भारत की हज़ारों वर्षों की ग़ुलामी के अलग अलग root cause analysis
ऐसा क्यों हुआ की भारत भूमि ने विभीषण पैदा किये, जय चाँद पैदा किया , मीर जफ़र पैदा किये , मगर कमांडर नेल्सन नहीं ?
भारत के पश्चिमी राज्यों में यह समझा जाता है की भारत देश को हज़ारों वर्षों की ग़ुलामी, हर एक आक्रमणकारी के हाथों शिकस्त और उत्पीड़न इस लिए देखना पड़ा क्योंकि यहाँ गद्दार पैदा हुए थे, जबकि भारत हर जगह श्रेष्ठ था ।
root-cause-analysis अपने आप में एक पूर्ण साधना होती है, वैज्ञानिक चिंतन शैली में । cause and effect के बारे में तो सभी ने पढ़ा-सुना हुआ होगा । मगर क्या आपने कभी यह एहसास किया है कि आपके आसपास में मौजूद व्यक्ति समूह हर कोई एक ही तःथ्यों से लबाबोर घटना में अलग-अलग cause का निष्कर्ष निकालता है ।
और फिर जब हर एक के cause अलग-अलग होते हैं , तब फिर उसके 'गुन्हेगार',( - Culprit ), भी अलग होते हैं, सज़ाएं भी अलग किस्म की होती हैं, इलाज भी अलग ही होते है ।
बड़ा सवाल है की यह कैसे पहचान करि जाएगी की इतने तमाम causes की सूची में से सटीक वाला कौन सा है, जिसको यदि सत्य मान कर इलजा किया जायेगा तब effect (या नतीजे ) प्राप्त होंगे वह हितकारी और संतुष्टि देने वाले होंगे?
किसी भी उद्योगिक दुर्घटना और किसी भी अन्वेषिक अपराध के दौरान जांचकर्ताओं को जिस प्रकार की माथापच्ची से गुज़रना पड़ता हैं, और यह माथापच्ची उनके चिंतन में जो कबलियत विक्सित करती है, यह वही है जो की root cause analysis कहलाती है, और जो की तमाम किस्म के causes की सूची में से सत्यवान cause की शिनाख्त करने में योगदान देती है ।
आप में से कोई भी व्यक्ति चाहे तो अपने अंदर यह चिंतन विक्सित कर सकता है किसी भी Conspiracy Theory या किसी भी Mystery को सच्चे दिल से खोज करने से ।
खोज यानि अन्वेषण करने का इंसानी चिंतन पर सबसे बड़ा प्रभाव और योगदान यही होता है -- कि, खोज करने से इंसान को दिमाग की root cause analysis की क्षमता सुदृढ़ करने का अवसर मिलता है । और फिर जो व्यक्ति root cause analysis सही से सकता है , वही cause and effect क्रिया के दौरान सटीक वाले cause को पहचान करके बताता हैं, और फिर समाधान भी उचित देता है जिसके प्रभाव स्वयं सिद्ध हो जाएं । वरना इंसानो का क्या है कि झूठे या मिथक causes को पकड़ लेते हैं और फिर समाज को अनंत सालों तक के लिए सत्य से दूर भटका करके उसी एक समस्या से ग्रस्त कर दते हैं, समस्या को ला-इलाज बना देते हैं ।
इंसान चाहे 'भक्त' दर्शन को हो , या नास्तिक चिंतन शैली का , उसने अपने आसपास की घटनाओं का analysis करके cause and effect को तैयार सदैव किया है । जब water cycle नहीं पता थी, तब 'भक्त दर्शन' में बारिश बरसने के cause यह हुआ करते थे की गणेश भगवान अपनी सूंड़ उठा कर बारिश करते हैं, या की इंद्र देव् बारिश करते हैं । गाय पशु सांस लेते समय oxygen छोड़ती हैं, यह वाली समझ भी अपने किस्म की cause and effect सोच का ही नतीजा है , यह दूसरी बात है की इस तरह वाली सोच ने हवा में से oxygen की खोज और पहचान नहीं करि थी । यानि 'भक्त' सोच सही है या ग़लत , इसका असली प्रमाण उस सोच में से निकलते प्रभाव खुद-ब-खुद दे देते हैं ।
