अगर बढ़ा अधिकारी बनना हैं तो Cheating करना छोड़ दो
12th Fail में एक दृश्य है, जब dySP साहब, दुष्यंत सिंघ (Priyanshu), मनोज को बताते हैं कि एक बड़ा पुलिस अधिकारी बनने के लिए cheating करना छोड़ना होता है।
"Cheating करना छोड़ना"
क्या मतलब हुआ इसका?
क्या सिर्फ exams में फर्रे बना कर पास कर लेना छोड़ देने भर की बात थी?
गहरा अर्थ कुछ भी नहीं था? कि सिर्फ इतना कर लेने भर से UPSC का कठिन interview पास हो जाता ? लोगो के सवालों का उचित, संतुलित, संतोषजनक जवाब देने की कला आ जाती ?
Interview कहीं भी हो, उद्देश्य सवाल जवाब या Kaun Banega Crorepati के GK Quiz जैसा नही रह जाता है।interwiewer के सवाल व्यक्तिनिष्ठ होते हैं, एक सवाल का जवाब दूसरे सवाल को जन्म देता रहता है, बातचीत का समां बंधने लगता है, जो कि आगे केवल तब ही बढ़ता है जब सामने वाला जवाब कुछ संतोषजनक सा देता सुनाई पड़ता है, मगर हर बार कुछ थोड़ी सी कमी रह जाती है interviewer के मन में और उसे पूरा करने के लिए वह दूसरा कोई सवाल पूछ लेता है।
ये सिलसिला होता है interview में।
तो इसने cheating छोड़ देने का क्या लाभ मिल जाता है, एक संतोषजनक जवाब देने में?
बात personal honesty में एक ख़ास वर्ण, intellectual honesty की है, जिस बौद्धिक अवस्था को प्राप्त करने की पहली सीढ़ी होती है शायद exams में cheating छोड़ देना, फर्रे बना बना कर।
संतोषजनक जवाब तब निकलते हैं इंसान के भीतर में से, जब वो उन सवालों को अपने भीतर में पहले से ही बूझ चुका होता है, अपनी intellectual honesty के माध्यम से कि क्या वो जो जवाब सोच रहा है, वह पूर्णतः सत्य है, संतोषजनक है , या नहीं।
Intellectual honesty के विषय पर youtube पर काफी सारे वीडियो उपलब्ध है जो बताते हैं कि ये behaviour trait क्या होता है।
इसमें, यानि intellectual honesty में बात ये नही है कि खुद को निढाल, नंगा, अस्त्रहीन कर लिया जाए और सब कुछ सच- सच बता दिया जाए, अपने विषय में। बात ये है कि अपने ही जवाबों को परख कर लिया जाए कि ये सवाल के उद्देश्य को पूरा करने वाला है , या नहीं। जब analytics सही होती है, तब इंसान खुद से भी सोच सकता है कि उनके जवाब के आगे फिर क्या सवाल उठा सकता है interviewer के मन में, अगर वह भी वैसी analytics रखता है विषय पर।
Intellctual Honesty विकसित करने के लिए सही analytics आना जरूरी है। सही analytics के लिए सभी के विचारों को सुनना , समझना और सही संतुलित जवाबों को चिन्हित करते रहने की निरंतर योग क्रिया (बौद्धिक योग) करना पड़ता है। अब आगे , इसके लिए विनम्रता, सहनशीलता जरूरी व्यवहारिक गुण बन जाता है।
तो ये खुद ही अपने आप में एक conceptual सी बात है, यानी एक जवाब में से निकलता दूसरा सवाल, अनंत सवाल जवाबों को कड़ी। जिसे कोई भी व्यक्ति दूसरे को सीमित शब्दों और संवाद से त्वरित नही कर सकता है। प्रत्येक इंसान को अपने अंदर से ही "पकड़ना" (समझना) पड़ता है।
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