भारत की संस्कृति में स्वेच्छा का अभाव , और मालिक नौकर संबंध में गड़बड़ का मूल

जब मै SCI में था, और उसके बाद private foreign companies में काम किया,
एक बड़ा अंतर यही महसूस किया है, कि free will यानि *स्वेच्छा* को conserve कर सकने की क्षमता भारत के सरकारी तंत्र में बहोत निम्म और कमज़ोर है। *स्वेच्छा* की कमज़ोरी के  चलते employee और employer में एक game आरम्भ हो जाता है। employer काम को वसूलने की चालें चलता है, और employee(या worker) 'गाला मारी' की कोशिश करते हुए काम करने से बचने की।
Employer पैसे कम देना चाहता, या इतने पैसे में कहीं अधिक काम वसूलना चाहता है। employee कम तनख्वा की शिकायत सदैव पालते हुए कम काम करना चाहता है, या अक्सर तो optimal से भी कम करते हुए कामचोरी कर देता है।
मामले की जड़ भारत के तंत्र में "स्वेच्छा" की गड़बड़ से है। भारत की संस्कृति में "साम, दाम, दंड , भेद" का चलन है। यानी "स्वेच्छा" का सम्मान तो संस्कृति के अनुसार ही संभव नही है। यह दशा पश्चिमी संस्कृति के ठीक विपरीत है।
भारतीय संस्कृति में मालिक-नौकर सम्बन्ध का अस्तित्व नही होता है। यहां भगवान राम और भक्त हनुमान वाला सम्बंध है। जिसमे स्वेच्छा ही स्वेच्छा है।
जबकि बाइबिल और कुरान तो बने ही है मालिक नौकर संबंध का एक commandment देते हुए। sunday यानी इतवार की छुट्टी का चलन इस बात की गवाही है। sunday शब्द का मूल ही यहूदी धर्म मे sabbatical शब्द से निकलता हुआ आता है। जो की बाइबिल के old testament में दिया गया है कि हर मालिक को अपने ग़ुलाम को हफ्ते एक दिन छुट्टी देना आवश्यक होगा , मालिक को अपने अल्लाह की खिदमत करते हुए !(न कि इसलिये की ग़ुलाम तसल्ली से घर जा कर अल्लाह की ख़िदमत कर सके) ! इस्लाम मे यह दिन जुम्मा मुकर्रर हुआ है, यहूदियों में sunday और ईसाइयों में भी sunday का चलन है !!
जबकि हिंदुओं में राम और हनुमान के संबंध में इतना प्रेम है कि छुट्टी की बात ही नही हुई है ।
हनुमान का दिन मंगलवार है, मगर सिर्फ भोग लगाने के लिए।छुट्टी के लिए नही है।
तो कुल मिला कर हिन्दू धर्म स्वेच्छा को न तो अलग से पहचान करता है, न उसे इंसानी रिश्तों की बुनियाद में कही ढूंढता है। जबकि पश्चिम में स्वेच्छा में ईश्वर का निवास माना गया है।
पश्चिम में *स्वेच्छा*  को बदले के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन - inspiration और motivation - ही जायज़ तरीके माने गए है। यहां भारत तो है ही ' *साम, दाम, दंड भेद* ' वाला।
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अंग्रेज़ी कानून का आधार ही स्वेच्छा है। यहां स्वेच्छा का स्थानीय संस्कृति में ही अतापता नही है ।

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