अभद्र बोल वाले भोजपुरी गीत -- क्या भाषा जनित भेदभाव का मुद्दा है , या की यह नज़ाकत और नफासत की कमियां है ?

 सुशांत सिंह राजपूत विषय में से एक और सामाजिक तथा क्षेत्रीय संस्कृति विषय सामने निकल कर बाहर आया है।

The Print समाचार पत्रिका के लिये कार्य करने वाली पत्रकार सुश्री ज्योति यादव जी ने संदिग्ध रिया चक्रवर्ती के लिये प्रयोग किये गये आपत्तिजनक शब्दों का मुआयना किया और अपनी तफ़्तीश का कोण यह रखा है कि आखिर क्यों सुशांत तथा उनके परिजनों में मधुर संबंध नहीं थे । रिया चक्रवर्ती के लिए प्रयोग किये गये आपत्तिजनक शब्द अधिकतर सुशांत के fans और भोजपुरी-भाषी समर्थक पक्ष से आये हैं, जिनमे रिया पर काला जादू , बंगालन जादूगरनी इत्यादि जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया गया है ।


पत्रकार सुश्री ज्योति यादव जी (मूलनिवास हरियाणा) का लेख प्रत्यक्ष तौर पर रिया के बचाव में तो नही हैं, हालांकि यह सुशांत के परिजनों के सम्बंधो को कुछ सामाजिक और क्षेत्रीय चलन के आधार पर मुआयना करता है, कि कहीं सुशांत , उनके पिता और अन्य परिजनों में मधुर सम्बद्ध नही होने का कारण "वही पुराना" मानसिकता का कारण तो नही है जो कि उत्तर भारतीय परिवारों -- विशेषतौर पर बिहारी परिवारों में - देखने को मिलता है - एक आदर्श पुत्र श्रवण कुमार का खाँचा-- जब माता पिता अपने पुत्र को एक श्रवण कुमार के खांचे में से देखते हैं - और पुत्र को स्वायत्ता में जीवनयापन को समझ नही पाते हैं, उसकी अपनी पसंद की girl friend को स्वीकार नही कर पाते हैं - , तथा लड़की से तथा पुत्र से सम्बद्ध विच्छेद हो जाता हैं।


ज्योति यादव , पत्रकार, इस प्रकार के पारिवारिक माहौल को toxic यानी ज़हरीला कह कर पुकारती हैं, जब पुत्र को श्रवण कुमार के खाँचे में बड़ा किया जाता है, लालन-पालन किया जाता है, मगर वह बड़ा हो कर स्वायत्ता भरे आचरण से जीवन जीने लगता है, और तब मातापिता उस पर "बुढ़ापे में देख भाल नही करने " का दोष मढ़ने लगते हैं।

वह अपने पुत्र की big-city girlfriend को स्वीकार नही कर पाते हैं। और यदि ऐसे में ग़लती से भी उनके पुत्र को कुछ हो जाये तब ज़ाहिर तौर पर, सारा दोष उस girl friend को दिया जाना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानी जा सकती है, इन toxic परिवारों के परिजनों की।


इस बीच हुआ यूँ कि भोजपुरी भाषा क्षेत्र से काफ़ी सारे भोजपुरी भद्दे ,फ़ूहड़ गायकों ने तमाम गाने रिया को खरीखोटी सुनाने के लिए निकाल दिये हैं। 


बड़ी सवाल यह है कि क्या ज्योति का प्रस्तुत किया गया दर्पण उचित है सुशांत और उनके पिता तथा परिजनों के संबंध को टटोलने, तथा समझने के लिए ? कम से कम, जिस प्रकार से ज्योंति ने बिहारी-भोजपुरी समाजों और परिवारों के प्रति toxic (जहरीले) माहौल का चित्रण किया है, इस भोजपुरी गानों में रिया के प्रति लिया गया नज़रिया तो यही प्रस्तुत करता हैं।


एक अन्य सवाल खुद भोजपुरी भाषा के गानों में प्रयोग किये जाने वाले फ़ूहड़/ भद्दे शब्दों का भी बनता है। हो यह रहा है कि संभवतः भोजपुरी समाज बौद्धिकता के इस शिखर को अभी तक प्राप्त नही कर सका है जहां pornography और erotica के बीच में अन्तर रेखा के अस्तित्व को स्वीकार किया जा सके। बल्कि एक बौड़म , मंदबुद्धि शैली में भोजपुरी समाज अपने इस भद्दे और फ़ूहड़ "संगीत" को भाषा जन्य विषय बता कर के आरोप दर्शकों और श्रोताओं पर ही लगा दे रहा है कि बैरभाव उनमें ही है कि English में गंदे शब्दों को स्वीकार कर लेते हैं, जबकि वही बात जब हिन्दी/अथवा भोजपुरी में कही जाती है, तब भद्दा/फ़ूहड़ होने का दोष मढ़ देते हैं !


तफ्तीश का सवाल , जो की जनचेतना में से विलुप्त है -वह यही है कि भोजपुरी भाषा के गीतों में दिखाई पड़ने वाला यह विवाद क्या भाषा-जन्य भेदभाव का विवाद है, या फ़िर नज़ाक़त/नफ़ासत की बौद्धिक अप्रवीणता है ? 


सवाल जनता के court में है - सवाल जनचेतना के समक्ष रखा जा चुका है

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