वर्चस्व-वादी की शरारत से हुआ था, और हो रहा है भारतीय संस्कृति का पतन

मार्च के महीने को समरण करें , जब कोरोना मर्ज़ के आरम्भ के दिनों में social distance नया नया चलन में आया था। अगर उन अग्रिम दिनों के मोदी जी के सरकार के सरकारी आदेशों और circular के आज अध्ययन करेंगे तो आप देखेंगे की कैसे corona रोग के आगमन से अंध श्रद्धा से पीड़ित आत्ममुग्ध सामाजिक "वर्चस्व-वादी" वर्ग ने मौका ढूंढ लिया था social distance निवारण में से मध्य युग की छुआछूत की प्रथा को उचित क्रिया प्रमाणित कर देने का । आप याद करें की कैसे corona संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये जब अंग्रेज़ी संस्कृति वाले handshake को त्याग करने के बात आयी थी तब आत्ममुग्ध हिंदुत्व वादियों ने तुरंत भारतीय संस्कृति के "नमस्ते" को सर्वश्रेष्ठ क्रिया बता करके हिन्दू धर्म को दीर्घदर्शी, उच्च और पवित्र आचरण वाला दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विज्ञान संगत धर्म होने का दावा ठोक दिया था।

योग और ध्यान ख़राब नही है। मगर सच यह है की भारत में यह सब एक आत्ममुग्धता से ग्रस्त वर्ग के कब्ज़े में है, जो की आत्ममुग्धता के चलते बारबार समाज को अपने कब्ज़े में लेने को क्रियाशील हो जाता है, वर्चस्व-वाद के आचरण दिखा बैठता है। यही वो वर्ग था जो की अतीत में भेदभाव और छुआछूत को भारतीय समाज में लाने का दोषी था, और स्वाभाविक तौर पर - आज भी आरक्षण -नीति का विरोधी है, तमाम कानूनों के बावज़ूद आरक्षण को चुपके से समाप्त कर रहा है।।

यही वह वर्ग है - हिंदुत्व वादी वर्ग - जो की राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम के नाम पर , या की "हम सब सिर्फ हिन्दू है, हम कोई जातिवाद नही मानते है" के भ्रम में समाज पर वर्चस्व ढालना चाहता है और इसने देश के प्रजातांत्रिक संस्थाओं को नष्ट कर दिया है।

आप देख सकते हैं की कैसे इन्हें corona संकट के समय ayush वैकल्पिक ईलाज़ पद्धति के माध्यम से जनता में शोध-प्रेरक विचार की ज्योति को ही बुझा दे रही है। ये वो वर्ग है जो समय से अनावश्यक जाते हुए,  समाज को योग तथा ध्यान में corona के ईलाज़ (बल्कि दुनिया के सभी मर्ज़ का ईलाज़) होने का दावा करके समाज के बौद्धिक मानव संसाधन को witch hunt मार्ग पर भेज कर उन्हें व्यर्थ कर दे रहा है !

यही वर्ग दोषी है भारतीय संस्कृति के पतन का।

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