सत्य की अंत में पहचान यही होती है -- कि, वह खुद से जो कुछ प्रभाव उत्पन्न करता है, वही सभी लोगों के मन को संतुष्टि दे कर अपने सत्य होने का एहसास करवा देता है ।
सत्य स्वयंभू होता है, और इसलिए हिन्दू दर्शन में सत्य को शिव भगवन भी माना गया है ।
तो यदि मूल कारण - cause, कि, क्यों यह देश हज़ारों सालों की ग़ुलामी में गया , और हर एक आक्रमणकारी के हाथों शिकस्त देखता रहा, यदि यही है की गद्दार पैदा हुए है , तब फिर ग़द्दारी का ईलाज से शायद समस्या का इलजा हो जाना चाहिए भविष्य काल में भी । ग़द्दारी का क्या इलजा होगा ?-- कि गद्दार को कड़ी से कड़ी सज़ा दो -- सभी के सामने , बीच चौराहे पर --ताकि भविष्य में कोई गद्दार पैदा ही न हो । या की सभी नागरिकों पर aadhaar card जैसा surveillance बैठा दो की गद्दारी करने की सोचे भी, तो पकड़ा जाए।
या फिर आप चाहो तो गद्दारी को root cause न मानो, बल्कि सामाजिक अविश्वास को cause मान लो। तब अब सामाजिक अविश्वास का ईलाज करोगे। इसमें आप न्याय सूत्र और न्यायिक प्रक्रिया के सुधारों पर ज़ोर दोगे, की आपसी अविश्वास ही परस्पर सहयोग को बंधित करता है। परस्पर अ-सहयोग , या अविश्वास लिए उत्पन्न होता है क्योंकि समाज यह सुनिश्चित करने की व्यवस्था नहीं देता है की किसी अमुक व्यक्ति को वैसे हालातों में वही सुविधा या वही ईनाम दिया जायेगा ।
यह दूसरा वाला जो cause हैं, यह वही है क़ि भेदभाव और जातपात , favouritism , nepotism से भी जुड़ता है। तो फिर ज़ाहिर है की जो लोग भारत भूमि पर जातपात के इतिसाइक तथ्यों को स्वीकार नहीं करते हैं, वही लोग देश की हज़ारों वर्षों की ग़ुलामी के causes को गद्दारी से जोड़ते है, सामाजिक अविष्वास और न्याय सूत्रों की खामियों से नहीं ।
भारत के पश्चिमी राज्यों में यह समझा जाता है की भारत देश को हज़ारों वर्षों की ग़ुलामी, हर एक आक्रमणकारी के हाथों शिकस्त और उत्पीड़न इस लिए देखना पड़ा क्योंकि यहाँ गद्दार पैदा हुए थे, जबकि भारत हर जगह श्रेष्ठ था ।
root-cause-analysis अपने आप में एक पूर्ण साधना होती है, वैज्ञानिक चिंतन शैली में । cause and effect के बारे में तो सभी ने पढ़ा-सुना हुआ होगा । मगर क्या आपने कभी यह एहसास किया है कि आपके आसपास में मौजूद व्यक्ति समूह हर कोई एक ही तःथ्यों से लबाबोर घटना में अलग-अलग cause का निष्कर्ष निकालता है ।
और फिर जब हर एक के cause अलग-अलग होते हैं , तब फिर उसके 'गुन्हेगार',( - Culprit ), भी अलग होते हैं, सज़ाएं भी अलग किस्म की होती हैं, इलाज भी अलग ही होते है ।
बड़ा सवाल है की यह कैसे पहचान करि जाएगी की इतने तमाम causes की सूची में से सटीक वाला कौन सा है, जिसको यदि सत्य मान कर इलजा किया जायेगा तब effect (या नतीजे ) प्राप्त होंगे वह हितकारी और संतुष्टि देने वाले होंगे?
