Socialist Democracy एक खुल्ला आमंत्रण है पूँजीवाद को - corporate manslaughter और नौकरीपेशा ग़ुलामी को

भारत का तंत्र उल्टे विधि जन्म लिया हुआ है। इसलिए यहां उल्टी गंगा बहती है।

हमारे यहां शासक के सेवकों ने चतुराई से अपने सार्वजिक चरित्र की पहचान को बदल दिया है। वह खुद को "लोक सेवक" बुलाते हैं। वह देश की "सम्मानित" संस्थान से "देश की सबसे कठिन परीक्षा" प्रवीण करके आते है UPSC नाम से । 

यह सब जानकरी प्रत्येक भारतिय की बुद्धि में उसे बचपन से ही दी गयी है।

इसलिए औसत भारतीय प्रजातंत्र की समझ बस यह रखता है कि प्रजातंत्र का अर्थ और अभिप्राय है शासन में शामिल होने का अवसर मिल जाना। बस।
औसत भारतीय प्रजातंत्र को समाजो के आपसी संघर्ष की लड़ाई से निकाल निराकरण के तौर पर नही समझता है। वह यह सोचने के काबिल अभी भी नही बन पाया है कि समाज को ग़ुलाम उसके भीतर से ही किया जाता है, जब एक वर्ग दूसरे के ऊपर हावी होने के तरीके ढूंढने लगता है।

मगर यह सामाजिक संघर्ष होते ही क्यों है?
इसका जवाब है प्राकृतिक शक्तियों के वितरण न्याय (distributive justice) में। प्रकृति ने हर एक व्यक्ति को अलग तरह से दूसरे के मुकाबले सशक्त बनाया है । कोई भी समाज दूसरे के बराबर क्षमता और योग्यता का नही होता है।
तो जो समाज व्यापार में अधिक शक्तिशाली और योग्यवान होगा, वह स्वतः ही आर्थिक टुकड़े को अधिक अंश में बटोरने लगेगा। आप इसे रोक नही सकते है। क्योंकि इसको रोकने के प्रयासों में आप विकास के पथ को ही बंधित कर देंगे। वैज्ञानिक विकास व्यक्तिगत स्वतंत्रता में से निकलता है। उद्यमता भी स्वतंत्रता से ही निकलती है। उद्यमता को रोकने के लिए आप स्वतंत्रता का गला घोटेंगे तो वैज्ञानिक विकास की भी मृत्यु हो जाएगी। वैज्ञानिक विकास का अभिप्राय है अनुसंधान और अन्वेषण - Invention and discovery।

तो आप फंसे हुए है दो विपरीत दिशाओं से। आप स्वतंत्रता को चाहेंगे तो कोई न कोई समाज बाकी अन्य पर आर्थिक तौर पर हावी होने का अवसर स्वतः ढूंढ लेगा।

स्वतंत्रतावाद में से निकली व्यस्था ही प्रजातंत्र है।
अब अगर आप इस पहेली को सुलझाने के लिए दो अलग अलग व्यवस्थाओं का मिश्रण बना कर समाजवादी प्रजातंत्र  (socialist Democracy) को लाना चाहेंगे, तो सच यह है कि समाजवाद और प्रजातंत्र के बीच मिश्रण बनाना संभव नही है।  यह उतनी ही मूर्खता भरी सोच है जितना कि गर्म गर्म बर्फ , या की ठंडी ठंडी वाष्प। अंग्रेज़ी भाषा मे इस तरह के विरोधी विचारों के मिश्रण को oxymoron बुलाया जाता है।
तो socialist democracy भी एक oxymoron ही है। 

कहने अर्थ है कि प्रजातंत्र का निजीकरण (privatisation) से एक जन्मजात संबंध होता है। आप यदि निजीकरण को रोकने की कोशिश करेंगे socialist democracy के माध्यम से, तब प्राकृतिक शक्तियां खुद ब खुद साज़िश करके आपको पूँजीवाद की ग़ुलामी में धकेलने लगेंगी। जो समुदाय या वर्ग अधिक उद्यमशील होंगे दूसरे के मुकाबले, वह कैसे भी करके, भ्रष्टाचार की डोर पकड़ कर, अपने व्यापारिक रुचि को विस्तार करने की कोशिश करेंगे। और ज्यों ही उन्हें थोड़ी सी सफ़लता हाथ लग जायेगी, वह पूंजीवादी बन जाएंगे और फिर तमाम वैध और  अवैध तरीकों से शासन शक्ति को कब्जे में कर लेंगे। एक पल ऐसे आएगा कि वह हमेशा के किये धनवान और महा-धनशाली बन जाएंगे। उसके व्यापार के अंदर midas की शक्ति आ जाएगी --कुछ भी करो, धन खुद से खींच कर उनकी तिजोरियों में जाने लगेगा। वह किसी भी कानून से ऊपर उठ जाएंगे, वह किसी भी सामाजिक या धार्मिक विचारधारा के आधीन नही रहेंगे। उनके लिए नैतिकता , मानवता , मानववाद, श्रमिक अधिकारों का सम्मान, यह सब कोई मायने नही रखेगा, क्योंकि वह यह सोचने लगेंगे की अब उनको इस तरह की बातों को दुबारा कभी मोहताज़ नही बनना होगा। तब वह समाज मे इंसानो को एक-एक करके उसकी ग़ुलाम हालात के एहसास करवा कर बेइज़्ज़त करेंगे।

भारत मे ऐसे हालात आ चुके है। आप अपने आसपास के माहौल की भनक ले। आप evm से उत्पन्न हालात को जानने और समझने की कोशिश करें। आप इस सच के दर्शन कर लेंगे। 

तो यह एक जागरण का पल है। आपको समझना पड़ेगा कि socialist democracy की गड़बड़ क्या हुई है भारत मे पिछले 70 सालों में। आपको नौकरशाही को socialist democracy के रखरखैया के तौर पर देखना बन्द करना पड़ेगा। UPSC तंत्र उसी socialist democracy की संस्थान है जिसने इन हालातों को पैदा किया है। अब तो आपको वापस लोकसेवक पर समाज को निर्भर होने की बात नही करनी चाहिए। आपको अब तो निजीकरण के विरोध में नही जाना चाहिए। अब यह सच अवलोकित हो जाना चाहिए कि यह लोकसेवक कभी भी आप के अधिकारों की रक्षा नही कर सकते है, अलबत्ता अजेबोग़रीब नियम बना बना कर आपको ही सज़ा का भुगतभोगी बना देंगे। यह जहां भी होंगे वहां corporate mansalughter जैसी दुर्घटनाएं घटेंगी, मगर इनमे से कोई "अपराधी" नही पकड़ा जाएगा, किसी को भी सज़ा नही मिलेगी।

तो अब अगर आपको समाज का भला करने की चाहत है तो आपको निजीकरण का विरोधी नही बनाना होगा। आपको खुद को ही उद्यमशील, अन्वेषक और अविष्कारक बनाना होगा कि आप अपने समाज की खुद अपने हाथों में ही रख कर खुद से ही चलाएं, बजाए की किसी upsc नौकरशाह के हाथों में शक्ति दे कर उससे भीख मांगते रहे अपने अपने अधिकारों के लिए, चिरकाल तक संगर्ष करते रहें भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिये !

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