ब्राह्मणवाद क्या है? इसको कैसे समझा जाये?
ब्राह्मणवाद क्या है? इसको कैसे समझा जाये?
महान यूनानी दार्शनिक और चिंतक, एरिस्टोटल, जिनके पास अपने समय के समाज वालों के बहुत सारे सवालों और प्रकृति के रहस्यों का जवाब था , वे अक्सर लोगों के सवालों के जवाब देते-देते विवादों और शास्त्रार्थों में दूसरो के साथ उलझ जाया करते थे। इस भीषण बौद्धिक द्वन्द के दौरान वे अपने जवाब को उचित सिद्ध करने की चेष्ट करते थे, और कई कई बार वे सिद्ध भी हो जाया करते थे। इसलिये उनके समाज के मान्य लोगों में उनका बहुत सम्मान हुआ करता था। अपने समर्थकों से प्ररित हो कर एरिस्टोटल ने ही ऐसे उपवन तथा वाटिकाओं को आरम्भ किया था जहां वे अपने शिष्यों के संग विचरण करते हुए समाज के सवालों का और प्रकृति के रहस्यों पर विमर्श करते हुए उनके गुत्थीयों को तलाशते थे। एरिस्टोटल के वे उपवन तथा वाटिका ही अकादमी कहलाने लगे जहां तत्कालीन यूनानी समाज के समृद्ध और उच्च कोटि वर्ण के लोग अपने बालको को एरिस्टोटल के पास भेजा करते थे विमर्श करते करते अपनी बौद्धिक कौशल को प्रवीण करने के लिए। वह अकादमी (academy) भविष्य में जा कर ये आधुनिक कालीन पाठशालाओं की नींव बनी।
मगर एरिस्टोटल तक अपने समय के कुछ लोगों से बहस करने में डरते थे। और अपने शिष्यों को भी ऐसे लोगों को तुरंत उनकी बातचीत और विचारो के माध्यम से पहचान करके उनसे दूरी बना लेने की सीख दिया करते थे। इन प्रकार के लोगों को एरिस्टोटल के समाज वाले sophist करके पुकारा करते थे, ऐसे लोग जो की बहोत जटिल , विपरीत बोधक विचारो को एक संग अपना कर अपने दिमाग में पालते थे, तथा अपनी सुविधानुसार प्रयोग करते हुए एरिस्टोटल को शास्त्रार्थ में आसानी से पराजित करके ग़लत सिद्ध कर देते थे।
दरअसल एरिस्टोटल ने पहचान लिया था की sophist लोगों के विचारो की बुद्धि में बहोत सारे विचारो का मिश्रण होता है – और वे लोग एक अन्य, एक "विशेष प्रकार की बुद्धि", जो उनके पास पाई नहीं जाती है, और इसलिए उसके प्रयोग को नहीं करने से इन तमाम मिश्रण में एक विचार से किसी दूसरे विचार से विपरीत होने की शिनाख़्त नही कर पाते है। दो विपरीत बोधक विचारों को पहचान करके उनको अलग कर देने के लिए उनके दिमाग में कुछ बुनियादी नियम नही निर्मित हो सके है। ये "विशेष प्रकार" की बुद्धि किसी एक विचार से निकलने वाले तमाम अभिप्रायों और निष्कर्षों को तय कर करके दूसरे विचारों से उनका विपरीत होना सिद्ध करती है।
बुद्धि के इन बुनियादी नियमों को एरिस्टोटल logic करके पुकारते थे।
आधुनिक काल में logic के ये नियम सुनने में बहोत सर्वसाधारण सुनाई पड़ेंगे, मगर उनके अपने समय में ये वौद्धिक कौशल के नियम करीब अनभिज्ञ हुआ करते थे , तथा एरिस्टोटल जैसे विर्ले लोगों के पास ही होते थे। sophist वे वर्ग के लोग थे जो इन नियमों को न ही जानते थे, न स्वीकार करते थे। इसलिये एरिस्टोटल उनसे दूर भागते थे, और ऐसी ही शिक्षा अपने शिष्यों को भी देते थे, उनके प्रति।
ब्राह्मणवाद हमारे आधुनिक काल के भारत के वही sophist वर्ग के तौर पर समझे जा सकते है, जो की वैचारिक शुद्धता नही रखते हैं। वैचारिक शुद्धता का अर्थ ये नही है कि अनैतिक, व्यभिचारी ,गंदे विचार रखते है। बल्कि अशुद्ध का अर्थ है की तमाम विचारो का मिश्रण करके एक संग रखते है, तथा logic के बुनियादी नियमों को नही स्वीकार करते हुए दो विपरीत अर्थी विचारो को शिनाख़्त करके अलग-अलग नही करते हैं। वे सुविधानुसार अपनी बातों को पलट दिया करते हैं।
ब्राह्मणवाद का अर्थ किसी विशेष जातिय वर्ग से नही होता है। ब्राह्मणवाद एक वैचारिक मिश्रण तरीके की क्षय(disorder) है, जो कि किसी भी जाति के व्यक्ति में पाया जाता है। मगर इसको ब्राह्मणवाद इसलिये नाम दिया गया है क्योंकि इतिहासिक तौर पर भारतीय समाज में अधिकांशतः वैचारिक मंथन करने का नेतृत्व ब्राह्मण जाति के लोगों ने ही किया था, मगर वे लोग अपने से सही और बेहतर विचार के आने पर उन विचारो को तोड़-मरोड़ और विकृत करके अपने को सही साबित करने हेतु परिवर्तित कर दिया करते थे (और हैं)। और फिर समाज में वो विकृत हुआ विचार प्रसारित कर दिया।
हम आज भी 'भक्तगणों' में logic की कमी को देख कर उनकी पहचान कर सकते है। और हम ये भी देख सकते हैं की प्रायः ऐसे लोग किसी एक राजनैतिक पार्टी की और झुकाव रखते है ।
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