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Showing posts from June, 2020
वैचारिक मतभेद से अपने ही देश बंधुओं को देशद्रोही और गद्दार केह देना उचित नही है
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संघ कि शिक्षा यही रही है कि इतिहास में यह देश हमेशा इसलिये पराजित हुआ है क्योंकि इसमे गद्दार बहोत हुए हैं। संघ मूर्खीयत का मुख्यालय है इस देश में ! गद्दारी को नापने वाला thermometer नही होता है। किसी को बेवजह गद्दार घोषित करके आप अपने ही बंधु से अपनी सहयोगी सम्बद्ध विच्छेद कर देते हैं। और फिर कमज़ोर, अलग थलग हुए , अपनी पराजय को सुनिश्चित कर देते है। समाज में सत्य और न्याय की आवश्यकता इन्हीं दिनों के मद्देनज़र आवश्यक मानी गयी थी। अब जब आपने न्यायिक संस्थाओं के संग छेड़छाड़ करि है, ज़ाहिर है आपने नासमझी करि है, तो समय है अपने मन में गलतियों से रूबरू होने का। दूसरे बंधु को गद्दार घोषित करके अंदरूनी चुनाव तो जीत सकते हो, मगर दुश्मन से युध्द नही जीत सकते हो।
अहंकार और सत्यवाचकों को अनसुना करने का आचरण
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चुनाव जीतने के लिए सामाजिक चितंन तक को खोखला कर देने से परहेज़ नही किया था।। तो अब आत्ममुग्धता के पीड़ित आदमी से बौद्धिकता की अपेक्षा कैसे करि जा सकती है? तब भी सत्यवाचकों ने चेतवानी दी थी की संस्थओं के संग छेड़खानी राष्ट्र निर्माण के कार्य में महंगी कीमत पड़ेगी, तुम चुनाव जीतने की छोटी उपलब्धि तो प्राप्त कर लो गे, मगर दीर्घकाल में समाज में से एकता को नष्ट कर दोगे। मगर आत्ममुग्धता से ग्रस्त इंसान सत्यवाचकों की ध्वनि को सुनता ही कहां है ?!
अहंकारी विधियों से आप भीतरी चुनाव तो जीत सकते है, बाहरी आक्रमणकारी से राष्ट्र की रक्षा नही कर सकते हैं
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अहंकारी की पहचान क्या है? वह आज के हालात में भी अपने ही देशवासियों को एकजुट हो जाने का आह्वाहन नही कर सकता है, क्योंकि बीते कल में इसी मुँह से उसने देशवासियों को अपने-पराये की दीवार से खुद ही तो बांटा था। अहंकारी आदमी team नही बना सकते है। दुनिया की सबसे mighty पार्टी हो कर भी छोटी से, नयी नवेली दो दिन पार्टी से मिली पराजय , वो भी 63/70 के साथ - ऐसा परिणाम वही राम-रावण युद्ध वाली स्थति का सूचक है- की पार्टी भले ही mighty बनाई हो, मगर वो भीतर से खोखली है -क्योंकि वह अहंकारी प्रक्रियाओं और विधियों से प्राप्त करि गयी थी। ऐसी उपलब्धि समाज में अपने-पराये की दीवार बना कर प्राप्त हुई है, ये उपलब्धि राष्ट्रीय एकता की आहुति दे कर बनाई गयी है। रावण को अभिमान की कीमत अपने ही परिवार, अपने समाज और अपने देश का विध्वंस करके देना पड़ा था।
रावण ने राम-भक्त विभीषण से अपने मतभेद को देशद्रोह और राज द्रोह करके पुकारा था
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रावण भी शायद यूँ ही युद्ध भूमि की वास्तविक स्तिथि से मुंह फेरे हुए था, 43 की संख्या पकड़ कर के, जबकि इनकी पुष्टि का कोई संसाधन नही था। विश्वास क्या होता है,-इस सवाल के प्रति आस्तिकता और नास्तिकता का स्वभाव आड़े आ ही जाता है। भक्तगण विश्वास को भावना समझते हैं, Liberals को प्रमाण चाहिए ही होता है, सत्य को जानने की चेष्टा रहती है ताकि उचित निर्णय लिया जा सके, आज़ादी चाहिए होती है सवाल पूछने की और खुद से जाकर जांच कर सकने की। राम और रावण के युद्ध से यही सबक मिला था। रावण सोने की अमीर लंका का राजा हो कर भी बानरों से बनी सेना से परास्त हुआ था, क्योंकि राम में बानरों का "विश्वास" था । वह इसलिये की राम असत्य नही बोलते थे, संवाद और प्रश्न उत्तर के लिए प्रस्तुत रहते थे, सब को संग ले कर चलते थे , team बनाना जानते थे। अहंकार ही इंसान को भीतर से ही परास्त कर देता है। अहंकारी team नही बना सकते, धर्म और मर्यादा का पालम नही कर सकते हैं, असत्य बोलते हैं, तथ्यों को अपने ही लोगों से छिपाते हैं, अपने ही लोगों को गुमराह करते हैं , सर्वसम्मति के निर्णय नही ले सकते हैं।
