कथा वाचन और u turn लेती वर्तमान काल की राजनीति

सत्य के साथ मे मुश्किल यह होती है कि वह औझल ही रहता है और फिर लंबे समय के उपरांत तभी प्रकट होता है जब कोई शोध, अन्वेषण या अविष्कार किया जाता है।
सत्य की आवश्यकता इंसान और समाज को इसलिए होती है क्योंकि इसके बिना तो समाज मे शांति,विकास और  समस्याओं का समाधान मुमकिन नहीं होता है।

इतिहास के विषय मे सत्य के अप्रकट होने से समाज मे अपनी दिक्कतें घटने लगती हैं। सामाजिक इतिहास के तथ्य तम्माम समाजों को आपसी संपर्क होने पर तुरंत प्रतिक्रिया करने का प्रेरक होते हैं। वर्तमान काल के कूटनीतिज्ञ इसीलिए सामाजिक इतिहास के आसपास के तथ्यों को एक समान प्रमाणित होने देने से बचना चाहते हैं। क्योंकि एक ही बार में  बड़ी तादाद में वोटों को किसी एक के पक्ष में, या विरुद्ध में स्थानांतरित करने का सबसे आसान युक्ती इतिहासिक तथ्यों की मदद से अलग-अलग कथा 【 narrative 】 लिखने से ही बनती है। तभी तो सामाजिक तथ्यों में वही स्वतंत्रता संग्राम, वही गांधी और वही नेहरू है, मगर दोनों पक्षों की कथाएं अलग-अलग हैं इन सब इतिहासिक तथ्यों के प्रति।

कथा रचना और इतिहास को समझाने के बीच मे बहोत ही महीन अंतर होता है। कारण इंसानी मनोविज्ञान में बैठा है। कि,हर कोई हर घटना और तथ्य को अपने अपने पक्ष में से देखता है। इसे ही " दृष्टिकोण " कह कर पुकारा जाता है। हर इंसान का अपना दृष्टिकोण होता है घटनाओं और तथ्यों को समझने का।
और फिर दृष्टिकोण से जो विस्तृत खाका तैयार होता है, उसे ही कथा कहते हैं। कथा वाचन के माध्यम से आप नई पीढ़ी को अपने पक्ष के दृष्टिकोण को उसके बचपन से वैसे ही समझाते हुए तैयार करते रहते हैं।
यहां से सामाजिक इतिहास के सत्य की दिक्कत आती है। कि , यदि इंसानों द्वारा कभी कोई पूर्ण निर्माह और निष्पक्ष सत्य कभी तलाश भी कर लिया गया था, तब भी वह फिर से गुमशुदा बनाया जा सकता है तमाम कथाओं के बीच मे बस एक और कथा बन कर।
तो इस तरह से इंसानों के समाज को कूटनीतिज्ञ कठपुतलियों के तरह आसानी से नचाते रहते हैं। जब चाहा, कथा को बदल दो और आसानी से दोस्ती को दुश्मनी और फिर वापस दोस्ती में बदलते रहो।
कथा को बदल देना तो आजकल के युग मे और भी आसान हो गया है। अखबारों में , फिल्मों से, सोशल मीडिया के लेखों से, प्रचार और विज्ञापन के माध्यमों से जब चाहो जैसी चाहो वैसी कथा के अनुसार तथ्यों पर प्रकाश डालते रहो और सम्बद्ध कथा का प्रचार करवा दो। तो इस तरह u-turn पॉलिटिक्स आजकल का बेशर्म सत्य हो चली है। सत्ता स्वार्थ के खातिर जो दो लोग कल विरोधी थे,वही आज सहयोगी बन जाते हैं, और फिर वापस परसों विरोधी बन कर, फिर दुबारा सहयोगी बन जाते हैं। इस खेल में सिर्फ कथावाचन ही महत्वपूर्ण बिंदु है। क्योंकि कथा वाचन ही जनता को नचाने की डोर होती है,जिससे जनता को कठपुलती की तरह नचाया जाता है।
मगर कथावाचन के तमाम हथकंडों के बावजूद ऐसा नही है कि निष्पक्ष और निर्मोह सत्य का अर्थ और अभिप्राय ही इंसानी चेतना में से समाप्त हो गया है। सत्य अभी भी अस्तित्व करता है,उसकी आवश्यकता आज भी उतनी ही है, मगर बस वही - कि, वह ओझलता के बादलों से घिरा हुआ  रहता है।
राजनैतिक हालातों में क्या फैसला वाकई में तुरत आवश्यक है, और क्या नही इसकी सत्य ज्ञान अंततः प्रत्येक इंसान को खुद अपने ही परख से करना होता है,अन्यथा बाकी सभी माध्यम तो कथा वाचन  के अस्त्र बन चुके हैं। निष्पक्षता और निर्मोह में यह बिल्कुल सम्भव है कि किन्ही दो पुराने विरोधियों को सामाजिक ज़रूरतों के चलते सहयोगी बन जाना आवश्यक हो जाये, मगर फिर सामाजिक जरूरत का सत्य भी तो खुद में कथावाचन का मोहताज़ होता है।

जिसके पास कथावाचन के अस्त्र अधिकः मौजूद होते हैं, जो विज्ञापन और प्रचार का प्रयोग अधिक करते हैं, प्राय: वही लोग जनता को गुमराह भी अधिकः करते हैं, क्योंकि सत्ता में उनका ज्यादा स्वार्थ होता है।

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