Character यानि शख्सियत के निर्माण क्रिया के विषय में
किसी भी इंसान में Character यानी शख्सियत को उभारने के लिए एक जरूरी कार्यवाही होती है भावनाओं को बहने देने का रास्ता देना। इंसान जब बच्चा होता है, उसका मस्तिष्क अपने आसपास के संसार को बस अपने अंदर ग्रहण करना शुरू ही करता है , तभी से उसके दिमाग में तरह तरह को भावनाएं उभरने लगती है। भय यानी डर एक प्रारंभिक और नैसर्गिक भावना होती है जो कि प्रकृति सभी जीव जंतुओं में जन्म से ही सुसज्जित करके जन्म देती है। मगर इसके बाद आगे की भावनाएं संसार में आने के बाद में उत्पन्न होती है। माता पिता के प्रति प्रेम, दूसरे नंबर पर होती है। माता के आने से हुई खुशी तीसरी भावना , और फिर बाहर घूमने निकलने पर होने वाली जिज्ञासा शायद चौथी नंबर पर उत्पन्न हुई भावना होती है बालक के अंदर में । भावनाओं की ये संख्या यहीं खत्म नहीं होती है। आगे समय के संग संग और भी आती रहती हैं। दिक्कत होती है जब ये सभी भावनाएं संसार का आनंद लेने में दिक्कत करती है , क्योंकि सही समय पर सही प्रकार की भावना के संग हम अपने माता पिता, बंधु या मित्र से अपने अनुसार, अपनी अपेक्षित प्रतिक्रिया ले सकने से बात नहीं कर पाते हैं। ...