अहंकारी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को गद्दार , देशद्रोही घोषित करते हैं
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अहंकार से ग्रस्त इंसान, अब देशवासियों को एकजुट हो जाने के आह्वाहन से डर रहा है, कि सवाल उठेंगे की यह कैसे तय होगा की देशवासी कौन-कौन है? - आधार कार्ड से, या CAA प्रमाणपत्र से, NPR प्रमाणपत्र से, PAN कार्ड से, पासपोर्ट से, - कैसे? अहंकारी के पास और कोई चारा नही है, सिवाए की लोगों को गद्दार होने का अपमान करके उन्हें उकसाये ताकी वह संग आ सकें। अहंकारी की सभी विधियां तिरस्कार और अपमान से ही तो जाती है। जब विजयी थे -तब अपमान किया, और अब जब पराजय का संकट है - तब भी अपमान कर रहे हैं। समझ में आ जाना चाहिए क्यों हर एक आक्रमणकारी ने देश को रौंदा था।
भक्तों को सत्य के स्थापना का सामाजिक , राष्ट्रीय महत्व नही मालूम है
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सत्य प्रमाण से ही साबित होता है, यह अलग बात है सत्य के अन्वेषण की प्रक्रिया dialecticals के सिद्धान्त के अनुसार thesis और anti thesis के अनगिनत चक्र पर चलती है। आपसी विश्वास प्राप्त करने में सत्य की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, इसलिये समझदार इंसान सत्य से छेड़छाड़ नही करते है। बल्कि सत्य की स्थापना में सहयोग देते हैं। भक्ति में सत्य का कोई महत्व नही होता है। भक्ति तो केवल मन के भावना में से निकल आती है। इसमे प्रक्ष उत्तर नही किये जाते हैं। वैज्ञानिक चिंतन नही होता है, विश्लेषण नही होता है - और फिर स्वाभाविक तौर पर - शोध और अविष्कार भी नही होता है। भक्ति केवल मन की शांति देती है, बाकी दुनियादारी में समाज और देश को रौंदे जाने की भूमि सिंचाई करती है। भक्त न तो सत्य का महत्व जानते है, न ही समझदारी रखते है की सत्य के साथ क्यों छेड़छाड़ नही करनी चाहिए। वह संस्थाओं को विध्वंस कर देते है, और दूसरो पर आरोप लगा देते है बर्बादी का।
क्या योग और ध्यान से मनोरोग समस्यायों की सामाजिक चेतना नष्ट होती है?
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ध्यान और योग को आजकल stress से जोड़ कर के भी प्रसारित किया जाता है, कि इन्हें करने से stress से मुक्ति मिलती है। आधुनिक जीवन में stress बहोत अधिक मात्रा में होने के तथ्य को बारबार उछाला जाता है, क्योंकि जब ये बात जनमानस में पकड़ में आयेगी, तब ही तो लोग ईलाज़ के लिए ध्यान और योग की ओर खींचेंगे। मगर इन सब सोच में भी सांस्कृतिक मोह की छाप है। आवश्यक नही है कि सभी सभ्यताएं , धर्म और संस्कृतियां stress यानी तनाव के प्रति यही समझ रखते हों! कल ही योग और ध्यान विषय से संबंधित internet पर कुछ खोजते समय Dialectical Behavioural Therapy (DBT) पर कुछ दिखाई पड़ने लगा। कुछ वक्त लगा सोचने में की योग/ध्यान का DBT से क्या संबंध है। अगली ही search में DBT से बात सीधे Boderline Personality Disorder (BPD) की ओर चली गयी। BPD से पीड़ित व्यक्ति छोटे छोटे तनावों के दौरान mood की लहरों पर सवारी करता है, और चंद minute के भीतर अपने mood बदलते रहता है ! BPD के संभावित ईलाज़ में DBT आता है। तो शायद कुछ अन्य संस्कृतियों में stress का निराकरण आवश्यक नहीं की योग और ध्यान में ही ढूंढा जाता है। व्यक्ति अक्सर करके अ...
