The theory of Superboss as a necessity for long-term sustenance of Political group in India.

The theory of "Superboss" as a necessity for long-term sustenance of Political group in India.

प्रत्येक व्यक्ति समूह को नेत्रित्व की आवश्यक्त अवश्यम्भव होती है। नेत्रित्व वह दिशा(=तुरत उद्देश्य) का ज्ञान देता है जिसके लिए सभी सदस्य मिल कर युक्ति लगाते है।
प्रशन है की राज्य संचालन की भिन्न भिन्न वातावरण में यह नेत्रित्व किस क्रिया से चुना जाता है अथवा "उभरता है" ?
साधारणतः हम सभी आशा यही रखते है कि नेतृत्व योग्यता के आधार पर उभरता है। मगर एक गहरे दृष्टिकोण में एक वचन यह है कि 'योग्यता' के मापन की कसौटियां सांस्कृतिक वातावरण पर निर्भर करती है।अर्थात, एक परिपेक्ष में चापलूसी, चमचा गिरी भी 'योग्यता' मानी जा सकती है।

चलिय, पहले यह समझने का प्रयास करते हैं कि "योग्यता" में किन गुणों को आदर्श वातावरण में होना चाहिए:-
उधाहरण के लिए- एक आदर्श (जो की वस्तुतः काल्पनिक देश Utopia को मान लीजिये) प्रजातंत्र में जहाँ **प्राकृतिक न्याय व्यवस्था** एक सांकृतिक व्यवहार है, वहां योग्यता के पैमाने शिक्षा उपाधि, धरातल की उपलब्धियां, तर्क और विचारों का बाध्यक अथवा समग्र, कुशल एवं विजय शील होना है।

  परन्तु जहाँ **प्राकृतिक न्याय व्यवस्था** न हो कर **पदक्रमांक न्याय व्यवस्था** सांकृतिक व्यवहार हो वहां पर योग्यता के पैमाने क्या होंगे?
  क्या वहां भी योग्यता को शैक्षिक ज्ञान(जो की असल में बौद्धिक उपलब्धि के सूचकांक के रूप में प्रयोग होता है), धरातल के अनुभव और उपलब्धि, तथा बाध्यक विचार एवं तर्क की कसौटी पर मापेंगे?
  जी नहीं। वहां कसौटी होगी की सभी व्यक्ति पद के क्रम के अनुसार अवर पदाधिकारी प्रवर पदाधिकारी का "सम्मान करे" अथवा "अनुशासन में रहे"(= प्रवर को अपने से अधिक बुद्धिमान माने और प्रमाणित होने में सहायता दे, प्रवर की उपलब्धियों का गुणगान करे, और अपने से अधिक तर्क-सिद्ध होने वाला आचरण रखे)।
ऐसे में कहीं न कहीं एक "सर्वज प्रवर पदाधिकारी"("super boss") का अस्तित्व अवश्यमभव् हो जाता है। अंततः योग्यता जब अवर अथवा प्रवर के मध्य टकराव उत्पन्न करेगी तब यह superboss ही योग्यता का साधन होगा, इसको सुनिश्चित करते हुए की योग्यता उसकी स्वयं के पद-स्थान को विस्थापित न करे।

Theorem 2 : Existence of a "superboss" is a must in a group which culturally practises 'Hierarchical Justice'.

   यहाँ यह भी समझने की आवश्यकता है की superboss का किसी एक व्यक्ति का होना अनिवार्य नहीं है। कोई ख़ास परिवार , दल , अथवा धार्मिक नेता भी यह भूमिका निभा सकता है।
   एक अन्य बात भी अवश्य समझ लेनी चाहिए--कि superboss की भूमिका के समतुल्य पद Utopia में भी मिलगा-- अंतःकरण का रक्षक ("keeper of the conscience") के रूप में।
  Utopia में जब दो समानांतर तर्क टकराव में आयेंगे और व्यक्तिगत हित किसी सामाजिक हित के विरुद्ध टक्कर में होगा, तब यह चुनाव इसी पद को करना होगा की कब व्यक्तिगत हित को आगे जाने देना है और कब सामाजिक हित को।

भारत, जहाँ सांस्कृतिक तौर पर पद्क्रमांक न्याय व्यवस्था ही सर्वमान्य है, में वर्तमान राजनीति में कोंग्रेस में superboss गाँधी परिवार है, जबकि भाजपा में आजकल प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी हैं।

    अगर कोई दल व्यक्ति-विशेष superboss को नामांकित करता है तब उस superboss को अकेले ही सभी का भार उठाना पड़ सकता है। भारत में जहाँ की विरोधाभासी महत्वकांक्षाएं हैं , उम्मीदें है,- यदि एक व्यक्ति superboss बनता है तब उसका खुद का स्थान अधिक समय तक स्थिर नहीं रह सकता।
  इस समस्या का निवारण मिलता है एक team के रूप में superboss अपनाने में। इसमें कई छोटे superboss विरोधाभासी उम्मीदों अथवा महत्वकांक्षाओं को पूरित करते रहेंगे मगर अंततः मुख्य superboss में जा मिलेंगे। इस प्रकार superboss खुद कुछ स्थिर हो जायेगा। यदि superboss परिवारवादी होगा तब उत्तराधिकारी के लिए कोई जंग भी नहीं रह जाएगी। ऐसा करने से और अधिक स्थिरता आयेगी।
  
मगर एक प्रश्न यह भी है कि किसी पद्क्रमांक न्याय व्यवस्था में स्थिरता से क्या अभिप्राय है?
  स्थिरता से अभिप्राय है कि यह देश Utopia के विपरीत Dystopia (काल्पनिक अंधेर नगरी) की और अग्रसर होगा। यहाँ योग्यता यानि "वह जो सत्य है" किसी व्यक्तिविशेष superboss के प्रति आस्था(अंधभक्ति) के आधीन होगी।
  तो Superboss अंततः सामाजिक व्यवस्था और आचरण का विनाश लाएगी, राजनैतिक दल चाहे जो भी चुन लो।

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