बोध और ज्ञान का अंतर
बोध और ज्ञान के बीच का अंतर घना होता है।
ज्ञान शब्दों से त्वरित किया जा सकता है, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक।
मगर बोध में मानव हृदय की भावना भी सम्मलित होती है, इसलिए वह शब्दों से त्वरित नहीं किया जा सकता है।
बोध, यानी realisation , अंदर से आई जागृति होती है. इसमें सूझबूझ, सहूलियत, दूरदर्शिता, आगामी अपेक्षा, प्रेम, द्वेष, जैसे तरल वस्तु भी मिश्रित होते हैं ज्ञान के संग में।
इसलिए एक इंसान को बोध अलग हो सकता है, दूसरे इंसान से, सामान विषय ज्ञान पर !
जबकि ज्ञान महज कोई तथ्यिक , वस्तुनिष्ठ बात होती है।
ऐसे कई सारे विषय होते हैं इंसानी संबंधों और इंसानी आदान प्रदान के दौरान , जहां किसी अमुक व्यक्ति के किसी निर्णय , कर्म, कथन, इत्यादि के पीछे में अप्रकट कारणों के पीछे कई विचार हो सकते हैं। अगर कारण खुद से प्रकट भी किए गए हो, तो भी छलावा या गलती की संभावना भी तो होती है। ऐसे में, सत्य या वास्तविक कारण का ज्ञान नहीं किया जा सकता है, उसे केवल बोध करना होता है ।
बोध के लिए प्रचलित भाषा में दूसरे शब्द अक्सर प्रयोग किया जाता है - "बूझ लेना"।
बोध निर्मित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अंदरूनी स्तर पर बाद विवाद करना होता है , दूसरे व्यक्ति से नहीं। दूसरे व्यक्ति से करी गई बहस का हालांकि योगदान ये होता है कि वह इंसान के अंदर की बहस में हो रही गलतियों और चूक (oversights) को सुधार करने में सहायता देती है।
बोध तंत्र विकसित करने के लिए इंसान को बाल्यावस्था से भावुक बनने का अभ्यास करना होता है, सिर्फ ज्ञानवान नहीं।
ज्ञान शब्दों से त्वरित किया जा सकता है, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक।
मगर बोध में मानव हृदय की भावना भी सम्मलित होती है, इसलिए वह शब्दों से त्वरित नहीं किया जा सकता है।
बोध, यानी realisation , अंदर से आई जागृति होती है. इसमें सूझबूझ, सहूलियत, दूरदर्शिता, आगामी अपेक्षा, प्रेम, द्वेष, जैसे तरल वस्तु भी मिश्रित होते हैं ज्ञान के संग में।
इसलिए एक इंसान को बोध अलग हो सकता है, दूसरे इंसान से, सामान विषय ज्ञान पर !
जबकि ज्ञान महज कोई तथ्यिक , वस्तुनिष्ठ बात होती है।
ऐसे कई सारे विषय होते हैं इंसानी संबंधों और इंसानी आदान प्रदान के दौरान , जहां किसी अमुक व्यक्ति के किसी निर्णय , कर्म, कथन, इत्यादि के पीछे में अप्रकट कारणों के पीछे कई विचार हो सकते हैं। अगर कारण खुद से प्रकट भी किए गए हो, तो भी छलावा या गलती की संभावना भी तो होती है। ऐसे में, सत्य या वास्तविक कारण का ज्ञान नहीं किया जा सकता है, उसे केवल बोध करना होता है ।
बोध के लिए प्रचलित भाषा में दूसरे शब्द अक्सर प्रयोग किया जाता है - "बूझ लेना"।
बोध निर्मित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अंदरूनी स्तर पर बाद विवाद करना होता है , दूसरे व्यक्ति से नहीं। दूसरे व्यक्ति से करी गई बहस का हालांकि योगदान ये होता है कि वह इंसान के अंदर की बहस में हो रही गलतियों और चूक (oversights) को सुधार करने में सहायता देती है।
बोध तंत्र विकसित करने के लिए इंसान को बाल्यावस्था से भावुक बनने का अभ्यास करना होता है, सिर्फ ज्ञानवान नहीं।
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