महिलाओं को मृत्यु दंड --यह सभ्यता के अंत के लक्षण है

देश में घटित होने वाले अपराधों की विभीत्सता इस बात के स्पष्ट लक्षण हैं की भारत में सिन्धु घाटी के गर्भ से जन्मी प्राचीन सभ्यता का या तो नाश हो गया या वह समय के साथ ताल नहीं रख सकी और वर्त्तमान में वापस पाषाण युगी वहशी व्यवहार में लौट रही हैं।
सभ्यता अंतरात्मा के जागरण से बनती है। जब बहोत सारे इंसानों में ब्रह्मज्ञान अंतरात्मा में से जागृत हुआ था तब उन्होंने सभ्यता बनायी और फिर ग्राम, पुर नगर का निर्माण किया। जिनमे ब्रह्म नहीं जागृत हुआ वह जंगली ही रह गए थे।
  वर्तमान में हमने पश्चिम की नक़ल वाले महानगर और मेट्रोपोलिटन बनाने की दौड़ तो लगा दी है मगर अंतरात्मा और ब्रह्म ज्ञान को न सिर्फ त्याग दिया है, इसके विरोध करने वाला आचरण विक्सित कर लिए है। 'धर्म' को 'हिंदुत्व' ने विस्थापित कर दिया है। ऐसे अमानवीय, मनोविकृत अपराध इन बड़े महानगरों में साधारण घटना हो गए हैं।
  अंतरात्मा के दमन का कारन है हमारी वर्तमान की राजनैतिक व्यवस्था। हमने अतरात्मा की ध्वनि सुनने वालों की विजय के लिए रिक्त स्थान नहीं छोड़ा है। अधर्म अब धर्म पर हावी है। भ्रष्टाचार और पाखण्ड का बोलबाला है। इन दो महिलाओं को मृत्यु दंड दे कर भी यह पिशाचिक समाज सुधरने वाला नहीं है। हमे मंथन करना पड़ेगा की यह हालात कैसे आये कि महिलाओं को भी मृत्यु दंड देने की आवश्यकता आन पड़ी। हमें अंतरात्मा की ध्वनि को अपने महानगरों, न्यायालयों और राजनैतिक व्यवस्था में संरक्षण देना होगा।

Comments

Popular posts from this blog

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार