हिंदू,हिंदू धर्म और हिन्दुत के विषयों पर ब्राह्मण मित्रो की आपसे क्या अपेक्षा स्वतः बनने लगती है

मैने ये बात कई बार देखी, सुनी और महसूस करी है,
और मुझे यकीन है कि आप भी अगर तजुर्बा करेंगे तो आपको भी यही लगेगा,
की जब जब हिन्दू धर्म और हिंदुत्व की बात आती है,

हमारे आसपास में संपर्क वाले ब्राह्मण मित्र, सखा तुरंत उछल उछल कर वेद पुराणों, उपनिषदों के कुछ संस्कृत श्लोकों की बात करने लग जाते है, 

जैसे मनो कि हिंदू होने का सबूत तभी माना जायेगा जब आप ऐसी श्लोकों को स्मृत कर लें, वर्ना इनके आगे नतमस्तक हो कर तर्क करना बंद कर दें।

वैसे, ये तो ब्राह्मण दोस्तो का सामान्य व्यवहार बन गया है कि वह आपसे हिंदू धर्म या हिंदुत्व के विषय आने पर तर्क करना बंद कर देने कि प्रचंड अपेक्षा करने लगते हैं।

और श्लोकों का मनगढ़ंत रचना किए जाने का प्रतिवाद तो कतई सुनना पसंद नहीं करते है। वह चाहते हैं कि उनके बताए गए श्लोक को आंख मूंद कर चिरकाल से आया, सनातन होने का सम्मान दे दिया जाए ।



Comments

Popular posts from this blog

Semantics and the mental aptitude in the matters of law

the Dualism world

It's not "anarchy" as they say, it is a new order of Hierarchy