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Showing posts from 2013

Over-simplicisation is dangerous too. There has to be gap between the "khaas" and the "aam"

We might require a comprehensive theory on what should be "aam" (simpli-cised, general) and what should be "khaas" (special). After all, this too is a Dystopian behaviour where sweets will value the same price as the vegetables . As the famous Hindi language proverb says "Andher nagari chaupat raja, jis bhav bhaaji, us bhaav khaaja." Excessive equality is as much inferior on the intellectual test, as is the vast inequality.      Inequality is the secret driving engine of nature. Something like the Gravity gradient, which causes the potential energy be created and stored away. Or the voltage difference which causes the electricity to flow. But do remember that a large difference, a representation of the inequality, results into an Avalanche breakdown, or a short-circuit in the electricity.   A politician when he becomes a statesman, should or should not be treated as "khass", we shall seek to examine. In Hindu beliefs, the understanding about th...

सामंत वादी व्यवहार और साधारण समझ (IQ)

सामंतवादी मानसिकता भी मनुष्य की बौद्धिक योग्यता, उसका IQ घटा देने की क्रिया करती है | सामंतवादी मानसिकता एक प्रकार का सामाजिक व्यवहार है जब कोई व्यक्ति खुद को दूसरे से अधिक महत्वपूर्ण , शासन-सत्त, रासुक वाला और योग्य समझता है | मनोविज्ञान की समझ से देखें तो सामंतवादी मसिकता मनुष्य के सामाजिक न्याय की नैसर्गिक समझ को प्रभावित करती है जिससे की उसके तर्कों में तोड़-मरोड़ आ जाते है | तर्कों में आये , उत्पन्न , मरोड़ का सीधा असर विवेक , विवेचन बुद्धि पर पड़ता है और फिर बौद्धिक क्षमता ही कम हो जाती है | यह प्रकिय एक साथ पूरे-पूरे समाज या एक पूरे राष्ट्र के साथ घट सकती है -- जिससे की पूरे नागरिक बल ही अल्प-बुद्धि वाला बन सकता है |   भारत का इतिहास तो भरा हुआ है इस सामंतवादी मानसकित से | आप चाहे तो छुआ-छूत वाली जात प्रथा को देखें, या आधुनिक "लाल बत्ती " कल्चर को - या सरकारी अधिकारीयों के 'लाट साहबी ' व्यवहार को -- यह सब सामंतवादी मानसिकता के ही अलग-अलग स्वरुप हैं | सामंतवादी मानसिकता में धर्म -और-न्याय की जगह ताकत और हिम्मत को प्रयोग किया जाता है | सामंतवादी दिम्माग में यह एहसास...

Not everybody is comfortable knowing the truth

Not everybody is comfortable living life while knowing the Truth. It is because Truth has different derivations, different meanings in different context. It's here I figure out that the Truth is a small, narrow and a focused description of a larger form of behaviour , called the Fair-minded-ness. Fair-minded-ness correlates with the IQ, the analytical ability of Human mind. The higher the analytical mind, the higher is the Fair-minded-ness. There is a misconception amongst people who see 'street smart' chirps as the mark of intelligence. In truth, it is not. As one unravels the links between Intelligence, Intellectualism and Wisdom , the analytical ability emerges as the thread which connects one with another. it is this ability which is generated from the quality of empathy, explains how the Fair-minded-ness is a significant trait of higher skilled analytical brains. The higher IQ are capable of perceiving the different aspects of a problem by their Imagination skills itse...

अब और कितने पतन की और जायेंगे हम /

खुर्शीद सही कहते हैं : "इस हमाम में तो सब नंगे हैं "|   क्या नेता , क्या अभिनेता , क्या क्रिकेट खिलाडी , क्या दर्शक , क्या साधू बाबा , और क्या तांत्रिक योगी बाबा , क्या जज और क्या मुजरिम , क्या पत्रकार , और क्या भावी प्रधानमंत्री, और क्या आम आदमी  -- यह भारत नमक देश एक ऐसी सभ्यता बन गयी है जो एक 'नंगा हमाम' की तरह ही है | मानो की जैसे भारतीय सभ्यता ख़त्म ही हो चुकी हो |    यह वो देश नहीं रह गया है जहाँ सभ्यता का विकास यहाँ की कला, विज्ञानं ,सत्य . धर्म और न्याय की खोज को एक शिखर की और अग्रसर करे , जहाँ सभ्यता विक्सित हो और प्रफ्फुलित हो| यह पतन और खात्मे की कगार पर खडी एक सभ्यता है जो की फिर किसी विदेशी ताकत के आधीन होने के लिए तत्पर है |यहाँ लोग सिर्फ हमाम में ही नंगे नहीं होते, अब तो महफिलों और शासन के गलियारों में भी नंगे लोग पहुच चुके हैं| यहाँ जन-विश्वास पारदर्शिता के द्वारा नहीं , गोपनीयता में दूंढा जाता है | यहाँ शक्ति ने धर्म को अपने आधीन कर लिया है | यह धर्म का अर्थ सत्य और न्याय से नहीं , शक्ति के उपयोग से तय किया जाता है | लोकप्रियता का अर्थ फिल्मी सितारा...

भाग 2 : पश्चिम का 'सेकुलरिज्म' और भारत का 'सेकुलरिज्म'

       पश्चिमी देशों में प्रयुक्त 'सेकुलरिज्म' , इधर भारत में अभ्युक्त सेकुलरिज्म से और भी कई मायनों में अलग है | वहां के मुख्य ईश पंथ, Protestantism में ही सेकुलरिज्म के वो बीज हैं जो समूची सभ्यता को स्वतंत्र-अभिव्यक्ति  को प्रयुक्त करने का रास्ता खोलते हैं| ऐसे में सेकुलरिज्म प्रजातंत्र से गठ-जोड़ कर कर लेता है , क्योंकि स्वतंत्र-अभिव्यक्ति प्रजातंत्र का मूल स्तम्भ है | और फिर सेकुलरिज्म खुद भी प्रजातंत्र का एक भौतिक गुण बन जाता है | Protestantism में मनुष्य और उसके इश्वर के बीच में नए सम्बन्ध, स्वतंत्र और व्यक्तिगत संपर्क माध्यम के चलते वहां का प्रत्येक व्यक्ति अपने आस-पास, बगल में किसी भी दूसरे विचार के व्यक्ति को खुल के रहने की आजादी देता है | इसमें नास्तिकता और वैज्ञानिकता के विचार वाले व्यक्ति भी शामिल हैं,जो की बिना सेकुलरिज्म के विधर्मी  (heresy) और ईश निनादायी (blasphemes) सुनाई देने लगेंगे |        इधर भारत में सेकुलरिज्म को हिन्दू-मुस्लिम राजनैतिक एकता में देखा जाने लगा है | एक धर्म का हो कर दूसरे के वस्त्र पहन लेना , दूसरे क...

पश्चिम का 'सेकुलरिज्म' और भारत के 'सेकुलरिज्म'

पश्चिमी यूरोप और उतरी अमेरिका का सेकुलरिज्म (Secularism, = धर्म निरपेक्षता ) भारतीय प्रसंग की धर्म-निरपेक्षता से कैसे भिन्न है यह समझने के लिए हमे इन पश्चिमी यूरोपीय देशों के सांस्कृतिक इतिहास को समझना होगा जहाँ से प्रजातंत्र और सेकुलरिज्म , दोनों का ही जन्म हुआ है |      सेकुलरिज्म के इस प्रसंग की कहानी हम पश्चमी यूरोप के मुख्य धर्म , इसाई धर्म, को सेकुलरिज्म की उत्त्पत्ति की इस कहानी मध्य में रख कर समझ सकते हैं | सोलहवी शताब्दी के युग तक इसाई धर्म का केन्द्रीय गढ वैटिकन चर्च था , जो की इटली की राजधानी रोम के मध्य में स्थित एक स्वतंत्र धर्म-राज्य है | इस चर्च के अनुपालकों को रोमन कैथोलिक , या सिर्फ कथोलिक , कह कर बुलाया जाता है | सोलहवी शताब्दी तक इसाई धर्म में पादरियों और चर्चो की आम ईसाईयों की ज़िन्दगी में हस्तक्षेप बहुत चरम पर था | उस समय की मान्यताओं के अनुसार वह इंसानों को अपनी समझ और अपनी राजनैतिक सुविधा के अनुसार कभी भी सजा दिया करते थे | यह याद रखना ज़रूरी होगा की तब विज्ञानं का करीब-करीब न के बराबर प्रसार था | इस लिए तत्कालीन विज्ञानियों का कथन तो एक ईशनिंदा (b...

तो सीबीआई के निर्माण से हुआ है भारत मुर्ख-तंत्र का निर्माण !

एटोर्नी जनरल, ज़ी ई वाहनवती जी ने CBI से सम्बंधित फैसले पर सर्वोच्च न्यायलय में अपनी दलील दे कर फिलहाल के लिए स्टे आर्डर ("ठहरना" का आदेश ) प्राप्त कर लिया है | यह ज़रूरी भी है क्योंकि जैसा की उन्होंने अपनी दलील में कहा -- सीबीआई आज एक ६००० से भी अधिक लोगों से सुसजित संस्था है , जो की आज भी १००० से भी अधिक केस को जांच कर रही है | गुवाहाटी हाई कोर्ट के फैसले यह सब के सब , और करीब ९००० फैसले प्रभावित होंगे |     एटोर्नी जनरल जी का मुख्य नजरिया यह है की गुवाहाटी हाई कोर्ट ने जो प्रश्न किया था वोह ही गलत था, फिर उन्होंने एक त्रुटिपूर्ण आधार से आंकलन किया , और एक त्रुटिपूर्ण समाधान प्राप्त किया . जो की उनका फैसला बन गया |      भारतीय मूर्ख्तंत्र की दिक्कत यह है की हमारा मीडिया भी तर्क, वाद-विवाद को सही से समाचार में कभी दिखाते ही नहीं है | उनको तो बस भाषणों को दिखाने की लत लग चुकी है और तर्क, वाद-विवाद तो खुद उनके भी मस्तिष्क में घुसता नहीं है , इसको समाचार में दिखाने की आवश्यकता इनके सहज बोद्ध में नहीं आने वाली| यह क्या जन -जागृती लायेंगे | दिक्कत यह है की जनता का...

'मंगलयान' अभियान का प्रेरणा उद्देश्य क्या होना चाहिए ?

   हिंदी भाषा के एक समाचार चेनल IBN-7 पर एक उच्च पदस्त अंतरिक्ष वैज्ञानिक को भारत के मंगलयान मिशन(अभियान) के प्रेरणा-उद्देश्य का व्याख्यान करते सुना की क्यों भेजा हैं भारत ने यह मिशन | उनकी बातों और विचारों को सुन के मुझ में फिर से वहीँ ग्लानी , वही शमंदिगी महसूस हुई जो बार-बार  , कितनो ही बार मैंने स्वयं के एक भारतीय होने की वजहों से महसूस करी हुयी है | वही बेईज्ज़ती और शर्मंदिगी, जिसमे की मेरे मन में वह संदेह होता हैं की क्या यही वह भारतीय सभ्यता थी जिसने समूचे विश्व को सभ्यता का पाठ अपने काव्य रचना, रामायण, के माध्यम से दिया था , और क्या यही वह सभ्यता है जिसने घर्म और न्याय के महाग्रंथ , श्रीमद भगवद गीता, की रचना करी थी |   अंतरिक्ष वैज्ञानिक जी का कहना था की मगल यान मिशन का प्रेरणा-उद्देश्य है इस दुनिया में भारत का नाम ऊँचा करने का -- यह साबित करने का की भारत के पास भी काबलियत है ऐसे उच्च तकनिकी मिशन को सफलता पूर्वक पूर्ण कर सकने की , और भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में लोहा मनवाने की | भारत ने यह मिशन मात्र रुपये 450 करोड़ में ही भेजा है , जब की रूस, अम...

क्या है 'राजनैतिक महत्वाकांक्षा' - एक विचारविमर्श

मोदी जी के भाषणों को टीवी पर लगभग सभी समाचार चेनल , हिंदी और अंग्रेजी , 'सीधा प्रसारण' में दिखा रहे हैं । इसलिए मेरे जैसे दर्शक अपनी इच्छाओं से दूर हट कर भी इन्हें सुन ही बैठते हैं । इनको सुनते-सुनते मोदी के आलोचकों के विचार भी सुनाई दे ही जाते हैं । मोदी के आलोचकों का एक प्रमुख आरोप "राजनैतिक महत्वाकांक्षा" का है ।  क्या सन्दर्भ है इस आरोप का - "राजनैतिक महत्वाकांक्षा", और इसमें क्या गलत है ? सभी व्यक्तियों को जीवन में एक न एक लक्ष्य तो रखना ही चाहिए । लक्ष्य के बिना तो जीवन व्यर्थ हो सकता है , बिलकुल किसी आवारा की भाँती । तब फिर 'जीवन के लक्ष्य' और 'महत्वाकांक्षा' में क्या भेद हुआ ? 'जीवन का लक्ष्य' और 'महत्वाकांक्षा' के बीच का अंतर एक मनोवैज्ञानिक दर्शन के माध्यम से ही समझा जा सकता है । हर व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य का चुनाव अपनी स्वयं की क़ाबलियत के एक आत्म-ज्ञान के आधार पर ही करता है । वैसे विचारों और इच्छाओं पर कहीं कोई अंकुश नहीं होता , मगर इसका यह मतलब नहीं है की एक स्वस्थ मानसिक अवस्था के व्यक्ति को अपने 'जीवन...

Really! a case of Indiscipline and Disrespect ??

Acts of 'Indisciple' and 'Disrespect' are two accusations which in themselves are deprived of any logical substance to sustain themselves. What is 'indiscipline' and what is 'disrespectful' or 'insulting' in an action is never revealed by the use of word itself. Where one person will judge 'indiscipline' in an action, the other person may still see discipline while negotiating hard to change a culture towards the deliverance of the justice. Given the manner these words are used, it can be said that the parameters of 'discipline' and 'indiscipline' are very much subjective and particular to the cultural environment of the claimant and the organisation.   More often than not, the claims of a perceived 'indiscipline' or a 'disrespect','insult' comes as a front for the suppression of Free-speech , or to overthrow what ought to be the course of Justice in a given case. It is very common to see the claim...

It's not "anarchy" as they say, it is a new order of Hierarchy

The clash of Anti-corruption against the Corrupt is becoming a clash of the Hierarchy-against- Anarchy at one of its fronts. There is a due logic on how this transforming is happening. the first observable point is that it is not Anarchy, but something of a euphemism to denote the desire to demolish the presently installed system of 'hierarchy'. Hierarchy in itself is a natural force which comes to existence on it's own in any organisation, whether the people like it or not. Indeed there is a legal-purpose hierarchy in the AAP too, no matter it claims to be a band of volunteers. Therefore the agenda of anti-corruption by AAP has the potential to demolish NOT what is Hierarchy BUT what is the *present* Hierarchy which has come into being in this climate of immense corruption. What kind of Hierarchy does a corrupt system bring up? Look at BJP which is continuously on an inward fight for leadership. It found it's peace in Nitin Gadkari who remains a prime accused in massi...

Due process for discharging a crew on the grounds of indiscipline

Discharging a crew from Manish Singh

एक उत्तर- “सारी दुनिया बेईमान हैं, और सिर्फ तुम ही एक ईमानदार”

भगवान् ने इंसान को सम्पूर्ण दोषमुक्त कभी भी नहीं बनाया | बल्कि इस पूरी धरा पर जीवन कहीं भी सम्पूर्ण दोषमुक्त नहीं बना है| किसी को कुछ दिया है तो कुछ और नहीं भी दिया है| हाँ जीवन जी सकने का इन्साफ ज़रूर किया है|यदि शेर को नाखून दिए हैं, तब हिरण को मजबूत, उछल-दार पैर| फिर यदि दोषमुक्त कोई है ही नहीं, तब क्या इस धरा पर दोषियों का साम्राज्य नहीं कायम हो जाना चाहिए ? हम क्यों किसी बेवकूफों की भांति बार-बार अरविन्द केजरीवाल से सवाल करते हैं की "तुम सारी दुनिया को भ्रष्ट बताते हो और खुद को इमानदार"|      अरविन्द केजरीवाल ने भ्रस्टाचार को एक सांकृतिक समस्या जरूर दर्शाया हैं, जिसको दूसरे शब्दों में ऐसा प्रस्तुत करने की भी एक संभावना है की "सारी दुनिया भ्रष्ट है", मगर खुद को इमानदार नहीं कहा है| खुद के लिए हमेशा यही कहाँ है की "भाई जांच करवा लो, कहीं कुछ मिले तो सजा दे देना|" 'भ्रष्टाचार हमारी एक सांकृतिक समस्या है',- इस विचार का इस दुनिया के तमाम जीवन में परिपूर्णता से क्या सम्बन्ध है, इसको समझने की जरूरत है| यदि परिपूर्णता का अभाव इस धरा के सभी प्राणी...

Do you say, "AAP is being too much idealistic".

Are you among those people who accuse the Aam Aadmi Party of being too much idealistic. Do you find something too much wrong with the too-much-idealism , which unfortunately you are not able to describe in exact, coherent terms. Here is one reply I want to send to you: There is a purpose of Idealism, although it is something akin to the perfection and divine-ness which the humans cannot achieve. Idealism sets the benchmark around which we measure our imperfections . This theory will help define the purpose and contribution of AAP to the current Indian Politics. It is alleged that AAP is highly idealistic and therefore likely to be unstable , something which cannot exist in the real world. It is so true a thought, i would concede. But the issue is, even if this idealism is of highly transient and rather illusionary and imaginary nature, this idealism has the potential to change the political landscape, the signs of which are already emerging through various legislative and justice ...

Business is Hypocrisy too..making a law and them secretly violating it, is called Business !

"Business cannot be done without using unfair means". This the self-image and convictions of the business houses in the Eastern Philosophy. Just as the purpose of Business is understood to be Profit by various philosophers, the business communities/houses take it that Profit and Profiteering are their birth-rights. Therefore, In the business related to goods, tax-evasions, secretive violations of the Statutory laws, consumer abuses - are done with the conviction of ''doing a business, because that's what the business is all about". In the business related to services, the exploitation is the equivalent of unfair means of Business , and executed with the same conviction. The 'business'-minded officials of the Governments facilitate this business environment.  Since unfairness cannot be brought about with having some rule to put the other in the queue, the 'right' method doing business is to support the rules and legislations which make all the...

Rethinking : Discretion versus Decision-making

(refer previous blog: Difference between Discretion and Decision-making ) On a re-thinking about Discretion -Versus- Decision-making, Discretion is something which allows space for person taste of the leader to play bigger role in the proceeding. In dictionary, Discretion is described as "Good Judgments". However , in management/administrative theories the area of interest of 'Good Judgements' grows outward to enquire the "how?" , the methodology of making a 'Good Judgements'. Management/administrative theories therefore proceed to create distinctions between Decision-making and Discretion. Discretion, here, is differed by a factor of 'personal taste' from Decision-making. Decision-making is about picking the best choice from various options being explored; Discretion is about acting solely by 'Personal Taste'. Therefore the term 'Discretionary Power' stands separate from the ordinary power of decision-making which is an ele...

Bad Governance-Versus-Juvenile Justice -- a moral dilemma of India

Why was the age of attainment of majority/ deliverance of minority adopted in the theories of law? Is a person born a criminal by birth? The old times cinema, the young juvenile caught stealing a loaf of bread so to feed his hungry brother, cried his soul to the Judge, ''Nobody is born a their, sir. It's the hunger, poverty and atrocities done by the rich and powerful when they crush a poor man under the wheels of their posh cars when a thief, robber or criminal is born. But the True criminal is not me, it is these people , this society, this system''. those were the superhit movies of their times , which had the 'Robinhood' feelings, the 'prince of thieves' whom the people loved from the bottom of their hearts. That is what paved the way to democracy, the people's leadership in polity, the abolishing of Feudalism. That nobody is born a criminal is a universal truth. The nation, it's political and administrative system, the society have t...

The brain development chart

Rational Thinking is a development of mind above the Reasoning-ability. It is that stage of development of brain when a person starts evaluating which one among so many reasons is the appropriate one for circumstances which are in the question. To a simple question, ''why should we keep on the left side of the road, when driving'' , the number of reasons (such as ''Because there is a law'', ''because to give way to the opposite traffic'', ''because the steering wheel is on right side of car'', etc) , Rational Thinking is the development stage of brain when it begins to Judge which is applicable reasoning for the circumstances which are in question. The basic ability of human brain , if it is born 'normal'(without any birth defects) is called Cognitive Abilities. a small child can be seen displaying the development of Cognitive Abilities as he grows from infancy to toddler to child stage. From the cognitive Abilit...

तर्कों को उलट फेर कर देने वाली एक संस्कृति

महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने एक कथन में गाँधी जी की मूढ़ता की हद्दों तक जाने वाली शांतिवादी (=अहिंसा ) विचारधारा के बारे में अपना अविश्वास व्यक्त करते हुए कहाँ था की " आने वाली पीड़ियाँ यह शायद ही विश्वास कर सकेंगी की कभी कोई हाड़-मांस का बना ऐसा शख्स इस धरती पर विचरण किया करता था । "       खैर , हमारे आत्म-पूजन , आत्म-भक्ति वाले देश भारत ने अल्बर्ट आइंस्टीन के इस कथन को अपने ही तरह से उच्चारित किया है । अल्बर्ट आइंस्टीन जर्मनी में पैदा हुए और अमेरिका में शरणार्थी बन कर आये उन कुछ लागों में थे जिन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को चिट्टी लिख कर एटम बम्ब बनाने के तरीकों पर आगे बढ़ने को कहा था । बहोत बाद में अमेरिका ने जापान पर एटम बम्ब का प्रयोग भी किया ।       एक कल्पना की उड़ान लेकर देखें तब हंसी आयेगी की जैसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने गाँधी जी पर अपना अचम्भा व्यक्त किया था , अगर आइंस्टीन भारत में पैदा हुए होते तब उनकी दिमाग को सम्पूर्ण पलट-फेर कर देने वाली 'सापेक्षता के विशेष सिद्धांत' और बाद में आये 'सापेक्षता के आम सिद्धांत' पर शायद हम भारतियो...

Group Dynamics in the higher order societies

      Societies of higher intellect sustain and thrive because of their abilities to work along the Facts , not the beliefs. Societies which are capable of handling evidence and search the truth are able to make the Right Decisions better. This attitude , then , contributes to keep the adherence force between the members of the group and that in turn helps them to survive and prosper.     Low Intelligence societies have a trouble of lacking specialization , which forces them to resolve issues too many times, by use of Voting. Absence of knowledge of Physics can, as a matter of fact, make the low Intelligence societies to resolve the tangle of "which is easier- Pulling or Pushing?" also to be put to election vote. Imagine the condition of low-intelligent societies where there is absence of knowledge of Law, medicine, literature, arts, philosophy and so many.     ''Not everything can be resolved by logic'' is the attitude of the low Intelligence societ...

On the recent verdicts of Supreme Court on criminal and corrupts to contest elections

looks like the Indians have been tricked by the cunning politicians once more. Although the media is presently projecting this news as a victory of the common man, when i read the views of the rights groups on this issue, i figure out that the cunning politicians have stolen away a victory by taking an allowance through the Court process to have those people who are already Chargesheeted to contest the elections, even upto those who have been convicted "although less than 2 years". If someone can apply the mind, after reading the views of the rights groups, the government has tricked away the entire population of india by stealing away this allowance. instead of working down to improve the Police Investigation, the forensics and the Judicial system of India, the Government has managed to use that as an excuse to make a small win of today by taking victory in having convicted people to contest the elections !!! We have been duly fooled !! ___________________________________...

Is India likely to change the Good Governance and principles of civil society at the world stage if elevated higher?

The International Olympics Committee (the IOC) has rejected the Indian Olympics Association (the IOA) proposal to allow people 'convicted for more than 2 years' to allow to be the president of the IOA , and therefore be nominated for the IOC. The IOC has rejected this proposal.     Isn't the proposal same as what the political parties in India had argued in the Supreme Court regarding permissions to the 'convicted criminals for more than two years' to contest elections. Interestingly the political parties have won there argument in the Supreme Court of India. Their main argument which the SC upheld , was that a blanket ban on the incarcerated people will result into abuse by the political parties to eliminate out their rivals through falsely fabricated cases!      The second contention of the political parties is to ask of the Supreme Court to allow people to contest elections even from the prison.     Various interested rights organisations have co...

How should an MLA or an MP be ideally attending to his constituency?

How should an MLA or an MP be ideally  attending to his constituency?   The conventional perception of ''who is a good man'', surprisingly has been a very relativistic view, over here in India. The general answer, which most of us Indians , unconscietiously bear in our mind, is that '' a good person is someone who is sitting on a dharna , a candle light vigil, or protest about something which is perceived to be bad''. There is perhaps no standard and idealistic answer which while conforming to the need of moderns times, help us identify the 'due process' man from an dissenter man.      In the absence of the ideal gauge, the convention of stating who is a good legislator is that ''jo apke saare kaam kara de''. When asked to elaborate on 'kaun se kaam (which all works)', the quick answer our minds thoughtlessly work back is, ''roads, bridges, flyovers, footpath and railings- banwa de''. Sometimes this ans...

आस्तिक इंसानों का मुर्ख राष्ट्र

आस्तिक इंसानों में समझ की यह समस्या अक्सर होती है की वह 'पॉवर' को एक-सत्ता(absoluteness) की दृष्टि में देखना और समझना पसंद करते हैं । वह " पॉवर के संतुलन " के व्यक्तव्य को समझ सकने में थोडा मानसिक तौर से मंद होते हैं ।      आस्तिक इंसानों का यह नजरिया और मंद-मस्तिष्क उनकी आस्तिक विश्वासों की ही उपज होती है । यह लोग अधिकार (राइट्स) और शक्ति (पॉवर) के बीच में अंतर नहीं कर सकते हैं। वह दुनिया को किसी अदभुत ताकत के द्वारा रचित एक करिश्मा के रूप में देखते हैं,जिसे वह भगवान् अथवा इश्वर बुलाते हैं । भगवान् मनुष्य की समझ के परे होते हैं और इस लिए भगवान की शक्तियों से सम्बंधित आगे कोई भी तलाश, जिज्ञासा , प्रशन को वह एक व्यर्थ कार्य, व्यर्थ मेहनत समझते हैं । वह स्वयं ही उस शक्ति के आगे विनम्र और नतमस्तक , यानि दूसरे शब्दों में - विवश, हो जाते हैं । अपने इस त्रुटिपूर्ण नज़रिए की छाप वह अपने राजनैतिक ज्ञान में भी झलकाते हैं । जन-प्रशासन और राजनैतिक विज्ञानं से उपजे कुछ सिद्धांतों (theories ) को त्रुटीपूर्ण तरीके से प्रथक- मनोभाव (isolation ) से देख बैठते हैं , जबकि वह ...

भारत के मौजूदा राष्ट्रपति

जहाँ हम भारत वर्ष के नागरिक अभी तक इसी सच को समझने में लगे हैं की कैसे राजा-रजवाड़ों के ज़माने अब अतीत में जा चुके हैं , आधुनिक युग प्रजातंत्र का युग है , - प्रजातंत्र व्यवस्था के सर्वप्रथम पालक - ब्रिटेन - में राजा-रजवाड़ों की व्यवस्था को बहुत चतुराई से प्रजातंत्र से संगम कर के प्रयोग किया गया है की जिस से की धर्म , नैतिकता और सत्य को किसी भी प्रकार के कूटनैतिक शिकस्त से संरक्षण हमेशा के लिए मिला रहे ।      ब्रिटेन प्रजातंत्र (democracy) होने के साथ-साथ एक 'राज-तंत्र' (monarchy) राष्ट्र भी है । जहाँ भारत एक 'गणतंत्र' (republic) व्यवस्था का पालक है , और देश का 'प्रथम व्यक्ति , देश प्रमुख' एक चुनावी क्रिया से तय किया हुआ व्यक्ति होता है , जिसे हम "राष्ट्रपति" कह कर संबोधित करते है , ब्रिटेन में देश का 'प्रथम व्यक्ति , देश प्रमुख' वहां पर सदियों से चले आ रहे राज शाशक , वहां के सम्राट होते है ।    ब्रिटेन में संसद भवन नाम की व्यवस्था वहां के पारंपरिक शाशक , यानि सम्राट (महाराज /अथवा महारानी , जैसे मौजूदा में महारानी एलिज़ाबेथ ), की शक्तियों को दि...