क्यों पिछड़ा और दलित वर्ग ही निजीकरण (बाज़ारीकरण) का विरोधी वर्ग होता है ?

आम भारतीय जनता अभी भी अर्थव्यस्था और उसके मापने के तरीकों को जनती समझती नही है।

 अर्थव्यस्था शब्द के नाम पर एक आम भारतीय कुछ भी नही सोचता है।

पिछड़ा और दलित वर्ग "आर्थिक अंश" शब्द तक ही सोचता है, और फिर स्वतः आरक्षण नीति तक बातें पहुंचा देता है। दलित पिछड़ा वर्ग स्वभाव से ही "समाजवादी" अर्थशास्त्र नीति का होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह वर्ग गाँव में अधिक बस्ता है , शहरों की बजाये। और इस वर्ग के जो कुछ थोड़े बहोत लोग शहरों में हैं, वह नौकरी पेशे वाले ही है, उसमे भी अधिकांश तो सरकारी नौकरी में, आरक्षण नीति की सुविधा के चलते। तो कुल मिला कर यह वर्ग व्यापारिक उद्यम कर सकने वाला वर्ग नही है। इसलिए यह वर्ग ऐसा स्वतः ही सोचता है की पूरी दुनिया के आर्थिक चक्के को वैसा ही चलाया जाता है जैसा की उनके गांव में पंचायत सभा गाँव की सड़कों, अस्पताल और स्कूल चलवाती है, ट्यूबवेल के पम्प लगवाती है।

तो यह वर्ग जैसा अपने गाँव में देखता हुआ आया है, वह यही सोचता-समझता है की बड़ी दुनिया में भी बस वही होता है अर्थव्यवस्था के नाम पर , बस थोड़ा से बड़े आकार में।
इसलिए ही यह वर्ग निजीकरण का भी विरोधी है। मोदी जी को मालूम है की वास्तव में इस वर्ग को अर्थव्यवस्था की चिंता होती ही नही है 😋😉, क्योंकि वह तो वैसे भी दिन भर "upsc की तैयारी" करके किसी UPSC-छाप IAS बन कर उद्योग का chairman बनने तक की ही सोचता है। इस वर्ग के UPSC-छाप छात्र किसी बड़े निजी उद्योग स्वामी के दिये बयानों से ही अर्थव्यवस्था को बूझते है।
जिसमे की कोई ज्यादा दिलचस्पी लेने वाला है नही।

और इन निजी उद्योग स्वामियों की मुश्किल यह है की यह खुद भी अपना धन उन्ही मोदी जी की पार्टी को प्रसार करने के लिए ही दान-खर्च करने वाले हैं, क्योंकि UPSC-छाप "समाजवादी" IAS  को वह अपना पुश्तों का बसाया उद्योग नही सौंप देना चाहेंगे।
तो उद्योगपति भले ही मोदी जी के काल में अर्थव्यवस्था की कमियों पर बयान दे लें, मगर अंत में चुनाव वाले दिन उनको अपना वोट भी मोदी जी को देने जाना है।

ठीक वैसे जैसे "समाजवादी" विचारधारा के लोगों को अर्थव्यवस्था के हालात बुझाई नही पड़ते हैं। वह भले ही उद्योगपति की कही-सुनी बातों से अर्थव्यवस्था पर अफ़सोस जाता लें, विपक्ष में रहते हुए, मगर सत्ता में आने पर नौकरी विषयों में अधिक दिलचस्पी रखते है, उद्योगों में न तो इनके लोग है , न ही इनकी अभिरुचि।

Comments

Popular posts from this blog

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार