अख़बार और टीवी क्यों कभी भी Whole Truth नहीं बताते हैं ?

अखबारों और टीवी के समाचारों का क्या है ..?

वो तो शायद चाहते ही नही हैं कि इंसानों में स्वचेतना आये की उचित-अनुचित खुद से तय कर सकें। इसलिये अखबार -या कोई भी समाचार- सिक्के के दोनों पहलुओं से एक साथ परिचय नही करवाते हैं। वह आधी जनता को एक तरफ का पहलू दिखाते हैं, और बाकी आधे लोगो को दूसरे तरफ का। और फिर जब लोग आपस मे ही भिड़ते है, मतविभाजन करते हैं, "राजनीति करते है" , तब ही इन अखबारों की दुकान चलती है।

अखबारों या किसी भी समाचार कंपनी के बारे में यह कमी जानी जाती है - कोई भी whole truth नही बताता है।
Whole truth जानने की कसौटी आसान नही है। उसमें घटनाओं का अध्ययन करना पड़ता है लंबे अरसे तक। अध्ययन से अभिप्राय है आसपास में रह कर चिंतन करना, विश्लेषण करना, सहयोगियों और विरोधियों के संग तर्क करना, दूसरों के चिंतन लेख पढ़ना

कहाँ , किसके पास टाइम ही होता है कि कोई किसी भी विषय पर इतना सब अध्ययन कर सके। सस्ते में काम चलाने के लिए अखबार कंपनी सिर्फ उसी की बात छापती हैं जो उनको पैसे देता है।

मगर इस तरह के अखबारों को पढ़ कर आप आत्मविकास ,आत्मसुधार की अपेक्षा नही करिये। आप को स्वयं से ही कार्यवाही करनी होती है अपने खुद के भले को प्राप्त करने के लिये।

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