मानव संसाधन, नेतृत्व विकास के छिछले पाठ्यक्रम
ऐसा क्यों होता है की मानव संसाधन के पाठयक्रमों में जब संसाधन को विक्सित करने की शिक्षा की बात आती है तब हमारे देसी शिक्षकों को आत्म-नियंत्रण ही एकमात्र विधि समझ में आती है? क्या कोई दूसरा व्यक्ति कभी भी किसी आशाहीन, परास्त, अकुशल व्यक्ति के गुणों को परिवर्तित नहीं कर सकता है?
यदि नहीं, तब फिर प्रश्न है की उत्कृष्ट नेतृत्व किस व्यवहार को कहा जाता है? वह कौन से पाठ्यक्रम है जिसमे शिक्षार्थियों को टीम बनाने के गुण सिखाये जाते है, आवाहन अथवा भाषण नहीं दिया जाता है? क्योंकि मेरे देखने भर में अधिकाँश पाठय क्रम तो महज़ भाषण देते हैं , विद्या नहीं।
नेत्रित्व के पाठ्यक्रमों की बात आती है तो अधिकाँशतः महज़ इतना 'सिखा'(=भाषण देकर) कर छोड़ दिया जाता है की तीन किस्म के नेतृत्व है -जिसमे की डेमोक्रेटिक नेत्रित्व सबसे बेहतर माना जाता है । कोई भी पाठ्यक्रम डेमोक्रेटिक लीडरशिप के बारीक गुणों में नहीं जाता है। सभी शिक्षक निर्णय लेने की काबलियत (decision making) पर जोर देते हैं, मगर निर्णय की काबलियत से ऊपर उठ कर विवेकशीलता(rationalization) के गुणों पर कोई भी बात नहीं करता। और फिर विवेकशीलता से भी ऊपर न्यायपूर्ण होना(Justice) -मेरे देखने भर में यह विचार तो शिक्षकों की खुद की समझ के परे होता है।
"आत्म-विश्वास" और "attitude" पर इनकी परख करने की बजाये , मात्र इनकों स्वयं में विक्सित करने पर ही बल दिया जाता है। मेरा मानना है की बिना सत्य-परख के प्रदर्शित किया गया "आत्म-विश्वास" और "जीतने का attitude" वास्तव में "मूर्खों की हठ धर्मी"(egoism of the idiots) ही होती है। दुःख इस बात का है की हमारे देश में हर सत्य विचार का नकली , भ्रमकारी 'स्यूडो'(pseudo) तैयार हो जाता है , और हमारे शिक्षक अनजाने में छात्रो को इसी स्यूडो की शिक्षा देते हैं जिससे की हमारे नागरिकों में नेत्रित्व का आभाव गहरा ही हो रहा है, सुधरने की अपेक्षा। पीड़ी दर पीड़ी हालत बदत्तर हो रहे है , सुधर नहीं रहे है।
बिना न्याय और धर्म की उचित समझ के (Theories related to Justice) हमारे नागरिकों में आपसी लामबंदी और कूटनीति (lobbying, realpolitik) का व्यवहार और गहरा होता जा रहा है। हम आपसी विवादों और समस्याओँ को सुलझाने की विधा भूल चुके हैं। हम प्रमाण(evidencing, verification) और न्याय(justice) करने के ज्ञान को खो चुके हैं। इसलिए हम अधिक खेमों(camps) में विभाजित होते जा रहे हैं। हमारे मानव संसाधन के शिक्षक हमें छिछला ज्ञान बांट रहे हैं। हम अनजाने में अड़ियल और पाखंडी बनना सीख रहे हैं। यही हमारी वर्तमान सन्स्कृति है।
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