रावण ने राम-भक्त विभीषण से अपने मतभेद को देशद्रोह और राज द्रोह करके पुकारा था

रावण भी शायद यूँ ही युद्ध भूमि की वास्तविक स्तिथि से मुंह फेरे हुए था, 43 की संख्या पकड़ कर के, जबकि इनकी पुष्टि का कोई संसाधन नही था।

विश्वास क्या होता है,-इस सवाल के प्रति आस्तिकता और नास्तिकता का स्वभाव आड़े आ ही जाता है। भक्तगण विश्वास को भावना समझते हैं,
Liberals को प्रमाण चाहिए ही होता है, सत्य को जानने की चेष्टा रहती है ताकि उचित निर्णय लिया जा सके, आज़ादी चाहिए होती है सवाल पूछने की और खुद से जाकर जांच कर सकने की।

राम और रावण के युद्ध से यही सबक मिला था। रावण सोने की अमीर लंका का राजा हो कर भी बानरों से बनी सेना से परास्त हुआ था, क्योंकि राम में बानरों का "विश्वास" था । वह इसलिये की राम असत्य नही बोलते थे, संवाद और प्रश्न उत्तर के लिए प्रस्तुत रहते थे, सब को संग ले कर चलते थे , team बनाना जानते थे। 

अहंकार ही इंसान को भीतर से ही परास्त कर देता है। अहंकारी team नही बना सकते, धर्म और मर्यादा का पालम नही कर सकते हैं, असत्य बोलते हैं, तथ्यों को अपने ही लोगों से छिपाते हैं, अपने ही लोगों को गुमराह करते हैं , सर्वसम्मति के निर्णय नही ले सकते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

the Dualism world

Semantics and the mental aptitude in the matters of law

It's not "anarchy" as they say, it is a new order of Hierarchy