दुर्घटना से सुरक्षा पर एक मौलिक चिंतन

दुर्घटना से सुरक्षा पर एक मौलिक चिंतन

(स्कूल के दिनो मे पाठ्यक्रम में पढ़ाई  गई किसी कहानी की धुंधली सी स्मृति पर आधारित)


लेखक के राशिफल में आज लिखा हुआ था कि उसके संग कोई दुर्घटना घट सकती है ।

लेखक सुबह उठते ही अखबार में अपना राशिफल पढ़ता था, और उसके अनुसार अपनी दिनचर्या की योजना करता था। अब आज वो सुबह से ही परेशान था कि उसके संग घटने वाली दुर्घटना से बचने के लिए वह क्या कर सकता है।

रोज सुबह तो वह तैयार हो कर ऑफिस के किए निकल जाता था। मगर आज सोचने लगा कि ऑफिस जाऊं , कि नहीं। कहीं रास्ते में कोई अमीरजादे की सरपट दौड़ती कार उसे ठोकर मार गई, तो? कहीं कोई स्मगलिंग का सामान ले जा रहा ट्रक पुलिस से बचने के चक्कर में तेज दौड़ाते हुए उसे कुचल कर निकल गया, तो? कहीं कोई सरपट दौड़ती स्कूटर उसके बगल से निकली, जिसके हवा के झौंके में उसकी पतलून फंस गई और स्कूटर वाला उसे घसीटता हुआ आगे ले गया, जिससे उसके सर पर चोट लगी, आघात हुआ और वह मर गया , तो?

लेखक ने सोचा कि सबसे सटीक तरीका किसी दुर्घटना से बचने का, बस यह है कि घर के बाहर ही मत निकालो!

ये सोच कर वह वहीं पास में रखे सोफे में ठप्प करके बैठ गया।

मगर थोड़ी ही देर में उसके मन में वापस कुछ  डरावने, मौतीले खयाल आने लग गए !

मसलन, अगर कही कोई लड़ाकू जहाज उड़ता हुआ, पायलट से बेकाबू होंकर उसके घर पर आन गिरा , तो?
अगर कहीं भूकंप आ जाए, तो?

पता चला की अपने ऊपर आने वाली दुर्घटना की भविष्यवाणी, अपने संग संग अपने मकान को भी लीन डूबेगी । और क्या पता, परिवार के दूसरे सदस्यों को भी !

वापस एक नया सवाल मन के खयालों में आया — जाऊं तो जाऊं कहां, करू तो करूं क्या? कैसे इस आने वाली आफ़त को टालू? कैसे इससे जान बचाऊं?

फिर सोचा, क्यों न किसी पंडित जी से बात करी जाए , ग्रह दोष शांत करने के लिए?

मगर तभी खयाल आया कि कहीं ग्रह दोष शांत करने में कोई उल्का पिंड अपने स्थान से सरक गई , तो? धरती पर सीधा उल्का पात हो जायेगा, और अपने संग संग धरती को भी लीन बैठेगा !

हाय राम! अभी तक सिर्फ अपनी जान बचाने की सोच रहा था, और अब खतरा अपने अलावा अपने मकान और यहां तक कि आधी धरती पर ही आ घिरेग !

अगर ऐसा हो गया तो ये कुछ ज्यादा हो जायगा ! बेहतर है चुप चाप सिकुड़ कर यूं ही, यही पर बैठा बैठा दिन बिता दिया जाए ! कुछ खाया पिया भी नही जाए ! क्या पता खाने का कोई टुकड़ा गले में फंस गया, और सांस उखाड़ ले गया !
मगर , खाना नही खाया, तो भूख प्यास से भी तो मर सकता है आदमी !

ऐसा हो गया , तो?

बड़ा सवाल मार में आ घिरा, एकदम दार्शनिक वाला ! कि आखिर इंसान को सच्ची सुरक्षा कहां से मिल सकती है?  जन्म लेने का तो संसार में केवल एक ही तरीका होता है ! या तो अंडे से निकल कर, या मां के गर्भ से निकल कर। मगर मरने के तो हजार तरीके होते हैं, या शायद अनगिनत ?

तो क्या करें? सच्ची सुरक्षा कहां से लाएं?
गंभीर चिंतन में इसके कुछ सुझाई पड़ा ! भगवद गीता का श्लोक , कि कर्म किए जा तू ए इंसान, .....

यानी, भगवान के भरोसे छोड़ कर काम बन सकता है !

मगर फिर सवाल आया, कि क्या भगवान भरोसे बैठे रहने से सब ठीक हो सकता है, तब इंसान को कर्म ही नही करने चाहिए !

