तानाशाही प्रवृत्ति और जनसंख्या नियंत्रण के सीधे तरीकों का चयन

ज़्यादातर विचारकों के अनुसार देश की तम्माम समस्याओं का मूल यहां की विशाल , अनियंत्रित आबादी को समझा जाता है। कुछ भी हो -- सड़कों पर यातायात क्यों बेकाबू है?, स्कूलों में शिक्षक क्यों नहीं आते? अच्छी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा क्यों नही दी जाती?, अस्पतालों में बेड की कमी क्यों है?, गुणवत्तापूर्ण ईलाज़ क्यों नही दिया जाता?, न्यायपालिका में सुनवाई में देर क्यों लगती है? , घूस क्यों देनी पड़ती है जल्दी सुनवाई के लिए?, पुलिस क्यों नही fir प्राथिमिकी दर्ज करती है?, समय पर जांच और बचाव कार्यवाही क्यों नही करती है?-
---- लाखों सवालों का एक जवाब आसानी से दे दिया जाता है -- *बड़ी, विशाल आबादी* ।

और फिर विशाल आबादी को नियंत्रित नही कर सकने के लिये देश की प्रजातंत्र व्यवस्था को दोष दे दिया जाता है क्योंकि यह जनसंख्या को सीमित करने वाले सीधे तरीकों को लागू करने में सभी के हाथ बांध देती है - सीधे तरीके क्या हैं-- जैसे, जबरदस्ती नसबंदी, दो से अधिक संतानों पर दंड, जुर्माना; या कि बच्चों के जन्म से पूर्व सरकार की अनुमति लेना, इत्यादि।

तो, कहने का मतलब है कि प्रशासनिक विफलता किसी अयोग्यता का नतीजा नही है, बल्कि तंत्रीय बाधाओं की वजहों से हैं।

मगर गहराई में जा कर मंथन करें तो आप पाएंगे कि जनसंख्या को नियंत्रण नही सकना तो खुद ही प्रशासनिक अयोग्यता का नतीज़ा है।

operations management और प्रयोद्योगिकी का विषय ज्ञान रखने वाले शायद इस बिंदु को बेहतर समझ सकें। आज के युग मे जिस प्रकार की प्रौद्योगिकी उपलब्ध है - कंपूटर तंत्र जहां एक एक इंसान का मिनट दर मिनट ब्यौरा रिकॉर्ड करा जा सकता है, map के सुविधा जहां ज़मीन के एक एक इंच का हिसाब रखा जा सकता है, मोबाइल और कैमरा, पैन कार्ड और आधार कार्ड जैसी व्यवस्था, जन सूचना के माध्यम, फिल्में, समाचार चैनल, टीवी, जनसंख्या नियंत्रण के यंत्र , कंडोम, इत्यादि-- वहां अब किसी भी तानाशाही पूर्ण "सीधे" तरीकों की बात करना बेईमानी ही है,अपनी व्यक्तिगत अयोग्यता को छिपाने की।

जनसँख्या बढ़त को प्रजातांत्रिक दायरों में रह कर नियंत्रित किया जा सकता है। यानी विलंबित और प्रेरणा कारी मार्ग पर चलते हुए भी इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकना असम्भव नही था, बशर्ते कि मानसिक अयोग्यता न हो प्रशासनिक अधिकारियों के मध्य - जो कि किसी निजी बौद्धिक विफलताओं के चलते बारबार तानाशाही वाले "सीधे" रास्तों की और ही मुंह करते रहते है।

आज की दुनिया मे जनचेतना को अपने अनुसार मोड़ सकना ज्यादा मुश्किल काम नही है। फिल्मों के माध्यम से यह आसान हो गया है। इसी प्रकार, आज के युग मे तमाम विकल्प मौजूद रहते हैं यदि इंसान प्रेरित है जनसंख्या नियंत्रण के प्रति, तो फिर pregnancy को रोक सकने में।

*तो फिर क्यों प्रशासन हमेशा तानाशाही वाले "सीधे" तरीकों पर मुहं टिकाये रहता है?*
होता क्या है कि प्रशासन की एक सच्चाई यह है कि हर युग मे, हर सभ्यता और देश मे, प्रशासन में अधिकतर लोग अयोग्यता से ग्रस्त रहते हैं। यह अयोग्यता उनके मध्य आराम से टैक्स के पैसे पर मिलती तनख्वाह की वजहों से पैदा हो जाती है। तो वह बैठे बैठे ऐसे बहानों को तलाश करते रहते हैं जहां वह अपनी अयोग्यता को छिपा लें, और सामने पड़ी विफलता की लाश का क़ातिल किसी ऐसे चीज़ पर आरोप लगा दे कि मानो यह तो तंत्रीय विफ़लता है, उनकी व्यक्तिगत नाकाबिलियत नही।

Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता