Olden days dabate of school life - Why Science is a blessing or a curse

पुरानी, स्कूल level की debate है -कि, विज्ञान एक वरदान होती है, या अभिशाप।,
इसका निष्कर्ष यही हुआ करता था की विज्ञान तो मात्र एक औज़ार है, अच्छाई या बुराई का चरित्र तो उसको थामने वाले हाथों में होता है - मानवता करुणा भरा, या क्रूरता का।

और जब विज्ञान और तकनीकी को थामने वाले हाथ ही क्रूर, हृदय विहीन , मानव संवेदना से विमुख होते हैं, तब विज्ञान और प्रौद्योगिकी पुराने ज़माने के तानाशाहों और जमींदारों से अधिक क्रूर बन जाती है।

प्रोग्रोगीकि मानव संवेदना को ही नष्ट कर देती है, Dr Frankstein's monster बन जाती है।  लोग चीखते चिल्लाते रह जाते हैं, और प्रौद्योगिकी एक sound proof, ध्वनि तरंग रिक्त कक्ष बना देती है जिससे की दर्द भरी चीख बाहर ही न निकल सके और किसी को सुनाई ही न पड़े - "किसी और को परेशान न करे"।

मानव बुद्धिमत्ता का उद्गम खुद भावनाओं में ही तलाशा गया है। यह जितनी भी प्रौद्योगिकी है, इसके मूल को हम मानव करुणा में देख सकते है। intelligence केवल thinking से नही निर्मित हुई है, बल्कि feeling भी एक अभिन्न अंग रही है। आश्चर्य की बात यह है की विज्ञान आजकल ऐसे लोगों के हाथों में चला गया है जो feeling को ही ख़त्म करने लगे हैं।

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