Justice कर्णन और प्रशांत भूषण मामले में क्या भिन्नता है ?
सच मायने में दिलीप जी का लेख , जब वह प्रशांत भूषण और जस्टिस कर्णन मामले में समानता देख लेते हैं , भिन्नता नहीं,
तब दलित और पिछड़ों की बेवकूफ़ी का खुलासा होता है ! जब तक दलित और पिछड़ा इतने rational न हो जाएं की court को प्रक्रियों और उनके तर्कों को न समझ ले, तब तक दलित और पिछड़े यह तथाकथित "भेदभाव" झेलते रहेंगे ! जो की वास्तव में तो दलित-पिछड़ों की बौद्धिक अयोग्यता होगी !
Justice कर्णन ने पहले तो एक गुप्त पत्र लिखा था, खुद सर्वोच्च न्यायालय की जजों को ही भेज दिया था ! जबकि प्रशांत भूषण के ट्वीट का मामला था। यानी भूषण ने सीधे आमआदमी (जनता) के समक्ष बात रखी थी, न की private पत्र में !!
भूषण जनहित मामले के लिये जगप्रख्यात व्यक्ति हैं। दलित पिछड़ा वर्ग में देशहित, जनहित, इत्यादि के लिए ऐसे लड़ने वाला कोई शायद विरले ही मिलेंगे !
Justice कर्णन पहली बार जनता में नज़र ही आये जब उनको सज़ा सुनाई गयी।
कर्णन जी ने सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आमंत्रण तक को नकार दिया था, और सज़ा तो उनके इसके उपरान्त दी गयी। यानी कर्णन जी अडिग खुद ही नही थे, न ही लड़ने को तैयार थे ! court को प्रक्रियात्मक गलतियां करने के लिए set ही नही होना पड़ा ! जबकि भूषण अडिग रहे, और मामले को आगे बढ़ाया, जिसमे court ने procedural गलतियां कर दी है, जैसे कि suo moto मामले को पकड़ना, closed door sitting करना, और सबसे बड़ी, freedom ऑफ speech का मामला, क्योंकि भूषण जी ने तो tweet किया था, कोई letter वगैरह लिख कर शिकायत नही करि थी !!
प्रिय मंडल जी,
मेरा विचार है कि हमें सामूहिक तौर पर rational thinking को निखार लाने की ज़रूरत है।
मेरे अनुसार कर्णन मामले में एक ही बड़ी गलती हुई है सामूहिक तौर पर - कि, जज चेलामेस्वर साहब को कर्णन जी को सज़ा देने के लिए रज़ामंदी नही देनी चाहिए थी !
धन्यवाद
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