राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता
सही और गलत, उचित और अनुचित , मानवता या स्वार्थ के ताने बाने में फँसा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक बेहद दो-मुंह सर्प हो गया है। बल्कि मुझे तो संघ और उसकी संसथायों में दो-मुँहे तर्क ब्राह्मणवाद,जात पात और छुआछूत की स्मरण दिलाते है की कैसे प्राचीन वैदिक धर्म ने अपने अन्दर उत्पन्न हो रहे दुर्गुणों का क्षेत्र रक्षण किया होगा और आज के इस अंधकारमई , नाले के सामान मैली गंगा वाले "हिन्दू धर्म" में तब्दील कर लिया होगा।भाजपाइयों की क्षेत्र रक्षण की पद्धति से आप कितनों ही गलत कर्म क्यों न करे हो,उसका बचाव कर सकते हैं।
भाजपा के दोमुंहे तर्कों पर निरंतर दृष्टि रखिये और विचार करिए कैसे भाजपाई विज्ञापन और प्रचार में केजरीवाल की दुबई और अमेरिका यात्रा को "भीख माँगने" ,"मुजरा करने" जैसे अपमानजनक व्यक्तव्यों से दर्शाता है, और मोदी की मौज मस्ती की अमेरिका यात्रा और विदेश यात्राओं को "विजयी यात्रा" ,"दुश्मन ने घुटने टेक दिया", जैसे व्यक्तव्यों से दर्शाता है।
खुद वेदान्त समूह से चन्दा लेने वाला ,आप पार्टी पर विदेशी जासूसों का एजेंट होने का मिथ्य-आरोप लगता है। खुद के मेल जोल को "वसुधैव कुटुम्बकुम" बोलता है, और केजरीवाल के मेल जोल को अपमानजनक "नचनिया" ,"जासूस", "घर का भेदी"।
ऐसे कई विचार हैं जहाँ संघ की मानसिकता इतनी निकृष्ट और अस्वस्थ है की मुझे लगता है की शायद यही वह लोग है जिन्होंने भारत की प्रगति के असल,सत्यशील मार्गों पर बाँधा डाल रखी है। मनमोहन सिंह ने चुनाव प्रचार के दौरान एक बार कहा था की वह वास्तव में मानते है की मोदी को भारत का प्रधानमन्त्री नहीं बनना चाहिए क्योंकि मोदी में बहोत सारे चरित्र दोष हैं।
वैसे तो छोटे मोटे चरित्र दोष तो सभी इंसानों में पाए जाते है,की शायद ऊपर वाले ने एक भी सम्पूर्ण स्वस्थ मानव बनाया ही नहीं है,मगर इन संघियों की मानसिकता को शायद हम वर्तमान की मनोवैज्ञानिक चिकित्सा की तकनीकों से भी सिद्ध कर सकते है की इन्हें मनोचिकित्सा की ज़रुरत है।
वैसे मुझे यह भी महसूस होता है की प्रधानमन्त्री बनने के बाद मोदी को भी संघियों में चरित्र दोष का आत्मज्ञान हो रहा है। तभी वह भी बार बार संघियों को डांट रहे है और सुधरने की चेतावनी दे रहे हैं।
अब यह धर्म परिवर्तन के मुद्दे को देखिये।
जबरन धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर यह कैसा बवाल है ? अतीत के धर्म परिवर्तन को ज़बरन कैसा सिद्ध कर लिया की आज वह "घर वापसी" करवा रहे हैं? वैसे क्या खुद का घर सुव्यवस्थित है जो की वह वापसी करवा रहे हैं ??
बल्कि घर की सुव्यवस्था के लिए शायद आमीर खान-राजकुमार हिरानी और उनकी फ़िल्म "पीके" ज्यादा यत्नशील लगती है,बजाये संघ के। बल्कि समय के जिस बिंदु पर आज मानव सभ्यता पहुँच चुकी है, वहां से "घर वापसी" तो न ही संभव है और न ही उचित है। वैज्ञानिक और स्वतंत्र चिंतन वाले युग में पंथवाद भी एक बंधन है ,और मानवता का हनन करने का प्रेरक। ऐसे में घर वापसी ही क्यों? "स्वतंत्र चिंतन धार्मिकता(spirituality)" या "मानवतावाद(humanism)" की ओर क्यों नहीं ?
सुव्यवस्थित घर से हम "वसुधैव कुटुम्ब्कुम" को अधिक प्रभावशाली प्राप्त सकते हैं, बजाये "घर वापसी" के।
वैसे सोचता हूँ की शायद अतीत काल में भी यही "घर वापसी" की मानसिकता ने ही हम भारतियों को पराजित करवाया होगा। विजयी वही हुआ था जो की बहाय मुखी था, न की जो "घर वापसी" करता था।
फिर, संघियों ने यह कैसे तय कर लिया की उनहोंने हाल के दिनों में जो व्यक्तियों को हिन्दू परिवर्तित किया है,वह सब स्वार्थ या दबाव में ही घर छोड़ कर गए थे??
भई आज का सच तो यही है की आज धर्म परिवर्तन संघ कर रहा है।अतीत की घटना के प्रमाण कहाँ जगजाहिर है??
सभी भारतीय मुसलमान को परिवर्तित मानना भी अनुचित है। अंसारी नाम वाले लोग शायद आज के इरान (फारस) से सम्बंधित थे। इरान में अंसारी लोग आज भी मिलते है। कही न कही, कोई ,कुछ मुस्लिम धर्म के व्यक्ति तो तुर्की और फारस से भारत आये ही थे। वह तो असल विदेशी मूल के मुस्लिम रहे होंगे।
इसी तरह स्वेच्छा से परिवर्तन के भी उदहारण है। कोंकण में बहोत सारे मुस्लिम बंधू आज भी अपने परिवर्तन के अतीत को मानते हैं और उस स्वेछित परिवर्तन को अपने हिन्दू कुलनाम में सरंक्षित रखा है।
तो फिर संघ ने यह कैसे तय किया की कौन से परिवर्तन जबरन हुए है? यदि वह वाकई कुछ जानते हैं तो क्या संघ ने इस घटना पर कोई पुलिस रिपोर्ट करवाई है?
संघ भारतियों की मैली गंगा से उत्पन्न संस्था है। यद्यपि हम मैली गंगा के पानी को आज भी पी रहे हैं, मगर हमे सफाई भी इसी पानी की ही करनी है। संघ ही हमारी विकृत मानसिकता का प्रतीकचिन्ह है जिसने सच की आवाज़ के बीच में झूठ का शोर मचाया हुआ है, सत्य-ज्ञान का असत्य "दुरूपयोग" करा हुआ है, भ्रम,कुतर्क ,माया को संरक्षण दे रखा है, बौद्धिक हिंसा और कुव्यवस्था का क्षेत्र रक्षण किया हुआ है - अपने दू-मुँहे विचारों से।
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