चल क्या रहा है भारत के प्रजातंत्र में

 गरीब, दरिद्र, शोषण को सहन करता रोज़मर्रा जीवन में प्रतिपाल, आम आदमी अपने जीवन की व्यथा का जब मुआयना करता है तब वह अपनी परिस्थिति का कारण ढूंढता है — शक्तिहीन होना।

ऐसे हालातों में उसे शक्ति तक पहुंच सकने का सबसे सस्ता, आसान और तुरत मार्ग दिखाई पड़ता है — प्रजातंत्र व्यवस्था में चुनाव जीत कर। और इसकेलिए शैक्षिक क्षेत्र वाला परिश्रम भी नहीं लगता है ,जिसके लिए अतिरिक्त समय और धन संसाधन लगते हों। 

प्रजातंत्र व्यवस्था में गरीब आदमी को शक्ति सत्ता तक की पहुंच देने वाला "मंत्रीपद", जहां तक जाने के लिए केवल वाकपटुता, दुस्साहस और सही व्यक्ति की चाटुकारी लगती है।

ये वह असल कारण है भारत भूमि में कि लोगों को प्रजातंत्र क्यों चाहिए होता है।

आज भारत में ऐसी नस्ल के मंत्री-नेता सर्वोच्च पदों तक विराजमान हो चुके हैं, जिनका उद्देश्य एक स्वस्थ समाज, सुशासन, नैतिक और आर्थिक उन्नति नहीं है

उनको केवल Indicators प्राप्त करने है जनता को मुंह दिखाने भर को कि वह अच्छा शासन दे रहे है, वह नाकाबिल नहीं है।

वीभत्स बलात्कार,आत्महत्या, भीषण दरिद्रता ऐसी वाली मंत्री-नेता गिरी का परिणाम है, क्योंकि असल प्रशासन की बागडोर नौकरशाहों के हाथों में पड़ी हुई है, जो खुद Indicators को पाने के मौहताज, पदोन्नति के खातिर, तुरत नुस्खे, hacks लगा कर कम चला रहे हैं, long term solutions के लिए उनके पास समय और धैर्य नहीं है। वो जानते है कि आज देश पर किस किस्म वाले मंत्री–नेता की सत्ता है, उसका मनोविज्ञान-मानस क्या है।

गरीब आदमी मंत्रमुग्ध है दरिद्रता, अशिक्षा, दुस्साहस, वाकपटुता की इस मनवांछित सफलता को देख कर। उसे ऐसा ही चाहिए था ।  

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