आधुनिक Competetive Examination System की दुविधा

आधुनिक शिक्षा तंत्र की अजीब दुविधा हैं।

Competetive exams के संबद्ध में —

यहां कमाना ये करी गई होती है कि छात्र को विषय के बारे में कुछ गहराई से ज्ञान होना चाहिए।

मगर, साथ में समय बद्ध भी कर दिया जाता है।

यानी, गहरा जानने- जानने के चक्कर में गहराई में कतई उतरे का जोखिम नहीं लेना है, अन्यथा भटक जायेंगे और समय रेखा पर मात खा जायेंगे !

विषय में गहराई से जानने का अर्थ होता है उसके दर्शन को पकड़ना।! मगर, competetive exams system तंत्र चाहता है कि आप philosophy पढ़ने में बिना समय जाया किए,  बिना philosophy पढ़े ही उसे गहराई से जान ले !!

अधिकांश छात्र यहां पर मात खा रहे होते हैं। गहरे से समझने की मजबूरी उनको ऐसे ऐसे स्थानों पर गहराई में ले जाती हैं, जहां वह philosophy को ही सुनने से मंत्रमुग्ध हो कर भटकने लग जाते हैं ! और समय रेखा पर मात खा बैठते हैं !

अब,
विशेष समस्या जो सामने आ निकल कर आ रही है, क्या आपने उसे बूझ कर उसका निराकरण समझ लिया है ?

ये कि, बिना philosophy पढ़े ही गहराई से ज्ञान कैसा अर्जित किया जा सकता है ?

इसका केवल एक ही समाधान है -- कि कोई गुरु पहले से ही मार्गदर्शन करने को बैठा रहे तमाम विषयों में, जो ये बताता रहे कि कहां कहां कितनी कितनी गहराइयों में जाना है। वह ये भी सावधान करता रहे कि कहां कहां आप भटक करके के इतनी गहराई में उतर रहे है कि आप समय रेखा पर मात खा जायेंगे !

इशारा Coaching पर है।

Tricky question + time boundedness

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs