मार्क टुली और भारत की मिलावट संस्कृति

भारतीय संस्करण में मिलावट का मामला प्रचुर होता है। उल्हासनगर करके एक  मुम्बई शहर का एक क्षेत्र अकसर लघुउपहासों में आता है जहां हर चीज़ का डुप्लीकेट तैयार कर दिया जाता है। डुप्लीकेट , जैसे दूध में पानी मिलाना। बल्कि आजकल तो बिल्कुल synthetic दूध ही बना डालते, कपड़े धोने वाले पाउडर से। क्या करें कलयुग चल रहा है। और यह डुप्लीकेट उत्पाद हमारे स्वास्थ्य के लिए परम हानिकारक होते है।

तो मार्क टुली , पूर्व बीबीसी संपादक, जो काफी समय भारत में तैनाती पर थे, और अच्छी खासी हिन्दी भी बोलते है, वह कहते है कि भारत में पंथ निरपेक्षता यानी secularism के नाम पर असल में तुष्टिकरण ही हुआ है।
असल में यह मामला एक भारतीय संस्करण की मिलावट का था, जो secularism वाले "उत्पाद" में दिखाई पड़ा और जनचेतना में आया। अभी राजनैतिक विज्ञान के ऐसे और भी "डुप्लीकेट उत्पाद" पकड़े जाने बाकी हैं।

भारत की Democracy भी मिलावट वाली ही है। अफसरशाही यानी Bureaucratism को ही यहां बोतल पर लेबल बदल कर democracy समझा जाता है। इस मामले में तो मिलावट खुद संविधान ही कर देता है। (जी हाँ, संविधान अपनी मंशा में तो नही, मगर दिये गये प्रशासनिक ढांचे में दोषी है।)

हिदू धर्म का जो हिंदुत्व संस्करण है, वह भी made in ullhasnagar ही समझें। बिल्कुल नकली। इससे तबाही ही आयेगी, घृणा बनेगी समाज में।

भारत में पनपता समाजवाद भी मिलावट या synthetic दूध ही समझा जा सकते हैं। "वामपंथ" तो "गरीबी, अशिक्षा, कुप्रशासन बुलाओ" का दूसरा नाम है।

एक कारण की क्यों भारत में डुप्लीकेट प्रचुर है ,वास्तविक उतपाद से, वह यह है कि हमारे समाज मे मूल विचारकों की कमी है। हम लोग खुद ही मूल विचारों का अपमान , उपहास और त्रुटियां गिनाते रहते हैं, बजाए की उन्हें पहचान करके सम्मानित करें, और उनपर सुधार करके बेहतर बनाये। हमारी मूल सोच "आयात" प्रक्रिया से ही आती है।

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