भारतीय समाज में कुछ गैर-संवैधानिक आरक्षण कारणों के चलते विज्ञान और छदमविज्ञान को मिश्रित कर देने वाले वाले मिश्रण वर्ग ने देश के अध्यात्म को कब्ज़ा किया हुआ है और छेका हुआ है।

10/05/2020
शायद अंग्रेज़ी भाष्य लोग इस लेख को कभी भी न पढ़े। 

मगर जो आवश्यक चितंन यहां प्रस्तुत करने की ज़रूरत है वह यह कि भारतीय समाज में कुछ गैर-संवैधानिक आरक्षण  कारणों के चलते विज्ञान और छदमविज्ञान को मिश्रित कर देने वाले वाले मिश्रण वर्ग ने देश के अध्यात्म को कब्ज़ा किया हुआ है और छेका हुआ है।

भारत की ज्ञान गंगा में पिछले चंद सालों से सामाजिक चिंतन में शुद्धता और पवित्रता लाने वाली संस्थाएं कमज़ोर पड़ती चली गयी हैं क्यों कि राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रवाद के मार्ग से सही और ग़लत का मिश्रण कर देने वाले वर्ग ने देश पर राजनैतिक कब्ज़ा जमा लिया है !

यह वर्ग विज्ञान को उनके प्रक्रियाओं से पहचान कर सकने में असक्षम में, बस विज्ञान को उनके उत्पाद से ही पहचान पाता है। और क्योंकि अभी राजनैतिक वर्चस्व में है, तो फिर तमाम तिकड़म प्रयासों से उत्पाद पर label बदल कर धर्म का लगा देता हैं, जिससे समाज में धर्मान्ध व्यापक होने लगी है।

क्यों करता है वो ऐसा?

क्योंकि वह खुद नाक़ाबिल लोग का मिश्रण वर्ग है - जो विज्ञान चिंतन शैली से नावाक़िफ़ है। वो नही समझ सकता है कब क्या , क्यों किसी विचार को वैज्ञानिक मानते है, और कब नही। तो वह भ्रामक विचारों से लबालब , राजनैतिक वर्चस्व के माध्यम से स्वयं को समाज में सिद्ध करने पर उतर आ रहा है।

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