आर्थिक मंदी का क्या अर्थ और अभिप्राय होता है ?
कल बात चल रही थी कि आर्थिक मंदी का क्या मतलब हुआ? और यह कैसे आती है? कैसे पता चलता है की मंदी आ गयी है? इसके आने से समाज पर क्या असर होता है?
अपने संक्षिप्त ज्ञान के आधार पर सभी कोई अपना अपना मत प्रस्तुत कर रहा था, जो की शायद किसी विस्तृत ज्ञान या प्रत्यय को समझने की सबसे उचित पद्धति होती है -- वार्तालाप एवं चर्चा।
एक मत के अनुसार सवाल उठ रहा था कि आखिर सारा पैसा (/धन) कहां गायब हो जाता है? क्या लोग धन को अपने घरों में छिपा लेते हैं, तिजोरियां भर ली जाती हैं, जिससे की बाज़ार में घन की कमी आ जाती है? आखिर क्यों लोगों ने घर, मोटर कार और यहाँ तक की biscuit भी खरीदने बन्द कर दिये हैं ?
एक मत के अनुसार सवाल उठ रहा था कि आखिर सारा पैसा (/धन) कहां गायब हो जाता है? क्या लोग धन को अपने घरों में छिपा लेते हैं, तिजोरियां भर ली जाती हैं, जिससे की बाज़ार में घन की कमी आ जाती है? आखिर क्यों लोगों ने घर, मोटर कार और यहाँ तक की biscuit भी खरीदने बन्द कर दिये हैं ?
एक दूसरे मत के अनुसार हमारे देश का सच ही यह हुआ करता था की यहां एक parallel economy चक्र था, जिसमे की कारोबार cash अवस्था वाले घन में ही चलता था (जिसे की काला धन भी बुलाया जाता है ), और जहां की सरकार को टैक्स देने की कोई फिक्र नही हुआ करती थी व्यापारियों को। यह वाली economy में हमारे देश का कुल धन का करीबन 80% अंश प्रयोग में था। इसमे सामान के फैक्टरी उत्पादन से लेकर विक्री तक , छोटे उद्योग पूरी तरह युग्न हुआ करते थे। और जब से यह यकायक वाला DeMonetisation हुआ, फिर आधार कार्ड, और फिर GST आया, उस वाले धन स्रोत पर सूखा-आकाल आ गया है। इनकी वजहों से यह उत्पादन प्रणाली ठप्प पड़ने लगी क्योंकि फैक्टरी के कार्मिकों को भुगतान के तरीके पर GST और आधार कार्ड/ बैंक account/ pan कार्ड का पेहरा बैठ गया। "व्यापारी" यानी लघु उद्योगों के स्वामी हक्केबक्के रह गये और टैक्स के बचाने के कोई मार्ग नही मिलने से चुपचाप ,कुंठा के संग धीमे-धीमे नए रास्ते तलाश कर रहे हैं, और जो प्रक्रिया शायद अभी चालू ही है। इधर सरकार में GST , आधार कार्ड, टैक्स नियम इत्यादि भी इतने अस्थिरता और त्रुटियों से बनाये गए है, स्पष्ट सिद्धांतों की कमी है कि गलतियां पकड़ी जा रही हैं, और व्यापारियों को समझना मुश्किल पड़ने लगा है। वह बेचारे एक पहले ही बदहाल हो गये है कि अभी तक अपने फैक्टरी के तकनीकी ज्ञान और कौशल में मुश्किल जीवन जी रहे थे , मगर टैक्स व्यवस्था के चक्र के बाहर रहते है। मगर अभी gst से लेकर bank account और आधार कार्ड, pan कार्ड ने जीवन दो गुना मुश्किल कर दिया है। उनके अनुसार सरकारी बाबू का क्या है -- वह तो रिश्वत की खा कर आसानी से सो जाता है, उसको थोड़े ही न उद्योगिक कौशल और क्ष्रम का बोध है कि कैसे अभी दोगुनी और दो-राही ज्ञान टटोलना पड़ रहा है व्यापारियों को।
एक तीसरे मत के अनुसार सरकार के misplaced priorities यानी गलतफहमी से भरी "आवश्यता सूची की प्राथमिकता" आर्थिक मंदी का कारण है। सरकार हिन्दू-मुस्लिम विवाद वाले विषय, या भारत-पाकिस्तान विवाद वाले विषयों के आधार पर ही वोट कमाते हुए सत्ता में टिकी है। इसके चलते वह अरबों रुपयों से हथियार खरीदना, या विज्ञापन , प्रचार इत्यादि में अधिक प्राथमिकता दे रखी है। मीडिया को खरीद कर उसका मुंह बन्द करने के लिए, झूठे और उकसाऊ कार्यक्रम प्रायोजित करवाने के लिए टैक्स का पैसा ही प्रयोग किया जा रहा है।
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