प्रजातंत्र हड़प लिए जाने से क्या फर्क पड़ा है देशों पर

पश्चिमी देशों के अखबारों को पढ़ कर मालूम पड़ता है कि वे लोग राहुल गांधी के कैंब्रिज अभिभाषण से पहले से भी जागृत है कि दुनिया के कई सारे तथाकथित 'प्रजातांत्रिक' देश वास्तव में वहां के किसी न किसी कट्टरपंथी Right Wing नेता के हाथों तंत्र को हड़प लिए जा चुके हैं। 

मगर आजतक पश्चिमी देशों ने इन हड़पे गए  देशों में प्रजातंत्र बहाल करने के लिए कोई आक्रमण नहीं किया है। आर्थिक पाबंदियां तक नहीं लगाई है, अलबत्ता देशों के हालात ने खुद से ही उनकी आर्थिक प्रगति पर लगाम लगा दी है।  रूस में पुतिन के कर्मों को आज पूरी दुनिया देख रही है कि कैसे यूक्रेन पर हमला कर दिया है, और विश्व शांति व्यवस्था को खतरे में डाल रखा है। कितनी ज्यादा जानमाल की तबाही करी हुई है। और उल्टे चार कोतवाल डांटे की तर्ज पर , बयाना दे रहे हैं कि कैसे रूस ही यूक्रेन के हमले का पीड़ित देश हैं ! 

चीन में शी जिनपिंग ने कब्जा किया है। और ताइवान, भारत, वियतनाम, जापान से छूती हुई सीमाओं को युद्ध गर्जना कर करके त्रस्त कर रखा है। संग में, वैश्वीकरण (globalisation) के सिद्धांतों को हाशिए पर रख कर अमेरिका की IT कंपनियों के प्रजातंत्रीय नीति नियमों (जैसे कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति, मानवीय श्रमिक कानूनों) को अपने देश के गुप्तवादी, दमनकारी सरकारी नीतियों के आगे झुकाने की कोशिश में व्यापार बंद दिया है। 

सीरिया में बशीर अल असद ने अपने शासन को बनाए रखने के लिए अपने ही देशवासियों पर अपनी ही फौजों से हमला करवा दिया था। बहुत ज्यादा जानमाल की तबाही झेली देशवासियों ने। रूस के पुतिन ने इन हमलों में बशीर का सहयोग किया था ! 

तुर्की में एरडोगन ने मुस्लिम·ईसाई दंगे करवाए। विपक्ष को तो देश के बाहर जान बचा कर भागने पर मजबूर कर दिया। आज तुर्की में विपक्ष है ही नही। उनके नेता अमेरिका में जीवन जी रहे हैं, जान बचा कर। बदले में तुर्की यूरोपीय देशों और अमेरिका से आर्थिक असहयोग झेल रहा है। तुर्की वासियों को अमेरिकी या यूरोपीय वीजा मिलना मुश्किल होता है। एरडोगन रूस के संग सैनिकियी सहयोग करके यूक्रेन रूस युद्ध में मानवरहित ड्रोन उपलब्ध करवा रहा है, और वैमनस्य मोल ले रहा है। खुद तुर्की पर व्यापार की आर्थिक असहयोग के चलते महंगाई ताबड़तोड़ बढ़े जा रही है। एरडोगन जिसकी चर्चा भी नही करते हैं। केवल अमेरिका में बढ़ रही महंगाई की बात करते हैं, और अपने देश की महंगाई का छींटा अमेरिका की महंगाई पर फोड़ देते हैं। 

हंगरी के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। महंगाई की समस्याएं बढ़ रही है, व्यापार में वैश्विक समुदाय के असहयोग के चलते। 

प्रजातंत्र अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने में सहायक होता है। देशों को अपने अपने balance of trade को निगरानी में रखने में सहायता मिलती है। बिना निगरानी, और सत्यनिष्ठ economic data को सांझा किए, एक तानाशाह देश दूसरे प्रजातांत्रिक देश के धन और संपदा को हड़पने की अवैध, अनैतिक कोशिश कर सकता है। अडानी–हिंडेनबर्ग मामले में वही घटना घटने की गंध आने से विश्व समुदाय चौकन्ना हो गया है मोदी सरकार के प्रति। 

इजरियल में नेतेन्याहु के फिलिस्तीनियों पर बढ़ते जुल्मों सितम ने यूरोपीय देशों और पश्चिमी देशों को इजरायल के विरुद्ध स्थान लेने को मजबूर कर दिया है।आजतक ऐसा हुआ नही था की विश्व समुदाय इजरायल के साथ नहीं हो। मगर फिलिस्तीनियों के जानमाल की त्रासदी ने समूचे विश्व के मानववाद को झंकझोर दिया है। 

मोदी सरकार की भी मुस्लिमों और अलपसंखको पर हो रही घटनाओं ने पाकिस्तान के प्रति विश्व समुदाय को नरम रवैया लेने को बाध्य कर दिया है। पाकिस्तान से  प्रसारित होते आतंकवाद के खिलाफ भारत के दशकों की विश्व समुदाय से करवाई गई किलाबंदी की मेहनत पर पानी फेर दिया है मोदी सरकार के कारनामों ने।

मोदीजी रूस से तेल खरीद कर यूक्रेन रूस युद्ध में हो रही जानमाल की तबाही को बढ़ावा ही देते दिख रहे हैं।और तो और, अडानी बाबू जा कर military junta से शासित अप्रजातंत्रीय देश म्यांमार में बंदरगाह निर्माण के अपने धंधे को जमाते हुए पकड़े गए हैं अमेरिका के द्वारा। अडानी की कंपनी को अमेरिका के स्टॉक एक्सचेंज से निष्कासित किया गया है इसके लिए 

श्रीलंका में घटे जन विद्रोह को तो आपने नजदीक से देखा होगा। वहां पर भी राजपक्षे परिवार द्वारा प्रजातंत्र हड़प लिए जाने से बेहद आर्थिक तबाही आई, महंगाई बढ़ी, और अंत में जानमाल के नुकसान के बाद जनविद्रोह ही हो गया, जिसमे राजपक्षे को झोला उठा कर भागना पड़ गया था। 

कुल मिला कर, जहां जहां प्रजातंत्र ध्वस्त हुआ है, उन देशों में महंगाई और आर्थिक तबाही के मंजर निश्चित तौर पर दिखे हैं। बेरोजगारी बढ़ी है, गरीबी बढ़ी है, अमीर गरीब के मुद्रा संपदा के फासले बढ़े है, और कुछ एक व्यापारिक घराने रातोरत, दिन दूना रात चौगुना, बेहद अमीर हो गए हैं, जो कि तानाशाह डकैत सरकार को धन दे कर मीडिया को खरीद खरीद कर काबू करने में सहयोग देते रहे हैं। और फिर मीडिया वालों ने बदले में पैसा खा खा कर, जनता को गुमराह रखने का अभियान चलाया है, कि महंगाई "वैश्विक घटनाक्रमों के चलते आई है".। ये तानाशाह अमीर लोग अपने देश के प्रजातंत्र को ध्वस्त करके अमीर हुए, और खुद अपने देश छोड़ छोड़ कर दूसरे, प्रजातंत्रीय देशों में जा कर बस कर आज़ादी की सांस ले कर आराम से जी रहे हैं, प्रजातंत्र आज़ादी के मजे उड़ाते हुए ।

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