ICC World Cup Final मैच में किस्मत के अंश, भारतीय दर्शन और इंग्लिश दर्शन की तुलना

सचिन तेंदुलकर का  भी मानना है की ICC  World  Cup  के फाइनल में tie मैच से उत्पन्न अवरोध को पार करने का उचित तरीका boundary  shots  की गिनती करने के बजाए एक और super  ओवर करवाना चाहिए था ।
एक बड़ा सवाल , दर्शन शास्त्र से सम्बंधित, यह है की इंग्लॅण्ड जो की वैश्विक स्तर  पर दुनिया के सबसे बेहतरीन शैक्षिक विश्व विद्यालयों का देश है, जहाँ oxford है, जहाँ Cambridge  है, क्या वहां इस प्रकार के अटपटे नियम के पीछे कोई भी सोच नहीं रही होगी ?

यहीं पर हम लोग कुछ देखने में चूक कर रहे हैं ।
बनारस की भूमि पर से भारतीय दर्शन की एक अद्भुत ज्ञान गंगा बहती है , जिसे आम आदमी ब्रह्मज्ञान नाम से जानते-सुनते है । इसे अंग्रेजी में Theosophy  पुकारा जाता है । theosophists  अक्सर करके अपने आस-पास की घटनाओं में उसके कारणों की तलाश करते हुए ईश्वर की इच्छा हो समझने में युगन करते रहते है ।
क्या यह संभव है कि अंग्रेज़ी दर्शन के अनुसार जब कोई मैच दो बार के प्रयासों के बाद भी tie  हो जाये तो यह मान लेना चाहिए की ईश्वर के अंश ने अपनी इच्छा प्रकट करि है दोनों प्रतिद्वन्द्वियों की योग्यता बराबर है ?
बरहाल, यहाँ दर्शन का अंतर है -- भारत के ,और इंग्लॅण्ड के ।
क्योंकि भारतीय दर्शन के लोग तो यही मनाते दिख रहे हैं की अभी भी कोई इंसानी पैमाने को लगाने की ज़रुरत थी ।
कहते हैं की एक बार इंग्लॅण्ड में एक व्यक्ति को फांसी की सज़ा सुनाई गयी । जब उसे फांसी  दी जा रही थी, तब तीन बार जल्लाद के द्वारा लीवर चलाने  पर हर बार वह फैल हो जा रहा था । मगर जब भी हर एक प्रयास के बाद उसकी जाँच करि जाती थी तब वह सही से काम करता था । तीसरे प्रयास के बाद अचानक ही जज बोल उठा की इस कैदी को रिहा कर दिया जाये क्योंकि उसकी फांसी  की सजा दी जा चुकी है , मगर ईश्वर की इच्छा नहीं है की वह अभी मरे ।

यह इंगलेंड के दर्शन को समझाता हुआ एक वाकया है ।
भारतिय दर्शन शायद यहाँ अलग है ।

भारत में केशवानंद भारती फैसले के अनुसार संसद को आज़ादी है की संसद चाहे तो मौलिक अधिकारों से सम्बंधित संविधान की धारा को भी बदल सकता है, और उसे रोकने का अधिकार केवल न्यायलय के पास है, किसी "मूल ढांचे "(Basic  structure ) के तर्क पर , जिसका की संविधान में कहीं जिक्र नहीं है , मगर भारत का न्यायलय इसके अस्तित्व को मनाता है, और खुद से ही खुद को एक शक्ति से नवाज़ता है !!!
मगर इंग्लॅण्ड के दर्शन के तर्क सोचे तो प्रजातंत्र खुद ही संविधान की परम्परा है, और यदि मौलिक अधिकारों को कोई हाथ भी लगाने की कोशिश करेगा तो उसे फिर से जनता की विशेष अनुमति लेनी पड़ेगी । न्यायलय के पास भी यह अधिकार नहीं है की वह मौलिक अधिकारों को हटाने या फिर बनाये रखने में कोई अपनी शक्ति की भूमिका अदा करे ।
यही अमेरिकी संविधान की भी शर्त है । न तो संसद को अनुमति है 10 Amendment  से सम्बंधित कोई कानून बनाये, और न ही कोर्ट के पास अधिकार है की यदि संसद ऐसी कोई भी हिमाकत करे तो न्यायलय किसी भी तर्क से उत्पन्न शक्ति से उसे स्वीकृत या अस्वीकृत करे ।

जो चीज़ यदि संविधान में लिखित नहीं है, तो फिर उसका क्या समझना चाहिए ?
इंग्लॅण्ड के दर्शन में इसका हल है की वापस उसी शक्ति के पास ऐसे सवालों को भेजना चाहिए, जिसने संविधान को लिखा है -- जनता की इच्छा ।
भारत के दर्शन के अनुसार जिन सवालों के जवाब संविधान में नहीं लिखे है , वह अब न्यायालय तय करेगा, न की वापस जनता को वह सवाल सौंप  दिया जायेगा ।

तो यदि मैच दो प्रयासों के बाद भी tie  होगा , तो जाहिर है की  इंग्लॅण्ड के दर्शन ने  मैच tie  से उत्पन्न सवाल को जनता के कटघरे में खड़ा कर दिया की जनता का आनंद तय करेगा की विजेता कौन "निर्वाचित " किया जायेगा ।दो बार के प्रयासों पर tie  हो जाने से "चयन " प्रक्रिया तो इंसानी सीमा में रहते हुए अब समापन पर आ गयी है ।

भारत के दर्शन के अनुसार मैच के tie  होने पर अभी भी इंसानी "चयन " प्रक्रिया समापन पर नहीं आयी है, दर्शकों को कोई अधिकर नहीं है की उनका मनोभाव यह "निर्वाचन " करे की विजेता कौन माना जायेगा । "चयन " प्रक्रिया कभी भी अंत पर आती ही नहीं है , कहीं कोई न कोई तरीका है अभी भी इंसानी हरकत को क्रियाशील होने का ।

अंतर तो है । दर्शन का । आश्चर्य यह है की "भाग्यवादी " लोग हम भारतीय माने जाते है , मगर हम "ईश्वर के अंश" को दो प्रयासों से tie हुए मैच में अस्तित्व में आने का अवसर नहीं देते हैं , और वह "भाग्यवादी " नहीं है , शायद इसीलिए "ईश्वर  के अंश " को tie  मैच में अस्तिव्त स्वीकार कर लेते है !!

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