बदनीयत वकील-राजनेता का खुल्ली बहस की चुनौती देने का माँझरा क्या है?

माननिय मनीष तिवारी का पुर्व-CAG विनोद राय को खुली बहस की चुनौती कुछ समझ में नहीं आई।
या यह समझूं की इन नेताओं की जनता को उल्लू बनाने की नई चालबाजी ही यह है की गलत पर गलत करते रहो, और जब अपनी करतूतों के खुलासे हो तब *खुली* बहस की चुनौती दे कर जनता को गुमराह कर दो कि जनता समझ ही न पाए की कौन सही है और कौन गलत ।
  यह मनीष तिवारी को बहस *खुल्ले* में करवाने  का इतना ही साहस और विश्वास है तब फिर PAC मीटिंग का टीवी पर सीधा प्रसारण ही क्यों नहीं करवा दिया था ?? तब शायद बचाव में तर्क यह पिरोये जाते की अभी अगर जनता में खुल्ले में बात जायेगी तब जनता भ्रमित हो सकती है !
  यह पूरा का पूरा राजनैतिक तबका उल्लू बनाने का यह तरीका खूब इख्तियार करता है। यह तथ्यों से सम्बंधित गतिविधियों को जनता के सामने खुल्ले में दिखलाने से बचता है। तथ्य यदि जनता के सामने आयेंगे तब जनता अपने विवेक से खुद ही समझ जाएगी की क्या सही है और क्या गलत। इसलिए यह बदनीयत राजनेता तथ्यों को जनता के सामने इकत्र करने से बचते हैं।
और जब तथ्यों के खुलासे "आरोप" बन कर जनता में आते है तब इनके पेशेवर पालतू वकील "खुल्ली बहस" की चुनौती दे कर अपने को सच्चा साबित करने की ड्यूटी पर लग जाते हैं।
   समझदार , ईमानदार लोग तथ्य सहमती और प्रमाण क्रिया को ही खुल्ले में करते है, यह नहीं की तथ्य जब आरोप बन कर सामने आये तब पीड़ित को खुल्ली बहस की ललकार दे कर खुद को सच्चा जतायें।

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