बोध की बात को शब्दों में पिरो कर प्रसारित नहीं किया जा सकता है। बोध की बात व्यक्ति को खुद की अक्ल लगा कर पकड़नी पड़ती है

अब, जब प्रकाश को अकेला ही सलोनी से चुपके से जा कर मिलने और उसके घर में रह कर लौटने का नतीजा भुगतने का अनुभव मिल चुका है,

तो अब पलट कर घटना का what–if समीक्षा करिए , अपने दिमाग की थोड़ी सी वर्जिश करते हुए, कि क्या होता — क्या बातचीत चल रही होती— यदि प्रकाश  यही सलोनी से मिलने जाने के लिए हमसे पूछ कर के जाने की कोशिश कर रहा होता।

संभव है कि हम प्रकाश को मना कर रहे होते , मगर तब हमे उसे यह समझना बेहद मुश्किल हो रहा होता कि उसे सलोनी से क्यों नहीं मिलना चाहिए। हम शायद प्रकाश से बेहद तर्क वितर्क कर रहे होते ,
— तमाम किस्म की घटनाओं की दुहाई दे रहे होते,
— पूराने और मिलते जुलते अपनी जिंदगी की खट्टे मीठे अनुभवों को सांझा कर रहे होते इस उम्मीद के संग की शायद बात का निचोड़ वह खुद की अक्ल लगा कर पकड़ने में समर्थ हो जाएगा।

शायद हमारे लिए बेहद मुश्किल होता सीधे, एक पंक्ति के संक्षिप्त तथ्यिक ज्ञान की तर्ज पर अपनी बात को कह गुजरना, क्योंकि इस मामले में तमाम भावनात्मक पहलू, सामाजिक धार्मिक पहलू भी तो थे ,जिनको की प्रकाश (या उसके जैसा कोई भी नौसिखिया इंसान) केवल बोध से ग्रहण कर सकता । मगर ऐसे बोध कर सकने के लिए उसे बुद्धि और मन से पर्याप्त ठहर प्राप्त कर चुका होना होता। महज स्कूली कितनों से संग्रहित किए गए तथ्यिक ज्ञान को दुनिया की समूची समझदारी मानने वाले बालक के लिए ' बोध' और ' ज्ञान' के मध्य का अंतर बूझ सकना, अनुभूति कर सकना असंभव सा होता है। ठोकर खा कर लगने वाली चोट की पीड़ा कई सारे बच्चे केवल दुबारा से ठोकर खा कर ही समझ पाते है, क्योंकि वह दूसरे के दर्द , पीड़ा विलाप को अपना मानना अभी तक नहीं सीखे होते है। जिससे कि वह बिना दुबारा ठोकर खाए ही सबक ले लें।

इंसान— कई सारे बालक— जब स्वयं माता पिता की छत्रछाया में विलास और खुशी के साथ हंसते खेलते बड़े होते हैं, तब अकसर ऐसे बालकों में करुणा और संवेदना नहीं विकसित हो पाती है। और ऐसे बालक पर्याप्त बौद्धिक विकास नहीं कर पाते है, maturity यानी ठहराव, अपने आज के छोटे से जीवन सुख का त्याग करना नहीं सीख पाते है, भविष्य के किसी सुदूर में पड़े मीठे फल की आशा में।
प्रकाश हमारे ऊपर अपने "क्यों" वाले प्रश्नों की झड़ी लगा रहा होता। वह अभी विषयों का  repercussions (प्रभावों ) नहीं बूझ पाता है, व्यक्तिगत सोच की दृष्टि के अलावा दूसरे अन्य — धार्मिक राजनीति सामाजिक आर्थिक वैज्ञानिक चिकित्सीय भावनात्मक—  दृष्टि बिंदुओं से । वह "मर्यादाओं" यानी self restraint के व्यवहार और उसके पीछे के कारणों को कतई नहीं समझ पाता।

बल्कि शायद उसे अभी तक इल्म भी नहीं है कि ऐसे भी कुछ point of views होते है, किसी व्यवहार, किसी क्रिया, किस कर्म के आने वाले नतीजों का पूर्वाभास लेने के लिए !  वह केवल अन्तर व्यक्ति संबंध से दुनिया के अस्तित्व को अनुभूति करता है, और इसलिए केवल इसी को दुनिया का सच मानता है।

उसको तनिक भी idea नहीं था कि सलोनी के परिवार वाले इसे कैसे देखने लगेंगे ! और इसलिए, शायद what —if में, हमारे बीच एक बड़ी बहस हो रही होती, आपसी क्रोध बन रहा होता।

संभव है कि हम अनुमति ही दे दिए होते प्रकाश को, कि वह मिल सकता है सलोनी से। हालांकि तब हम ये एक योजनाबद्ध तरीके से करते इन सभी बातों के मद्देनजर की कहीं कोई क्षति नहीं हो जाए सामाजिक सम्मान और प्रतिष्ठा की, दोनों ही पक्षों की। इसके लिए , किसी neutral स्थान पर, समाज के ऐसे विषयों पर साधारण समझ के परोक्ष रह कर, मिलने का अवसर दिलवाने के अनुसार योजना बनाते।

और प्रकाश अभी तक अबोध बना रहता कि हम क्या करना चाहते हैं, क्यों और किस उद्देश्य से।

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