वर्चस्व-वादी की शरारत से हुआ था, और हो रहा है भारतीय संस्कृति का पतन
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मार्च के महीने को समरण करें , जब कोरोना मर्ज़ के आरम्भ के दिनों में social distance नया नया चलन में आया था। अगर उन अग्रिम दिनों के मोदी जी के सरकार के सरकारी आदेशों और circular के आज अध्ययन करेंगे तो आप देखेंगे की कैसे corona रोग के आगमन से अंध श्रद्धा से पीड़ित आत्ममुग्ध सामाजिक "वर्चस्व-वादी" वर्ग ने मौका ढूंढ लिया था social distance निवारण में से मध्य युग की छुआछूत की प्रथा को उचित क्रिया प्रमाणित कर देने का । आप याद करें की कैसे corona संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये जब अंग्रेज़ी संस्कृति वाले handshake को त्याग करने के बात आयी थी तब आत्ममुग्ध हिंदुत्व वादियों ने तुरंत भारतीय संस्कृति के "नमस्ते" को सर्वश्रेष्ठ क्रिया बता करके हिन्दू धर्म को दीर्घदर्शी, उच्च और पवित्र आचरण वाला दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विज्ञान संगत धर्म होने का दावा ठोक दिया था। योग और ध्यान ख़राब नही है। मगर सच यह है की भारत में यह सब एक आत्ममुग्धता से ग्रस्त वर्ग के कब्ज़े में है, जो की आत्ममुग्धता के चलते बारबार समाज को अपने कब्ज़े में लेने को क्रियाशील हो जाता है, वर्चस्व-वाद के आचरण दिखा बैठता है...
बाबा लोग कैसे ध्यान और योग के माध्यम से भारतीय समाज के विकास मार्ग को नष्ट करते हैं
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"Immunity बढ़ाओ" के ऊपर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देने के पीछे व्यावसायिक षड्यंत्र दिखाई पड़ता है भारत के साधु-बाबा industry का। Immunity कोई नीचे लगा लाल बटन नही है, जिसको दबा दिया तो तुरंत- खट से- आप superman बन जाएंगे। ज़ाहिर है, वाणिज्य साज़िश है कि immunity बढ़ाने के नाम पर सामना बेचा जाये - काढ़ा, हल्दी, वग़ैरह वग़ैरह। यह बाबा लोग ही भारत की संस्कृति का सदियों से सत्यानाश करते आएं हैं, और आज corona काल में आप और हम अपनी आँखों से इन्हें रंगे हाथों देश को बर्बाद करते पकड़ सकते हैं - यदि हम जागृत हो तो। Corona से जंग में महत्वपूर्ण अंश - "immunity बढ़ाओ" - से कही ज़्यादा ज़रूरी है - virus की पकड़ से बचना। यानी face mask का प्रयोग, sanitizer का प्रयोग, उचित विधि से face mask को हस्त-नियंत्रित करना, खांसी - छींक को रोकना, जूते के तलवे तक को corona virus का संक्रमण मित्र समझ कर अपने जूतों को उतारने, पहनने, साफ़ करने का संचालन करना। आम आदमी को अपनी तमाम छोटी छोटी आदतों में सुधार करके virus के संक्रमण को प्रसारित होने से रोकने का सामाजिक योगदान देना। इसके अलावा, आवश्यक है कि शोध प्रेरक च...
क्या योग और ध्यान भारत में वैज्ञानिक चितंन को नष्ट करने में भूमिका रखते हैं?
