सभ्यताओं का अंतर और प्रजातंत्र लागू करने का तरीका

किसी भी नाविक से पूछिए, वह आपको बता देगा कि दुनिया के गोल होने की वजह से धरती के दोनों गोलार्ध के लोग प्रतिपल एक दूसरे के विपरीत हालात के दर्शन कर रहे होते हैं। एक गोलार्ध में दिन होता है, तो दूसरे में रात। यह कभी भी सम्भव नही की पूरी धरती एक साथ एक जैसे ही दर्शन ले।
यही है सभ्यताओं के अंतर।
सभ्यताएं इंसानो के भीतर में अपने जो गुण छोड़ती हैं, भोजन, भाषा और पहनावे के माध्यम से, उसे संस्कृति बुलाया जाता है।
प्रजातंत्र के प्रति इसके उच्चारण और इसको लागू करने में दो अलग सभ्यताओं की संस्कृति के प्रभावों के चलते अलग अलग तरीके विकसित हुए। इन अन्तर के चलते ही कही पर तो प्रजातंत्र व्यवस्था अधिक सफल बनी, और कहीं पर "स्थानीयकरण" के प्रभावों में एक "खिचड़ी" बन कर समाज को वापस अन्धकारयुग में ले जाने वाली व्यवस्था बन गयी।
प्रजातंत्र को पश्चिम में बाज़ारवाद यानि free market के प्रभावों में ही समझा गया है। वहां प्रजातंत्र के रखवाले खुद नागरिक ही होते हैं, जो कि नही चाहते हैं कि उसकी कमाई संपत्ति को राजा-महाराजा छेक ले।
यहां भारत मे indianisation करके हमने socialism का पालन किया है, जो कि हमारा सांस्कृतिक प्रभाव का नतीजा है। चाहे जवाहरलाल नेहरू का russian संस्करण से निर्मित पंचवर्षीय योजना वाला मॉडल हो, चाहे विपक्ष में बैठे जनसंघ या राममनोहर लोहिया का मॉडल समाजवादी मॉडल हो। भारत मे प्रजातंत्र को समाजवाद के प्रभावों में ही समझा गया है। यह तासीर आरक्षण नीति के चलते और अधिक गहरी ही हुई है, इसकी खामियों का अध्ययन नही किया गया है।
भारत की व्यवस्था की खिचड़ी से हुआ क्या ?
अमेरिका में जहां की प्रजातंत्र है, वहां सरकार व्यापारों को नही संभालती है, और बदले में जनता से टैक्स लेती है। सऊदी अरब में जहां प्रजातंत्र नही है, वहां सरकार ने सभी तेल के कुओं का सरकारीकरण कर दिया है, और बदले में टैक्स नही लेती है।
और यहां भारत की खिचड़ी में सरकार व्यापार भी संभालती है, और टैक्स भी वसूलती है !!😋😀😀
भारत का यह भोजन ,खिचड़ी, असल में भारत की पहचान है। मगर इसमे गर्व करने वाला मसला अभी ज्यादा कुछ है नही। असल में यह शुद्धता के विरुद्ध का चलन है। दूसरी संस्कृतियां जहां शुद्ध को तलाशती है, हम लोग सब कुछ मिश्रण कर देने में यकीन करते है। उसी गंगा को मा मानते है, उसी में नाले को निकास कर देते हैं।
यह संस्कृति मज़बूरी के मोड़ लेती हुई उत्पन्न हुई है, हज़ार वर्षो की ग़ुलामी के दौरान, और हम उसे अपने पौराणिक भारतीय सभ्यता समझ कर बचाव करते हैं।
उसी संस्कृति से संविधान में भी मिश्रण कर देने वाली नौकरशाही का भी निर्माण हुआ है। जो लोग पौराणिक संस्कृति के बचाव के पक्षधर नही है, वह संविधान के बचाव में , अनजाने में वापस उसी को ही बचा रहे है।
शायद हमे कुछ मूलभूत बदलावों को सोचना होगा। मिश्रण को प्रेरित करती संस्कृति से हट कर के शुद्धता को तलाशना शुरू करना होगा।

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