ICC World Cup 2019 का फाइनल मैच और प्रजातंत्र की सोच

Reporter: Sir, What if number of boundaries would also have been equal for both the teams?
ICC: We would then compare 10th standard mark-sheets of both the
captains and decide.
😋😀😋😀


At the supreme court
Public : How do you judge the seniority of a person when two persons are elevated to Supreme Court Judge on the same date ?

Supreme Court Collegium : Of the two persons, the One who is from our kith and kinship , whatever criteria that he is senior with respect to the other, we declare that criteria to be the decisive factor for judgement of the seniority .

Public : 🤔😲🤕🤒😡

😋😊😀😁
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हालांकि ICC World Cup 2019 के फाइनल मैच में बार बार टाई होने पर विजेता को चुने जाने के तरीके की भारतीयों में सब तरफ आलोचना करि जा रही है,
मगर तरीके के भीतर की सोच पर कहीं कोई ध्यान नही दे रहा हैं।
एक औसत भारतिय के लिए ICC की सोच शायद कहीं ज्यादा विकराल पड़ जाती है।
औसत भारतीय के लिए यह दिक्कत भरा हो रहा है सोचना की शायद ICC ने नियम यूँ इसलिए बनाये ही थे कि यदि फाइनल मैच दो बार, दो पद्धतियों के द्वारा खेले जाने पर tie हो जाएगा तब फिर tie breaker में विजेता तय करने के लिए प्रजातंत्र मानक को भी अपनाया जा सकता है।  ICC की सोच के अनुसार खेल में सिर्फ दो टीमों ही participants नही होती हैं, बल्कि मैदान पर मौजूद दर्शक सबसे बड़े participants होते हैं।
तो शायद ICC चाहता था कि यदि दो बार, दो अलग पद्धतियों से भी यदि फाइनल tie हो गा, तब फिर यही दर्शकों के आनंद को ही कसौटी माना जायेगा विजेता के चयन के तरीके के लिए। दर्शकों को खिलाड़ियों की जमाई boundary ही लुभाती हैं। जो टीम दर्शकों को अधिक लुभाएगी, वही विजेता बनेगी।। दो बार , दो अलग-अलग तरीकों से टाई होने का अभिप्राय है कि ईश्वर ने दोनों ही टीमों को बराबर समृद्ध बनाया है, दोनो को बराबर की मात्रा में किस्मत से नवाजा है।
तो फिर जब किस्मत या भाग्य दोनो का ही बराबर है, तब फिर अब इंसानों को ही अन्तर तय करने के मार्ग चुनने की आज़ादी मिल जाती है। यहां ICC ने सबसे बड़ा राजा , हृदय सम्राट, दर्शकों को मान लिए, बजाए कि खुद को। तो ICC  ने अपने खुद की शर्तें या नियम बनाना बन्द करके आगे की कमान दर्शक मन के आनंद को सौंप दी।
यह एक प्रजातंत्रीय सोच थी।
तो फिर एक सच्चे प्रजातंत्र सिद्धांत के अनुसार इस तरीके  को पूर्व-घोषित (pre notified) किया भी किया गया था।
यह सब सोच शायद औसत भारतीय के दिमाग के बाहर निकल जा रही है। हो भी क्यों न ? भाई , भारत वो देश है जहां जब दो जज , दीपक मिश्रा और चेलमेश्वर, दोनो ही एक दिन , एक तारीख को सर्वोच्च न्यायलय में निर्वाचित किये गए थे, तब किन शर्तों और किन कसौटियों के अनुसार दीपक मिश्रा को seniority दी गयी, यह सवाल किसी भारतीय के मन मे उठा तक नही ?!
यह आज भी भारतीय मन मे कौतूहलता का विषय नही है कि क्या दोनो जजों में seniority चुनने की कसौटियां थी, क्या वह पूर्व-सूचक(pre-notified) थीं या नही? क्यों नही दोनो ही बीच उम्र की senority को ही सीधा सरल मानक मान कर जज चेलामेश्वर को जज दीपक मिश्रा से senior मान लिया गया ?
और यदि दोनों के हाई कोर्ट में कार्यकाल को मानक लेना था, तब फिर इस तरह के मानक की पूर्व-सूचना क्यों नही सार्वजनिक करि गयी थी?
निश्छल, भेदभाव रहित प्रजातांत्रिक विचारधारा, यह औसत भारतीय के लिए अभी तक एक विलक्षण बौद्धिक प्रतिभा ही है ।
जय हो !!

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