भारत मे सामाजिक व्यापारिक कंपनियों का बाज़ारीकरण...आखिर कौन हो सकते हैं सरकार के सलाहकार?

जिस हिसाब से सरकारी उद्योगों का बाज़ारीकरण (निजी करण ) किया जा रहा है, , बगैर नौकरशाही को सीमित किये, और उपभोक्ता जागरण (नागरिकों की अभिलाषा) को बिना प्राप्त किये और पर्याप्त संरक्षण (नागरिकों की शंकाओं का समाधान) दिये,

तो,
कभी कभी लगता है कि सरकार के सलाहकार में विदेशों से पढ़ कर कर आये बड़े बापों की बिगड़ी औलादें आ गयी है, जो की भारत के अंदर और विदेशों की व्यवस्था का अंतर समझे बिना ही सिर्फ rhetoric सवाल पूछ-पूछ कर अपना business interest आगे बढ़ा ले रहें है कि "भारत में ऐसा क्यों नही हो सकता है ? भारत में ऐसा क्यों होता है?"
और फिर सवालों के जवाबों से बेख़बर सरकारी बाबू, अपने मंत्री साहेब की चमचागिरी के दबाव में वैसा का वैसा ही कर दे रहा है।

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