नौकरशाही का जो चलन हमारे देश में है,उससे काल्पनिक देश utopia को भी नरक बना देंगे

अपने पेशे से मैं एक professional हूँ, लोकसेवा दार यानी public servant नही हूँ।
अब इन दोनों शब्दों के अभिप्रायों में क्या अंतर है, और उस अंतर का क्या प्रभाव होते है, इनको जानने समझने के लिए आपको आर्थिक इतिहास पढ़ना पड़ेगा।।वह भी विश्व आर्थिक इतिहास, न की भारत का। भारत का आर्थिक इतिहास मात्र economic drain की दास्तां है, इसमें यह सबक है ही नही की अच्छे , समृद्ध देश आखिर बने कहां से, कैसे?
और किताबों में पढ़ा जा रहा भारत का इतिहास , सामाजिक और राजनैतिक इतिहास एक सामाजिक स्तर का मनोरोग बन चुका है, जिससे समाज में हिंसा और महामूर्खता मनोचिकितसिय बीमारी फैल रही है epidemic स्तर पर।

professional क्षेत्र रहते हुए मैंने अपने ही लोगों के इतिहास को देखा और खोज किया है। यह जानते और बूझते मुझे थोड़ा समय लगा गया की कैसे हम नौकरशाही के नियंत्रक होने चाहिये थे अगर भारत को समृद्ध देश बनाना था, और कैसे आज, उल्टे, हम उनके सेवक बन कर clerk स्तर की जी-हजूरी करने लगे हैं।

तो आर्थिक इतिहास के पाठ से मिले सबक में मैं यह तसल्ली कर चुका हूँ कि नौकरशाही का जो चलन हमारे देश में है, उससे हम atlantic महासागर के मध्य बसे काल्पनिक देश utopia को भी नरक बना देंगे, दक्षिण महा सागर में बसे काल्पनिक देश dystopia का सुधार कभी नही कर सकेंगे।
सीधी , सच्ची दो पैसे की बात है।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs

आधुनिक Competetive Examination System की दुविधा