किसी भी उद्योगिक दुर्घटना और किसी भी अन्वेषिक अपराध के दौरान जांचकर्ताओं को जिस प्रकार की माथापच्ची से गुज़रना पड़ता हैं, और यह माथापच्ची उनके चिंतन में जो कबलियत विक्सित करती है, यह वही है जो की root cause analysis कहलाती है, और जो की तमाम किस्म के causes की सूची में से सत्यवान cause की शिनाख्त करने में योगदान देती है ।
आप में से कोई भी व्यक्ति चाहे तो अपने अंदर यह चिंतन विक्सित कर सकता है किसी भी Conspiracy Theory या किसी भी Mystery को सच्चे दिल से खोज करने से ।
खोज यानि अन्वेषण करने का इंसानी चिंतन पर सबसे बड़ा प्रभाव और योगदान यही होता है -- कि, खोज करने से इंसान को दिमाग की root cause analysis की क्षमता सुदृढ़ करने का अवसर मिलता है । और फिर जो व्यक्ति root cause analysis सही से सकता है , वही cause and effect क्रिया के दौरान सटीक वाले cause को पहचान करके बताता हैं, और फिर समाधान भी उचित देता है जिसके प्रभाव स्वयं सिद्ध हो जाएं । वरना इंसानो का क्या है कि झूठे या मिथक causes को पकड़ लेते हैं और फिर समाज को अनंत सालों तक के लिए सत्य से दूर भटका करके उसी एक समस्या से ग्रस्त कर दते हैं, समस्या को ला-इलाज बना देते हैं ।
इंसान चाहे 'भक्त' दर्शन को हो , या नास्तिक चिंतन शैली का , उसने अपने आसपास की घटनाओं का analysis करके cause and effect को तैयार सदैव किया है । जब water cycle नहीं पता थी, तब 'भक्त दर्शन' में बारिश बरसने के cause यह हुआ करते थे की गणेश भगवान अपनी सूंड़ उठा कर बारिश करते हैं, या की इंद्र देव् बारिश करते हैं । गाय पशु सांस लेते समय oxygen छोड़ती हैं, यह वाली समझ भी अपने किस्म की cause and effect सोच का ही नतीजा है , यह दूसरी बात है की इस तरह वाली सोच ने हवा में से oxygen की खोज और पहचान नहीं करि थी । यानि 'भक्त' सोच सही है या ग़लत , इसका असली प्रमाण उस सोच में से निकलते प्रभाव खुद-ब-खुद दे देते हैं ।
सत्य की अंत में पहचान यही होती है -- कि, वह खुद से जो कुछ प्रभाव उत्पन्न करता है, वही सभी लोगों के मन को संतुष्टि दे कर अपने सत्य होने का एहसास करवा देता है ।
सत्य स्वयंभू होता है, और इसलिए हिन्दू दर्शन में सत्य को शिव भगवन भी माना गया है ।
तो यदि मूल कारण - cause, कि, क्यों यह देश हज़ारों सालों की ग़ुलामी में गया , और हर एक आक्रमणकारी के हाथों शिकस्त देखता रहा, यदि यही है की गद्दार पैदा हुए है , तब फिर ग़द्दारी का ईलाज से शायद समस्या का इलजा हो जाना चाहिए भविष्य काल में भी । ग़द्दारी का क्या इलजा होगा ?-- कि गद्दार को कड़ी से कड़ी सज़ा दो -- सभी के सामने , बीच चौराहे पर --ताकि भविष्य में कोई गद्दार पैदा ही न हो । या की सभी नागरिकों पर aadhaar card जैसा surveillance बैठा दो की गद्दारी करने की सोचे भी, तो पकड़ा जाए।
या फिर आप चाहो तो गद्दारी को root cause न मानो, बल्कि सामाजिक अविश्वास को cause मान लो। तब अब सामाजिक अविश्वास का ईलाज करोगे। इसमें आप न्याय सूत्र और न्यायिक प्रक्रिया के सुधारों पर ज़ोर दोगे, की आपसी अविश्वास ही परस्पर सहयोग को बंधित करता है। परस्पर अ-सहयोग , या अविश्वास लिए उत्पन्न होता है क्योंकि समाज यह सुनिश्चित करने की व्यवस्था नहीं देता है की किसी अमुक व्यक्ति को वैसे हालातों में वही सुविधा या वही ईनाम दिया जायेगा ।
यह दूसरा वाला जो cause हैं, यह वही है क़ि भेदभाव और जातपात , favouritism , nepotism से भी जुड़ता है। तो फिर ज़ाहिर है की जो लोग भारत भूमि पर जातपात के इतिसाइक तथ्यों को स्वीकार नहीं करते हैं, वही लोग देश की हज़ारों वर्षों की ग़ुलामी के causes को गद्दारी से जोड़ते है, सामाजिक अविष्वास और न्याय सूत्रों की खामियों से नहीं ।
Comments
Post a Comment