क्यों हो रहा है विश्व व्यापक प्रजातंत्र का पतन?

 क्यों हो रहा है विश्व व्यापक प्रजातंत्र का पतन?

क्योंकि शायद प्रजातंत्र अव्यवहारिक, निरर्थक हो गए हैं समाज को स्थिर और उन्नत बनाए रखने में? क्या ऐसा कहना सही है?

यदि समाज में विज्ञान औ प्रोद्योगिकी नही बढ़ रही हो, तब शायद प्रजातंत्र निर्थक हो जाते हैं। अलग अलग गुटों को बारी बारी से जनधन को लूट खसोट करने का मौका देते है बस, और कुछ नहीं। इस प्रकार से प्रजातंत्र मूर्खता और पागलपन का दूसरा पर्याय समझे जा सकते हैं। 

इसी लिए कुछ अंतर के साथ नए प्रकार के चरमवादी प्रजातंत्र निकल आए हैं। शुरुआत दक्षिणपंथियों ने करी है। समूचा तंत्र जीवन पर्यंत हड़प लेने की पद्धति लगा दी है, प्रत्येक संस्था पर अपने लोगो तैनात करके। 

इनमे स्थिरता है या नहीं, समाज और दुनिया को शांति देने का चरित्र है या नही , ये अभी देखना बाकी है। 

फिलहाल ये नए चरमवादी प्रजातंत्र परमाणु बमों की धमकी पर विश्वशांति कायम कर रहे हैं। जो कि अत्यंत असुरक्षित है,कभी भी खत्म हो सकती है, एक छोटी सी चूक से।

देश के भीतर ये तंत्र तीव्र असंतुष्टि को जन्म दे रहे हैं। ये अमीर गरीब के फासले बढ़ा रहे हैं। बेरोजगारी और शोषण ला रहे हैं, भ्रष्टाचार को एक पक्षिय कर के सारा धन केवल कुछ सत्ता पक्ष घराने की झोली में डाल रहे हैं। सरकारी संरक्षण वाला वर्ग खुल कर खा रहा है। झूठ, मक्कारी, अल्पसंख्यकों का दमन सरकारी संरक्षण में हो रहा है। नागरिक स्वतंत्रता की गुपचुप निगरानी हो रही है। सरकार ही शोषण भी कर रही है, और बचाव का ढोंग भी।

देखना होगा, कहां ले कर जायेंगे देश दुनिया को, नए चरमपंथी प्रजातंत्र।

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