुत्र को,  जो उनका संदेश ले कर आता है। और जो धरती पर सबको बताता है कि वो कौन है, और क्या संदेस लाया है उस दिव्य विभूति ईश्वर से। फिर ये संदेश भगवान का आदेश मान कर समाज में पालन किये जाते हैं।

इसके मुकाबले, हिन्दू देवता तो स्वयं से वो संदेश जीवन जी कर समाज को आदर्श पाठ में प्रदर्शित करते है।समाज को स्वयं से उन गुणों की पहचान करना होता है।  भगवानों को अपने मानस जीवन के दौरान अपनी आलोचना, निंदा, अपमान, तिरस्कार सभी कुछ झेलना भी पड़ता है। 

सो, हिंदु समाज में देवी देवताओं की आलोचना या अपमान कोई अवैध आचरण नही होता है।

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