भक्तों को सत्य के स्थापना का सामाजिक , राष्ट्रीय महत्व नही मालूम है

सत्य प्रमाण से ही साबित होता है, यह अलग बात है सत्य के अन्वेषण की प्रक्रिया dialecticals के सिद्धान्त के अनुसार thesis और anti thesis के अनगिनत चक्र पर चलती है।

आपसी विश्वास प्राप्त करने में सत्य की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, इसलिये समझदार इंसान सत्य से छेड़छाड़ नही करते है। बल्कि सत्य की स्थापना में सहयोग देते हैं।

भक्ति में सत्य का कोई महत्व नही होता है।  भक्ति तो केवल मन के भावना में से निकल आती है। इसमे प्रक्ष उत्तर नही किये जाते हैं। वैज्ञानिक चिंतन नही होता है, विश्लेषण नही होता है - और फिर स्वाभाविक तौर पर - शोध और अविष्कार भी नही होता है।

भक्ति केवल मन की शांति देती है, बाकी दुनियादारी में समाज और देश को रौंदे जाने की भूमि सिंचाई करती है।

भक्त न तो सत्य का महत्व जानते है, न ही समझदारी रखते है की सत्य के साथ क्यों छेड़छाड़ नही करनी चाहिए। वह संस्थाओं को विध्वंस कर देते है, और दूसरो पर आरोप लगा देते है बर्बादी का।

Comments

Popular posts from this blog

the Dualism world

Semantics and the mental aptitude in the matters of law

It's not "anarchy" as they say, it is a new order of Hierarchy