अग्रिम और पिछड़ी जातियों का वर्गीकरण, और अध्ययन मेरे अनुसार
अगर 16वीं शताब्दी के पर्यान्त समुदायों (जो की 'जाति' से संबंधित एक अन्य पर्यायवाची नाम ही होता है) के बीच आर्थिक संसाधनों के बटवारे को समझे तब सबसे प्रथम हमे दो वर्गों को चिन्हित करके काम को आगे बढ़ाना होगा। दो प्रमुख वर्ग थे - उद्योगिक श्रम (Industrious) वाले समुदाये , और कृषक श्रम(Pastoral) वाले समुदाये।
16वीं शताब्दी के बाद में अग्रिम समुदाये वह हैं जो की 'उद्योगिक श्रम' करते थे।इससे पहले 'कृषक श्रम' वाले समुदाये अधिक समृद्ध और राजनैतिक बलवान हुआ करते थे। 16वी शताब्दी मानक इसलिये बनी क्योंकि यहां से ही steam engine बना, जो की निरंतर, अथक श्रम का प्रथम संसाधन था मानव इतिहास में, और जहां से professionals ने बढ़त बना ली युद्धक और कृषक लोगों से। यहां से ही factorइया बनी, और फिर उद्योग बने।
जमीन का प्रयोग वह विषय था जहां से बदलाव ने असर दिखाया था। उद्योग आ जाने से जमीन का छोटा अंश, यदि वह उद्योग में है तो फिर अधिक उत्पादन शील हो गया, किसानी और पशु पालन के मुकाबले।
दूसरा की उद्योगी आदमी को किसी एक स्थान पर बंधना मुश्किल था, क्योंकि जहां बाज़ार में saturation आ जाता है वहां उसके लिए मुश्किल बन जाती है। तो फिर वह अचल नही रह गया, निरंतर चलत , गतिशील और अन्वेषक बन गया। किसान की ज़रूरतों के विपरीत विचार था यह। किसान जमीन से बंधा था, और स्थिर और गतिहीन था। वह पत्थर की तरह पड़ा रह गया और ज्ञान से भी दूर चला गया। नतीज़तन कृषक समुदाये पिछड़े होते चले गये।
उद्योगी व्यक्ति अन्वेषक बन गया, साथ में नित नये कौशल ईज़ाद करते हुए नयी नयी बाज़ार जरूरतों को जन्म देने लगा। हां, वह भोगवादी भी बना और साथ में पर्यावरण का विनाशक भी। मगर फिर सफलता उसकी ही थी। पैसे का अर्थ तंत्र तो उसके ही संग में आ बैठा, उसकी मुठ्ठी में।
कृषक को जब तक एहसास हुआ बहोत लेट हो चुका था। वह हल्के फ़ाल्के , पुराने और सरल कौशलों से गुज़ारा करने को बाध्य हो गया। जैसे की मोटर कार चलाना, मोटर कार की मरम्मत, सैनिक बन जाना, वगैरह। अधिक जटिल कौशल उसके लिए सीखना मुश्किल थे, साथ में यह था की सीखने की कीमत भी बहोत ज्यादा थी।
उद्योगिक समुदायों के परिवारों में नयी किस्म की नैतिकता ने जन्म लिया और धर्म को नये तरीके से उच्चरित कर लिया। यहां 'प्रबंधन' वाले ज्ञान ने जन्म ले लिया है, जो की झटपट ज़रूरत के अनुसार u turn देने के तर्क देती रहती है, कभी भी कुछ मर्यादा-बंधित नही करती है, और दोस्ती-दुश्मनी का अर्थ पैसे से जोड़ देती है। कृषक क्योंकि स्थिर मानसिकता के लोग होते हैं, उनकी नैतिकता और धर्म का उच्चारण अलग होता है। वह मर्यादा से बंधते है।
मर्यादा = Conscience tied.
उद्योगिक मर्यादा अलग ही है। इसमें कुछ भी करना अथवा नही करना में स्वेच्छा का प्रसंग पैसे के लाभ-और-हानि से बदलता रहता है। दुनिया में कुछ भी स्थिर नही है। तुरन्त लाभ और हानि के अनुसार वह निर्णय लेते हैं।
मर्यादा = Conscience tied.
उद्योगिक मर्यादा अलग ही है। इसमें कुछ भी करना अथवा नही करना में स्वेच्छा का प्रसंग पैसे के लाभ-और-हानि से बदलता रहता है। दुनिया में कुछ भी स्थिर नही है। तुरन्त लाभ और हानि के अनुसार वह निर्णय लेते हैं।
कृषक समुदायों में समाज क्या कहेगा, वगैरह को आगे रखा जाता है। "सम्मान" अधिक महत्वपूर्ण है, और "सम्मान" का यही अभिप्राय होता है की "दुनिया क्या कहेगी', "वो चार लोग सुनेंगे , तो क्या कहेंगे"। वह दोष-भाव यानी guilt से भी खूब प्रभावित रहने वाले समुदाये हैं। और इसलिये दुखों से घिरे रहते हैं, आपसी क्लेश या पारिवारिक क्लेश रोज़मर्रा की बात होती है। आपसी सहयोग न तो इनकी ज़रूरत होती है, और न ही वह इसे प्राप्त करने पर महत्व देते हैं। वह आसानी से एकाकी परिवार में जीवन यापन कर लेते हैं। जबकि उद्योगिक श्रम में बड़ा करने पर बल दिया जाता है, और बड़ा करने के लिए आपसी सहयोग आवश्यक होता है तमाम बाधाओं को लांघने के लिये, व्यापार के फैलते अंग को स्थान स्थान पर संभालने के लिए।
अब शायद ज्यादा सरल हो जाये अग्रिम और पिछड़ी जातियों (अथवा समुदायों) का वर्गीकरण करना उनकी चारित्रिक विशेषता के आधार पर।
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