लोक सेवा तंत्र -- समाज के आर्थिक विकास की सबसे बड़ी बाधा
(लेकिन मनीष भाई), मेरे को हाल फिलहाल के अनुभवों से लगने लगा है कि दुनिया भर में जो कुछ उद्योगनागरियों का पतन को हम देखते हैं, उसका वास्तविक कारण वामपंथ नहीं (साम्यवाद , Communism) नही है बल्कि उद्योग और तकनीकी में छिपी विशेषताएं हैं।
वामपंथ एक विशेषण नाम है, जिसका उदगम संसदीय आचरण से निकलता है। संसद में बहुमत गुट अध्यक्ष के दाई आ8र बैठता है, और अल्पमत गुट बाई ओर। बाई साइड को वामहस्त बुलाते है, इसलिए इसलिये यह विशेषण उपनाम है। असल विचारधारा का नाम साम्यवाद है।
साम्यवाद का केंद्रीय विचार तो सारी दुनिया मे ही स्वीकृति किया गया है। वही welfare state के नाम से हर जगह अपनाया गया है। सभी विधानों में, शास्त्रों में , धार्मिक ग्रंथों में - जनकल्याण को ही सर्वोच्च कानून बताया जाता है। public welfare इस the utmost law।
अन्तर तो सिर्फ इसको निर्वाहन में है। प्रजातन्त्र में public welfare के नाम पर private property का गला नही घोटा जाता है, जबकि Communism बहोत उतावला रहता है public welfare के नाम पर private property का गला घोटने से।
दिक्कत है कि हम और आप कुछ पुरानी छवि के चलते वामपंथ को labour यूनियन से जोड़ कर ही देखते रहे हैं , और फिर जैसा कि हुआ है, मिल मालिकों ने अपने मुनाफे के लिए पुरानी तकनीक की मचीनों वाली मिलें बंद करने के बहाने को labour union troubles के मत्थे जड़ कर उनकी छवि कुछ जरूरत से ज्यादा ही खराब कर दी। जबकि सच यह है कि वह मिल मालिक सिर्फ बहाना दूंढ रहे थे अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए अपना धंधा नए उभरते और ज्यादा मुनाफे वाले धंधा जमाने का। मिलों को बंद करके आज वही नए शॉपिंग मॉल के मालिक बन गए हैं, मल्टीप्लेक्स चलाते हैं, सुपरमार्केट और डिपार्टमेंटल स्टोर , फ्रैंचाइज़ चैन रेस्टुरेंट चलाते हैं।
तो कुल लेन देन में छवि साम्यवाद की जरूरत से अधिक खराब ही गयी, ताकि असल करतूत बाज़ बच निकले। मिल मालिकों को उस जमाने मे सरकारी ज़मीन सस्ते में मुहैया हुई थी, ताकि वह कारखाने लगा कर जनता को रोजगार के अवसर दे सके।।फिर जब मचीने पुरानी हुई और नए उद्योगों से मुकाबले में उनका मुनाफा कमा हुआ, तो जमीन हड़पने के लिए मिलों को बंद करके उसके बंद होने का आरोप labour union troubles पर लगवा दिया गया। आगे के लेख, समाचार पत्र, कहानियां, किताबें यूँ ही लिखी गयी और जनता का दर्शन ऐसे ही विकसित हुआ।
जबकि असल कारण छिपा था उद्योगिक क्रांति के नैसर्गिक विचार में ही। कि, नई तकनीक आती ही रहती है, और हर बार पहले वाले को "पुराना" यानी कम मुनाफे का बना कर खुद भी और नई की भेंट चढ़ जाती है।
और रही बात देशों के आर्थिक उत्थान में बांधा की, तो उसका असल कारण साम्यवाद की उस विचार से निकलता है जिसमे कार्य कौशल, मशीन निर्माण, कारखाने और उद्योग का नियंत्रण सरकार नाम की संस्था के पास चला जाता है, बाजए किसी आम , स्वतंतत नागरिक समूह के। साम्यवाद का असली विष है हर सरकारी नियंत्रण अयोग्य व्यक्तियों के द्वारा। और भारत मे यह अंजाम दिया जाता है UPSC (यानी लोक सेवा आयोग) जैसे "संविधानिक संस्थान" के पैर जमा कर।
हो सकता है कि बात सुनने में अटपटी लगे, और समझने में भी समय लगे, मगर समाज को आर्थिक उत्थान से रोकने का सबसे बड़ा अवरोध लोक सेवा आयोग ही है।
अगर किसी को दुनिया भर के विकसित देशों के economic powerhouse बनने के पीछे की इतिहासिक कहानी मालूम होगी तो वह तुरंत समझ जाएगा कि भारत मे क्या अंधेर गर्दी मची हुई है लोक सेवा आयोग के नाम पर। क्योंकि सभी विकसित उद्योगिक अग्रिम देश अपना यह मुकाम अपने professsional skillmen के भरोसे प्राप्त करे हुए हैं, न कि नौकरशाही की बदौलत। नौकरशाही समाज और देश को टैक्स का नाम पर चूसने का एकमात्र कौशल रखती है, और जन कल्याण के नाम पर स्कीम चालू करके उल्लू बनाती रहती है।
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