बाबा लोग कैसे ध्यान और योग के माध्यम से भारतीय समाज के विकास मार्ग को नष्ट करते हैं

"Immunity बढ़ाओ" के ऊपर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देने के पीछे व्यावसायिक षड्यंत्र दिखाई पड़ता है भारत के साधु-बाबा industry का।
Immunity कोई नीचे लगा लाल बटन नही है, जिसको दबा दिया तो तुरंत- खट से- आप superman बन जाएंगे। ज़ाहिर है, वाणिज्य साज़िश है कि immunity बढ़ाने के नाम पर सामना बेचा जाये - काढ़ा, हल्दी, वग़ैरह वग़ैरह।

यह बाबा लोग ही भारत की संस्कृति का सदियों से सत्यानाश करते आएं हैं, और आज corona काल में आप और हम अपनी आँखों से इन्हें रंगे हाथों देश को बर्बाद करते पकड़ सकते हैं - यदि हम जागृत हो तो।

Corona से जंग में महत्वपूर्ण अंश - "immunity बढ़ाओ" - से कही ज़्यादा ज़रूरी है - virus की पकड़ से बचना। यानी face mask का प्रयोग, sanitizer का प्रयोग, उचित विधि से face mask को हस्त-नियंत्रित करना, खांसी - छींक को रोकना, जूते के तलवे तक को corona virus का संक्रमण मित्र समझ कर अपने जूतों को उतारने, पहनने, साफ़ करने का संचालन करना। आम आदमी को अपनी तमाम छोटी छोटी आदतों में सुधार करके virus के संक्रमण को प्रसारित होने से रोकने का सामाजिक योगदान देना।

इसके अलावा, आवश्यक है कि शोध प्रेरक चेतना समाज में प्रज्वलित करना- ताकि अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त हो corona virus के प्रति, आम आदमियों में। आखिर कार आयुर्वेद इसीलिये पिछड़ गया modern medicine के आगे, क्योंकि यहां पर ज़ोर corona virus को खोजने पर नही दिया जाता है, बल्कि कोई भी बीमारी आये, दम लगा कर ईलाज़ यही होता है की - "योग का आलोम-विलोम राम बाण है", "गिलोय खाने में दवा का राम बाण है" वग़ैरह ! फिर सच को आंच नही । एक न एक दिन आयुर्वेद के "रामबाण" की पोल दुनिया के आगे खुल ही जाती है, जब corona virus को microscope के नीचे इंसानी आंखें खुद से देखने लगती है ! दुनिया में लोग contemplative हो कर virus को समझने-बूझने में आपने दिमाग़ चलाते हैं, जबकि भारत के लोग अपने साधु-बाबाओं के चक्कर में पड़ कर दिमाग़ को "शांत" और "चिंतन शून्य" करने में अपना दिमाग़ लगाते हैं !!

साधु-बाबा industry सिर्फ और सिर्फ "immunity बढ़ाओ" बिंदु पर ही ज़ोर दिये बैठी है - क्योंकि उनको लाभ देने वाला भोगवाद का मार्ग वही से खुलता है - और जहां से वाणिज्य प्रवेश करता है !
बाबा लोग तो - उल्टा - योग और ध्यान पर तक इतना अधिक ज़ोर दिये जा रहे हैं की जन चेतना में से शोध-प्रेरक ज्योति ही बुझती जा रही है !! घंटा वह समाज दुनिया से मुकाबला करेगा जहां "योग" और "ध्यान" को लोग एक उपयुक्त "ईलाज़" साबित करने में अधिक बौद्धिक बल और संसाधन खपाते है, बजाये की प्रवाह (flow) में बहते हुए आसान दर्शन में समस्या को चिन्हित करें तथा समाधान को शोध करें !
बाबा लोगों ने भारतीय संस्कृति में से flow को समाप्त करने में बहोत विनाशकारी भूमिका निभाई है - जो बात शायद यह समझाये कि क्यों हम हज़ार साल रौंदे गये थे - और आज भी दुनिया के आर्थिक पिट्ठू बने हुए हैं - software coolie ! ! हमारा समाज शोध- प्रेरक नही है -हम सब जानते हैं - मगर हम लोग यह नही समझ सक रहे हैं कि "योग" और "ध्यान" की कमान उल्लू-ठुल्लू लोगों के हाथों में है जो की समाज की चेतना में से जागृति की ज्योंति ही बुझा दे रहे हैं , जनमानस को ग़लत मार्ग से इन विद्याओं की ओर आकर्षित करके ! लोग corona virus का ईलाज़ योग और ध्यान में तलाशते है जो की witch hunt से कम व्यर्थ नही है !

"Immunity बढ़ाओ" भी करीब करीब उसी श्रेणी में आता है - witch hunt । immunty के पीछे mind , body, spirit  सब लगता है- जो की संभवतः एक दिन के काढ़ा और हल्दी और बाकी सब नुस्खों से boost नही होने वाला है । शरीर , मन और आत्म की समस्याएं तो आती ही है इंसान के भोगवादी बन जाने से ! और बाबा लोग ईलाज़ भी भोगवाद में ही ढूंढते हैं ! आंवला juice पियो, नीम की tablet खाओ, हमारा बनाया च्यवनप्राश और काढ़ा powder प्रयोग करो, वगैरह ! 

भोगवाद ही जड़ भी, भोगवाद ही ईलाज़ भी ! 

जय हो !

रहे ने हम लोग उल्लू के उल्लू !

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