जापान ने कोरोना संक्रमण को कैसे परास्त किया-- जापानियों का अनुशासन या फिर बौद्ध धर्म की शिक्षा
जापान के बारे में बताया जा रहा है कि उन्होंने corona संक्रमण को करीब क़रीब हरा दिया हैं।
और जापानियों ने कर दिखाया है बिना कोई test kit की सहायता से, न ही कोई दवा ईज़ाद करके !
तो फ़िर उन्होंने यह कैसे कर दिया? मात्र mask और gloves(दस्तानों) की सहायता से!
जापानी लोगों का "अनुशासन" बहोत चर्चित चीज़ है, दुनिया भर में। अगर कोई ऐसा कार्य हो जो कि विस्तृत सामाजिक स्तर पर समन्वय प्राप्त करने पर ही सफ़लता दे सकता है, तब जापान ही ऐसा एकमात्र देश होगा जो कि ऐसा समन्वय वास्तव में प्राप्त कर सकता है! ऐसे समन्वय को ही हम भारतीयों की छोटी बुद्धि के अनुसार "अनुशासन" बुलाया जाता है। क्योंकि हम सैनिकिया टुकड़ियों में एकसाथ क़दम ताल करते समय ही एकमात्र पल है जब आबादी के छोटे टुकड़े का आपसी परमसहयोग का अनुभव करते हैं। सैनिकों में यह आपसी सहयोग बाहर से पिटाई/हिंसा इत्यादि "बाहरी ज़बरदस्ती" के मार्ग से लाया जाता है, जिस प्रशिक्षण के दौरान इसे निरंतर "अनुशासन" बुलाया जाता है।
मगर जापानियों में यह "अनुशासन" 'बाहरी' नही है। अभी दक्षिण कोरिया ने जब ऐसा ही कुछ corona संक्रमण के प्रति प्राप्त किया था , तब बहोत सारे लोगों ने इसका श्रेय दक्षिण कोरिया के राष्ट्रनीति conscription को दिया था, जिसके तहत वहां देश के प्रत्येक युवा को कम से कम तीन वर्ष की सैनिकिय सेवा देना आवश्यक कानून होता है। भारत के बड़े उद्योगपति श्री आनंद महेन्द्रा जी ने भी हालफिलहाल में भारत में conscription को अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। बताते हैं की भारत का औसत युवा किसी भी क्षेत्र में सेवा देने योग्य बौद्धिक तौर पर विकसित नही होता है।
बरहाल, जापान में conscription अनिवार्य नही है, मगर तब भी जापानियों में यह सामाजिक स्वतः क्रिया करने की क्षमता अपार होती है। जो काम एक व्यक्ति करता है, उसे स्वतः ही पूरा देश अपना लेता है और पालन करता है बिना की "आदेश" , police के दबाव इत्यादि के ही।
ऐसा क्यों ? क्या यह "अनुशासन" की देन है?
ध्यान दें, तो जापान और दक्षिण कोरिया, यहाँ तक की उतरी कोरिया और चीन - यह सब देश बौद्ध धर्म की सामाजिक संरचना नीति वाले देश हैं।
बौद्ध धर्म का क्या योगदान हो सकता है समाज में तथाकथित "अनुशासन" को प्राप्त करने में?
बौद्ध धर्म का जो प्रकार इन देशों की सामाजिक संरचना में कितनों ही युगों से वास करता है, उसमे आत्मसंयम, आत्म ज्ञान, इत्यादि पर बल दिया जाता है। इंसान का उसी आयु के अनुसार विकास में एक पायदान बौद्धिक विकास का भी होता है जब इंसान आपसी सहयोग को स्व:प्रेरणा से प्राप्त करना सीख जाता है। बौद्ध धर्म का योगदान यही है कि उसकी शिक्षा में ही समाज की बड़ी आबादी में इस के उच्च बौद्धिक विकास को प्राप्त कर सकने का मार्ग जुड़ा हुआ है। जहां हमारे यहाँ देश में योग का नाम पर yoga pants निकल पड़ी हैं, और योग का अर्थ किसी किस्म की शारीरिक exercise मान लिया गया है, जापानी,कोरिया और चीन से लेकर विएतनाम , थाईलैंड और बर्मा तक के बौद्ध धर्म में योग का अभिप्राय आत्म-संयम, आत्म-साक्षात्कार, इत्यादि से है। इसलिये यह लोग बिना किसी बाहरी "आदेश" या अनुशासन के ही "स्व:प्रेरणा" से यह सब प्राप्त कर लेते हैं।
बौद्ध धर्म का जापानी वर्णन उनके देश की बड़ी आबादी को आत्म-मुग्धता से निवृत करता है। भारत की बड़ी आबादी आत्म-मुग्धता से ग्रस्त है। आत्म-मुग्धता इंसान में सत्य के दर्शन करने की सबसे बड़ी बाधा होती है। जिसे कहावत में कहते हैं कि "खुद को आईना दिखाना" , आत्ममुग्धता ही वह बाधा है, जो इंसान को खुद को मन के आईना में देखने से रोकती है, यानी सत्य को पहचान कर उसे स्वीकार करने से रोकती है।
बड़े ही आश्चर्य की बात है की आत्ममुग्धता के प्रति यह ज्ञान रामायण और महाभारत जैसे काव्यों से ही निकला है मगर आज इस ज्ञान का निवास भारत की संस्कृति में नही मिलता है ! रामायण में जहां रावण के चरित्र में आत्ममुग्धता अगाध है, वहीं महाभारत के गीतासंदेश में भी निर्मोह की शिक्षा है, कर्तव्यों के पालन के प्रति । आत्ममुग्धता से मुक्ति का साधन निर्मोह ही होता है। क्योंकि मोह ही तो मुग्धता को उतपन्न करता है।
मोह आवश्यक नही है कि वह प्रेम के प्रकार में ही हो ! घृणा भी एक प्रकार का मोह होता है। जब इंसान किसी से घृणा करता है, तब वह निरंतर उसी घृणा पात्र के विषय व्यसन करता है, और तब वह अनजाने में उस पात्र से मोह कर रहा होता है। वह किसी नये, अच्छे ज्ञान को स्वीकार कर सकने के प्रति सचेत नही हो पाता है। मोह से मुक्ति को निर्मोह कहा जाता है। निर्मोही इंसान ही नये ज्ञान , नये मार्ग के प्रति सचेत होते हैं। और फ़िर अन्य बौद्धिक निर्णयों में भी ऐसे इंसान प्रवीण बनते हैं।
जापान के लोग आयु में भी दुनिया के सबसे वृद्ध आबादी के लोग है। कहा जा रहा है कि corona संक्रमण वृद्ध आबादी पर ज़्यादा घातक साबित हो रहा है। मगर तब भी जापानियों ने अपने स्वतःस्फूर्त समन्वय से काबू में कर दिखाया है।
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