आखिर एक समाजवादी प्रजातांत्रिक व्यक्ति क्या होता है ?

आखिर एक समाजवादी प्रजातांत्रिक व्यक्ति क्या होता है?

प्रजातंत्र का उत्थान वास्तव में एक संघर्ष में से हुआ है। प्रजातंत्र ने राजतंत्र की तरह प्रकृति के नैसर्गिक शक्ति में से जन्म नही लिया है।
इससे पहले वाली व्यवस्था, -राजतंत्र ने प्रकृति की नैसर्गिक शक्तियों में से जन्म लिया था। दुनिया मे जहां जहां इंसानी सभ्यता ने जन्म लिया, वहां समयकाल में धीरे धीरे राजतंत्र नामक राजनैतिक प्रशासन व्यवस्था ने स्वयं-भू जन्म लिया था। इंसानों के समूह को एक नेतृत्व की आवश्यकता स्वतः पड़ने लगी थी तीन प्रमुख कारणों से-
1) पड़ोसी से अपनी सुरक्षा के लिये,
2) आपसी विवादों को हल करने के लिए, और
3) किसी बड़े स्तर के सामाजिक कार्य की पूर्ति के लिये तमाम मानव संसाधन और भौतिक संसाधनों को संघटन बद्ध करके किसी भीमकाय project में लगाने के लिए।

आगे समयकाल में राजतंत्र से सभी समाजों में दिक्कतें पैदा होने लगी। दिक्कतें थी -
1) राजा का भेदभाव और पूर्वाग्रही आचरण
2) अयोग्य राजा , जो कि मानव संसाधनों को और भौतिक संसाधनों को उचित भीमकाय project में केंद्रित नही कर सकता था।
3) परिवारवाद में फंस कर जनहित की हानि करना, अयोग्य होते हुए भी संतान के लिए जनता में भय व्याप्त करवा कर शासन करना।
4) अधिक कर या टैक्स के बदौलत मौज की जिंदगी जीना और प्रजा को बेहाल ख़स्ता छोड़ देना।
5) आर्थिक और इंसानी शोषण , धर्मशास्त्रियों की सहायता से। दासप्रथा को जन्म देना।

प्रजातंत्र एक इंसानी बौद्धिकता में से जन्म ली व्यवस्था। तब जबकि कई समाजों ने विद्रोह करके अपने राजा को हरा दिया ।

मगर जब उन्होंने राजा को हरा दिया तब क्या किया राजा के साथ?
इस सवाल में से उत्तर मिलता है हमे दो किस्म की राजनैतिक व्यवस्था के जन्म की कहानी का।

कुछ समाजों ने राजा को वापस शासन में बैठा दिया, मगर शर्त रख कर की वह जनता की मर्ज़ी अनुसार ही नियम कानून बनाएगा। और जनता की मर्ज़ी को जानने के लिए एक नई संस्थान को जन्म दिया गया -  संसद नाम से।
तो  संसद का कार्य राजा की शक्ति को नियंत्रित करना था। इस तरह की व्यवथा राजशाही प्रजातंत्र कहलाई  (उदाहरण ब्रिटैन )।
मगर कुछ अन्य समाजों ने राजवंश को पूरा समाप्त करके उसकी जगह एक जनता से चुना गया व्यक्ति कुछ निश्चित कार्यकाल के लिए राजा के कार्य निभाने के किये निर्वाचित करना आरंभ किया, राष्ट्रपति पदनाम से। यह गणराज्य व्यवस्था थी। उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका गणराज्य

गणराज्य व्यवस्था में भी भय था कि कही यह क्षणिक भर का राजा यदि किसी तरह वापस पुरानी व्यवस्था के रास्ते निकल पड़ा तो उसे कैसे रोका जाएगा? इसके लिए गणराज्य ने भी संसद को जन्म दिया जो कि वापस जनता में से ही चुनी जाएगी, मगर राष्ट्रपति और संसद , जो कि दोनों ही जनता के चुने हुए प्रतिनिधि थे, दोनो के आपसी विवाद के निवारण के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका को भी जन्म दिया।
स्वतंत्र न्यायपालिका को गणराज्य में आना आवश्यक था , अन्यथा कोई भरोसा नहीं कि राष्ट्रपति वापस प्रशासन शक्ति को हड़प कर निजी स्वार्थ में भोग करने लग जाये।

तो राजशाही प्रजातंत्र और गणराज्य प्रजातंत्र के बीच समानता यह थी कि जनता को आर्थिक शोषण से मुक्ति मिल गयी थी। मगर कैसे? यह जनहित के बड़े भीमकाय project कौन करता था और कैसे, यदि आर्थिक शोषण खत्म हो चुका था तो?
जवाब था, निजी अधिकारों और निजी संपत्ति के विचार का जन्म भी स्वतः प्रजातंत्र के उत्थान में छिपा ही हुआ है।
प्रजातंत्र यानी निजी अधिकार और निजी संपत्ति।

तो अब जनता को निजी संपत्ति के अधिकार मिल गए थे। 

निजी संपत्ति यानी क्या? निजी संपत्ति आती कहाँ से है?
निजी समाप्ति उद्यम में से पैदा करि जाती है।

वापस सवाल पर चलते है, कि समाजवादी प्रजातंत्र क्या चीज़ है फिर?
समाजवादी प्रजातंत्र वह लोग हैं जो कि निजी संपत्ति के विरोधी हैं!
यह वो लोग हैं, जो कि चाहते हैं कि प्रशासन ही जनहित के बड़े project को चलाया करे , और प्रशासन को जनता के बीच चुने लोग मिल कर बनाये।

मगर इतिहास गवाह है, जब भी ऐसा किया गया है, हालात यूँ बन गए हैं कि प्रशासन को कुछ पूंजीपति वादियों ने हड़प लिया है, पैसे के दम पर जनता को प्रभावित करते हुए, उनके वोटों को खरीद खरीद कर।

तो समाजवादी प्रजातंत्र लोग, जो कि वैसे तो पूंजीवाद के विरोधी होने का दावा करते हैं, मगर उनकी इच्छा कुछ यूं होती है कि वास्तव में उसी में से पूंजीवाद के जन्म हो जाता है। वह जनता के बीच बड़ी आबादी के निजी अधिकारों की सरकारी भ्रष्टाचार के परवान चढ़ा देते हैं, और निजी संपत्ति को जन्म ही नही लेने देते हैं, उनके उद्यमशीलता को सरकारी नौकर के लाइसेंस का मोहताज़ बना कर। ऐसे में जो उद्यमशील नागरिक समूह कैसे भी करके सरकारी नौकर की मिलीभगत से भ्रष्टाचार करके बच निकलता है, वही कामयाब पूंजीवादी बन जाता है, और फिर धीरे धीरे वही प्रशासन को भी हड़प लेता है।

और फिर समाज वापस आर्थिक शोषण और दासप्रथा की और निकल पड़ती है।

Conclusion
तो पूंजीवाद को इसको रोकने का तरीका यूँ है कि समाजवादी प्रजातंत्र को स्वीकृति नही किया जाए। बल्कि निजी संपत्ति और निजीकरण में सहयोग करके सभी सामाजिक वर्गों में उधोग के स्वामित्व के वितरण को प्राप्त करने की कोशिश जारी रखी जाए। कुछ समुदाय बाकी अन्य समुदायों से अधिक योग्य और कौशल वान होते हैं उद्योगिक श्रम के लिए। तो फिर कम कौशल वाले समाजों को प्रेरित किया जाए और सहयोग दिया जाए कि वह उद्योग कर सकें।

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