या अगर भगवान आपको कर्म के अनुसार फल देता है, तो फिर उसे कैसे कर्म करने चाहिए कि जान बची रहे ?

अब उसको स्कूल में सुनाई गई क्रिश्चियन पादरी जी की वह कहानी याद आ गई, अपने कार पर ताला लगाओ, और उसके बाद भगवान पर भरोसा करो ! यानी ताला मारने का कर्म तो करना ही पड़ेगा, तभी काम बन सकता है!

मगर मौत पर कौन सा तला काम करेगा ? यमराज को किस ताले से रोका जा सकता है ?

किसी पुराने, यूनानी दर्शिकों की बाते स्मरण में आने लगी, कि जीवन एक चक्र की तरह होता है, जो अतीत में हो चुका होता है, गोल घूम कर वही वापस भविष्य में लौटता ही है !

इसका मतलन हुआ कि अगर पुरानी घटनाओं से सबक लेते हुए एक लेखा जोखा बनाए रखा जाए, और भूल सुधार करते रहें, तब काम कम हम वह कार के दरवाजे पर ताला डालने वाला काम तो कर ही लेंगे। उसके आगे केवल भगवान पर भरोसा करने वाला काम रह जायेगा।

लेखक को याद आया कि बस इसी सोच से तो Greek लोगो ने ISO नामक उद्योगिक सुरक्षा जांच तंत्र की स्थापना करी हुई है, जो कि दुनिया के प्रत्येक उद्योग में कुछ न कुछ जांच परख करने की कवायद करती है, ताकि इंसानी जिंदगी कही भी,किसी की भी सुरक्षित बनी रहे ।

मगर —
— इंसान अमर अभी भी तो नहीं हो सका है । तो बेकार में इतनी मेहनत करके क्या फायदा ?

लेखक के मन में सवालों का भंवर उठ चुका था, जो अब शांत होने का नाम ही नही ले रहा था।

सिरफिरे, और पगले लोग भी तो होते हैं दुनिया में। क्या पता कहीं कोई ऐसा ही सिरफीरा किसी ISO तंत्र में बैठा, किसी उत्पाद को सुरक्षित होने का सर्टिफिकेट दे दे, या कोई रिश्वतखोर, घूसखोर ही ऐसा सर्टिफिकेट दे दे । और बाद में कोई हवाईजहाज सैकड़ों मुसाफिरों को ले कर समुंद्र में लीन जाए !

ओह! कोई कमी नहीं है, खतरे को आने के मार्गो की !
तभी लेखक को याद आया कि कैसे ISO वालों ने भी तो ये बात बुझी हुई है, और उन्होंने इसीलिए तो हर कार्य को double check करने वाली युक्ति करी हुई है । iSO एक विस्तृत खाका है, काम करने का, जिसमे ये भेद गुण छिपे हुए है, खतरों के तमाम मार्गों पर लगाम कसने के लिए।

सुरक्षा केवल आप ही के सुरक्षित तरीकने से काम कर देने भर से नहीं आ जाती है। दूसरे कई सारे लोग भी होते है लंबी कड़ी में, आप से अनदेखे और अनजाने। मगर उनमें से हर एक को भी ठीक ठीक गुणवत्ता से , खरे मानक का पालन करते हुए काम करना होता है, तब जा कर सुरक्षा आती है।

लेकिन बीमारियों पर तो अभी भी इंसानी ज्ञान अधूरा है कि जीवन जीने का सही, खरा मानक कौन सा होता है, जिसके पालन से इंसान बीमारियों से मुक्त और दीर्घायु बन सकता है ?

शायद इतनी घरी सोच से भी तो अवस्वाद हो सकता है, जिससे तनाव बन जाए और वही तनाव मानसिक बीमारियों की जड़ बनने लगे ! और फिर, क्या पता, इंसान अपनी जान खुद से ले ले !

यानी, इतना सब कर के भी अनजान, और अबोध रहने वाले सुख को अपने भीतर बनाए रखा, अपने भीतर की खुशी बचाए रखा,
इतनी बड़ी कार्यवाही करनी पड़ सकती है !
यानी , दो विपरीत दिशाओं के मानकों को एक साथ पकड़ लेने की चुनौती !

सच है, अंत में इंसान तो केवल कोशिश ही कर सकता है, फल देना तो ऊपर वाले के हाथो में होता है।

बस, इंसान की सच्ची कोशिश ही उसको मनवांछित फल दिलवा सकती है, भगवान से !

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