कहाँ से, कैसे आये हैं भारत के उद्योगपति
भारत में अधिकांश
उद्योगपति कोई व्यवसायिक श्रमकर्ता नहीं है अपने उद्योग के क्षेत्र में। वे सब के मात्र
निवेशक के तौर पर प्रवेश करके उस उद्योग के स्वामी बने है।
और उनके पास निवेश करने की पूंजी कहां से आई है?
पुराने जातिगत पेशे तथा सामुदायिक प्रथाओं से तैयार करी है ये पूंजी<
और उनके पास निवेश करने की पूंजी कहां से आई है?
पुराने जातिगत पेशे तथा सामुदायिक प्रथाओं से तैयार करी है ये पूंजी<
जब अन्य जातियां
अंतर्द्वंद से ग्रस्त थी, समाज की अर्थनीति में पैसे का चलन नहीं हुआ करता था, वे सब
ब्राह्मणों के धार्मिक प्रपंच बहकावे में जातपात कर रही थी, कुछ मारवाड़ी समुदाय अंतरिक
विश्वास और सहयोग करने वाली प्रथाएं अपना रहे थे, जिस सहयोग और विश्वास का प्राप्त
करने का साधन बन रही थी —मुद्रा, यानी पैसा। अहीर अभी गाय पशु को ही
अपना धन मानता था, जबकि व्यापारी समुदाय गाय से निकाले हुए दूध को बेच कर प्राप्त हुई
मुद्रा को अपना धन मानता था। कुम्हार और बढ़ाई अभी राजा की शाबाशी और गले से निकली
स्वर्णमाला को अपने बेहतर कारीगरी कौशल का ईनाम मानता था, व्यापारी समुदाय राजा
को कर दे कर दोस्ती कर लेने में ईनाम समझता था। ऐसे ये मारवाड़ी और मेवाड़ी
लोग(अधिकांशतः जैन परिवार के लोग) धनवान बन गए और वही आगे चल कर बिरला, अदानी अग्रवाल
और गोयल बने। कोई व्यवसायिक कौशल नही था, श्रम नही था। इन्हे निवेश करके प्राप्त हुआ
है उद्योग का स्वामित्व।
आज भी जब व्यवसायिक "शूद्र" जातियां आरक्षण के लिए संघर्ष कर रही है, व्यापारिक जातियां अपने आदमी को प्रधानमंत्री बनाने की युक्ति करने में लगी। शूद्रों के बुद्धिजीवियों की बुद्धि अपने समाज को "शूद्र–कारी आरक्षण" से हटा कर, उद्योग समुदाय में तब्दील हो जाने की दिशा में खुली नहीं है।
आज भी जब व्यवसायिक "शूद्र" जातियां आरक्षण के लिए संघर्ष कर रही है, व्यापारिक जातियां अपने आदमी को प्रधानमंत्री बनाने की युक्ति करने में लगी। शूद्रों के बुद्धिजीवियों की बुद्धि अपने समाज को "शूद्र–कारी आरक्षण" से हटा कर, उद्योग समुदाय में तब्दील हो जाने की दिशा में खुली नहीं है।
04 Jan 2023
Comments
Post a Comment