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https://youtu.be/V83rpsn8ob8 यहां इस वीडियो में सदगुरु थोड़ा दुःसाहसी हो गये हैं, और रुद्राक्ष तथा कागज़ की सहायता से परम मूर्खता का प्रयोग कर बैठे हैं। वैज्ञानिक साहित्य में इस प्रकार की "negative energy' का वर्णन आज तक नही हुआ है। Gold leaf Electroscope की सहायता से Cosmic Rays को ढूंढा गया था, मगर रुद्राक्ष की सहायता से Negative Energy को ढूंढे जाने की कोई reporting आज तक नही हुई है। आधुनिक भारत की त्रासदी यही है। कि भारतीय संस्कृति के नाम पर भारत के "सद्गुरु" वापस दुनिया में अंधकार को प्रसारित करने लगे हैं। आज दुनिया में वापस Pesudo Science पैर पसारने लगी है, और वास्तविक Science को ठोकर मार कर सामाजिक चितंन से बाहर निकाल दिया गया है ! लोग सत्य की बात तो करते सुनाई पड़ते हैं, मगर सत्य को सिर्फ संभावना के दायरे में ही रख छोड़ते हैं, उसे प्रमाण और measureability के दायरे में लाने के प्रयत्न तनिक भी नही किया जाता है। ज़्यादा दुखकारी दर्शन तो यह है कि सब के सब तथाकथित साधु और महात्मा समाज में शोध-प्रेरक सवालों को पूछने वाली अग्नि को ही बुझा दे रहे हैं मानव मस्तिष्क के भीतर...
क्या योगदान था भारतीयों का गणित विषय शून्य के प्रति?
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साधारण तौर पर यह तो हर भारतीय बढ़ चढ़ कर जानता है और बखान करता फिरता है कि "मालूम है..." , शून्य का अविष्कार हम भारतीयों ने किया है, मगर हम वाकई में एक बहोत ही आत्ममुग्ध संस्कृति हैं ! इसलिये हम यह जानकारी - जो की संभवतः अस्पष्ट और त्रुटिपूर्ण है - सिर्फ इसलिये सहेज कर दिमाग़ में रखते हैं की हमारी आत्ममुग्धता को गर्व करने का नशा मिल सके। गर्व या गौरव करना ,जो की आत्ममुग्ध दिमाग़ का नशे दार भोजन स्रोत होता है - वह क्योंकि सिर्फ इतने भर से मिल जाता है, इसलिये हम गहरई में शोध नही करते हैं सत्य को तलाशने की। बस उतना ही ज्ञान जमा करते है जहां से नाशेदार भोजन मिल जाये। भारतीय चिंतकों ने आज़ादी के दौर के आसपास यह बात टोह ली थी हमारे भारतीय लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है, इसलिये हम विजयी संस्कृति नही बन सकते हैं। तो फ़िर मर्ज़ के ईलाज़ में उन्होंने भारत की संस्कृति का गर्व (गौरवशाली) ज्ञान बांटना शुरू किया जिससे भारतीय में आत्मविश्वास जगे। मगर नतीज़े थोड़ा उल्टे मिल गये । आत्मविश्वास से ज्यादा तो आत्ममुग्धता आ गयी लोगों में ! अब लोग सत्य को गहराई में टटोलना आवश्यक नही समझते हैं। दूसरी ...
क्या ध्यान और योग ही भारतीय संस्कृति के विकास और वैज्ञानिक दर्शन के प्रगतिपथ का अवरोध है?
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पिछले 4 -5 दिनों से योग और ध्यान (meditation) के कार्यों में लिप्त हूँ और भारत के तमाम साधुओं के विचारों को सुन रहा हूँ। संदीप माहेश्वरी, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, श्री श्री, रामदेव - और youtube पर उपलब्ध कुछ अन्य चैनल भी - जैसे GVG Motivation । कुछ बातें मेरे मन में भी प्रकट हुईं और सोचा की कही न कहीं उनका भी लेखा दर्ज़ हो जाना चाहिए। संदीप माहेश्वरी जी ध्यान की विधि में मन-मस्तिष्क को चिंतन शून्य होने के मार्ग को तलाशते हैं। जब की सदगुरु और श्रीश्री मन को शिथिल छोड़ देने की विधि को ध्यान का मार्ग बताते हैं। यानी जो भी विचार मन में आ रहे हैं, उन्हें आने दो, और उन्हें सुनो, सोचे, समझो। संदीप चाहते हैं की विचारो से मुक्ति लेने के प्रयास करो और इसके लिए आँखे बंद करो, कानो में 3M का ear plug लगाओ- जो बाज़ार में 15/- का मिलता है- और शांत हो कर अपनी सांसों की आवाज़ सुनो, अपने ही दिल की धड़कन को सुनो। तो दो अलग-अलग मार्ग हैं ध्यान के। ठीक विपरीत , एक दूसरे के। ध्यान का उद्देश्य है सुख प्राप्त करना। साथ में, ध्यान करने से मस्तिष्क को बौद्धिक शक्तियों का विकास होता है, आत्म-परिचय होता है, औ...