क्या योग और ध्यान भारत में वैज्ञानिक चितंन को नष्ट करने में भूमिका रखते हैं?


https://youtu.be/V83rpsn8ob8

यहां इस वीडियो में सदगुरु थोड़ा दुःसाहसी हो गये हैं, और रुद्राक्ष तथा कागज़ की सहायता से परम मूर्खता का प्रयोग कर बैठे हैं। वैज्ञानिक साहित्य में इस प्रकार की "negative energy' का वर्णन आज तक नही हुआ है। Gold leaf Electroscope की सहायता से Cosmic Rays को ढूंढा गया था, मगर रुद्राक्ष की सहायता से Negative Energy को ढूंढे जाने की कोई reporting आज तक नही हुई है।

आधुनिक भारत की त्रासदी यही है। कि भारतीय संस्कृति के नाम पर भारत के "सद्गुरु" वापस दुनिया में अंधकार को प्रसारित करने लगे हैं। आज दुनिया में वापस Pesudo Science पैर पसारने लगी है, और वास्तविक Science को ठोकर मार कर सामाजिक चितंन से बाहर निकाल दिया गया है ! लोग सत्य की बात तो करते सुनाई पड़ते हैं, मगर सत्य को सिर्फ संभावना के दायरे में ही रख छोड़ते हैं, उसे प्रमाण और measureability के दायरे में लाने के प्रयत्न तनिक भी नही किया जाता है। ज़्यादा दुखकारी दर्शन तो यह है कि सब के सब तथाकथित साधु और महात्मा समाज में शोध-प्रेरक सवालों को पूछने वाली अग्नि को ही बुझा दे रहे हैं मानव मस्तिष्क के भीतर में से ! यह सब साधु-महात्मा क्योंकि ध्यान, योग और आयुर्वेद पर अधिक बल देते हैं, इसका अनजाना दुष्परिणाम यह है - (जो कहीं कोई भी व्यक्ति देख-सुन नही रहा है) - कि , लोग सत्य को प्रमाणित करने के प्रति झुकाव को खोने लगे हैं। वह मात्र संभावना और approximation के आधार पर किसी भी "सांस्कृतिक" , "धार्मिक" दावे को सत्य होने को पारित कर देते हैं क्योंकि ऐसा करने से ही उनके मन को शांति और सुख प्राप्त होता है - ध्यान और योग के "दिव्य ज्ञान" के व्याख्यान के अनुसार, सुख और शांति ऐसा करने से ही मिलती है।
तो यह सब साधुजन का योगदान यह है कि श्रद्धा और अंधश्रद्धा को समाज के चलन में वापस प्रवेश देने लगे हैं , जबकि पिछले कई सालों से प्रयास यही हुआ करते थे कि लोग सत्य के तलाश में प्रमाण और परिमेयकरण के प्रति झुकाव बढ़ाएंगे। समाज में प्रकाश और जागृति तब ही आती है जब सत्य को सर्व स्वीकृति मिलती है समाज के सभी सदस्यों से। और सर्वसम्मति का मार्ग प्रमाण और परिमेयकरण (measurability) से आता है।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs